Tuesday, April 24, 2012

कमजोर पड़ते रिशतों के बंधन

पं. महेश शर्मा


जिस तरह से युवा सामाजिक ताने बाने को समझने में असक्षम साबित हो रहे हैं, उससे तय है कि आने वाले वर्षों में इसका दौर फिर से लौट आएगा।


सामजिक नियंत्रण का प्रयोग विभिन्न अर्थों में होता रहा है। एक सामान्य धारणा है कि लोगों को समूह द्वारा स्वीक2त नियमों के अनुसार आचरण करने के लिए बाध्य करना ही सामाजिक नियंत्रण है, किन्तु यह एक संकुचित धारणा है। प्रारंभ में सामाजिक नियंत्रण का अर्थ केवल दूसरे समूहों से अपने समूह की रक्षा करना और मुखिया के आदेशों का पालन करना मात्र था। बाद में धार्मिक और नैतिक नियमों के अनुसार व्यवहार करने को सामाजिक नियंत्रण माना गया। वर्तमान समय में सामाजिक नियंत्रण का तात्पर्य संपूर्ण व्यवस्था के नियमन से लिया जाता है, जिसका उदृदेश्य सामाजिक आदर्शों को प्राप्त करना है।

यही कारण है कि प्रत्येक समाज में नियंत्रण की व्यवस्था होती है। इसका कारण यह है कि समाज और सामाजिक संबंधों की प्रक2ति, सामाजिक दशाओं एवं व्यक्तिगत व्यवहारों में भिन्नता पाई जाती है। सदस्यों के उदृदेश्यों, हितों एवं विचारों के भिन्न भिन्न होने के कारण एक ही प्रकार के नियंत्रण से सभी के व्यवहारों को नियमित नहीं किया जा सकता। ग्रामीण एवं नगरीय, बंद एवं मुक्त, परंपरात्मक, जनतांत्रिक एवं एकतंत्र समाज में सामाजिक नियंत्रण के स्वरूपों में भिन्नता होना स्वाभाविक है। कभी पुरस्कार के द्वारा तो कभी दंड के द्वारा, कभी औपचारिक व संगठित शक्तियों द्वारा तो कभी अनौपचारिक व असंगठित शक्तियों द्वारा नियंत्रण रखा जाता है।

औपचारिक सामाजिक नियंत्रण राज्य, सरकार या किन्हीं कानूनी संस्थाओं द्वारा गैर कानूनी व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए लागू किया जाता है। इन नियमों का सदस्यों पर बाध्यतामूलक प्रभाव होता है। ऐसा इसलिए कि इन नियमों के पीछे सरकार की ताकत होती है। यही कारण है कि व्यक्ति कानून का उल्लंघन करने से पहले कई बार सोचता है।

दूसरी तरफ अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण का वह प्रकार है जिसमें जनरीतियों, प्रथाओ, परंपराओं, रुढि़यों, आदर्शों, विश्वासों, धर्म एवं नैतिकता आदि के माध्यम से व्यक्तियों एवं समूहों के व्यवहारों को नियंत्रित किया जाता है। इन सामाजिक नियमों का पालन समूह कल्याण को ध्यान में रखकर नैतिक कर्तव्य के रूप में किया जाता है।

यही कारण है कि समाज जैसे जटिल व्यवस्था में व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए अनेक कानून बनाये गए हैं, फिर भी इस वैज्ञानिक युग में आज भी धर्म, प्रथा, परंपरा आदि का अपना विशिष्ट महत्व है। विवाह जैसे मुदृदों पर तो इसका महत्व आज भी काफी ज्यादा है।

हालांकि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव व लोकतांत्रिक समाज में युवाओं में वैवाहिक संबंधों को लेकर उच्छं2खलता काफी बढ़ी है। आज का युवा किसी भी कायदे कानून को मानने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि अब सामजिक नियंत्रण न के बराबर है। इसके बावजूद आज जो परिणाम सामने आ रहे है उससे तत्काल तो लगता है कि वैवाहिक संबंधों को लेकर सामजिक नियंत्रण कमजोर होता जा रहा है, लेकिन इसके दुष्परिणामों को देखकर ऐसा लगता है कि कुछ ही समय बाद एक बार फिर से इस तरह के नियंत्रणों की आवश्यकता लोग खुद महसूस करेंगे।

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