Saturday, December 21, 2013

बदल गया है योग्य जीवनसाथी का पैमाना

आज के दौर में जीवनसाथी की योग्यता और अयोग्यता का पैमाना पूरी तरह से बदल गया है। यही वजह है कि लड़के और लड़कियां अब अभिभावकों पर पसंद-नापसंद की बात रिश्ता तय होने से पहले करने लगे हैं। वर्तमान में वैवाहिक बंधनों को लेकर आजकल अभिभावकों को सबसे ज्यादा इन सवालों का सामना करना पड़ता है कि लड़के और लड़कियों में मैच है या नहीं। जिस लड़के का चयन अपनी बेटी के लिए करने जा रहे हैं वह वास्तव में उसके योग्य है या भी नहीं। लड़कियों की नजर में वह लड़का उनका जीवनसाथी बनने योग्य है, जो अपनी पत्नी की उपलब्धियों पर खुश हो तथा गर्व का अनुभव करे न कि ईष्र्या करे या उसकी प्रतिभा को रौंदने का काम करे।

हर लड़की ऐसा जीवनसाथी चाहती है जिस पर उसे गर्व हो यानी वह उसकी चाहत की कसौटी पर खरा उतरता हो। लड़कियाँ लड़के के रंग-रूप या कद-काठी की बजाए उसकी पढ़ाई-लिखाई कमाई और वैयक्तिक गुणों को अधिक महत्व देती हैं। यदि पति हैंडसम हो और गुणों की खान भी तो सोने पर सुहागा। हर लड़की कमाऊ लड़का के रूप में ही पति चाहती है। पत्नी की कमाई पर ऐश करने वाले या निर्भर रहने वाले लड़के को वह कभी पसंद नहीं करती। जो उनकी इच्छाओं और भावनाओं को समझते हुए उसकी कद्र कर सके। जो केवल उनका पति ही बनकर न रहे अपितु एक सच्चा दोस्त भी बने और सुख-दुख में साथ दे।

अलग हाईलाइट करें: लड़कियों की नजर में एक अच्छा पति वह है, जो अपनी पत्नी को अपने समकक्ष दर्जा दे न कि उसे अपने पैरों की जूती समझे। स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले को वह कभी जीवनसाथी बनाना नहीं चाहती, क्योंकि ऐसे लोग पत्नी पर हाथ उठाना या उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने में अपनी मर्दानगी समझते हैं।

Thursday, December 5, 2013

तालमेल ही बेहतर जीवन का आधार

प्रेम इंसान के उन भावनात्मक पहलुओं की कोमल अभिव्यक्ति है, जिसमें कि उसका स्वतंत्र भाव समर्पित रूप से समाया हुआ है। यह किसी तराजू का तौल नहीं, अपितु सुंदर कोमल भावनाओं का स्नेह भरा मोल है, जिसका परस्पर आदान-प्रदान आपसी संबंधों को मधुर व मजबूत बनाता है।

विवाह मात्र एक औपचारिकता भर नहीं। यह दो लोगों के परस्पर मन को जोड़ने वाला तार है। इसलिए यदि दांपत्य जीवन की लय-ताल में सरगम का मेल हो जाता है, वहीं अगर मन मिलने को राजी न हो, तो कर्कशता जिंदगी भर का साथ हो जाती है। दांपत्य जीवन से जुड़ी परंपराएं व त्योहार आपसी प्रेम तथा सामंजस्य को बल देते हैं। तो क्यों न हम गहराई को दांपत्य जीवन की नींव बना लें और गृहस्थी के आंगन में हमेशा चांद को चमकता देखें। पति-पत्नी में झगड़ा होने पर पति-पत्नी अक्सर बोलना बंद कर देते हैं। ऐसा करने से मन में अनेक शंकाएं जन्म ले लेती हैं। रिश्तों में दरार आती है, सो अलग। इसलिए मनमुटाव या तकरार होने पर संवाद द्वारा समस्या का हल निकालने का प्रयास करें। अपनी गलतियों को स्वीकारना भी सीखें। जहाँ प्यार होता है वहा तकरार होना लाजमी है।

हर इंसान में गुण-अवगणु के अंश होते हैं। भले ही कोई इंसान कितना भी अच्छा क्यों न हो उसमें भी बुराई हो सकती है। अपने जीवनसाथी की कमियों को लेकर विवाद करना दांपत्य जीवन में दरार पैदा करता है। इसलिए जीवनसाथी की कमियों की बजाए अच्छाइयों पर ध्यान दें । प्यार से समझाकर बुराइयां दूर करने का प्रयत्न करें। विचारों एवं स्वभावों का उचित सामंजस्य ही सुखी वैवाहिक जीवन का आधार हो सकता है।

वर्तमान में पति-पत्नी करियर को लेकर इतना खो जाते हैं कि एक-दूसरे को समय ही नहीं दे पाते और यहीं से रिश्तों में शिथिलता आने लग जाती है। इसलिए काम से फुर्सत निकालकर कुछ लम्हे आपस में जरूर बिताएं या कहीं घूमने जाएं। इससे जहाँ एक-दूसरे के दिल की बातें जानने का अवसर मिलेगा, वहीं रिश्तों में नयापन, अपनापन एवं प्रगाढ़ता भी आती है। रिश्ता पूरी तरह से दीया और बाती के समान है। पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे से अपनी बात मनवाने की अपेक्षा सुझावात्मक रूप में कहें कि यह कार्य यदि ऐसे किया जाए तो कैसा रहेगा। ऐसा करने से जहाँ आप मनमुटाव व तकरार से बच सकते हैं वहीं आपसी परामर्श द्वारा कार्य करने से अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ तालमेल करने में अक्सर अहम बाधक बनता है कि मैं ही ये काम क्यों करूं, लेकिन पति-पत्नी सुख-दुख बांटने के लिए होते हैं। इसलिए आपस में सहयोग करने में कभी पीछे न रहें। पति पर आॅफिस के कार्यो का बोझ आने पर पर यथासंभव सहयोग करना चाहिए। वहीं घर के कामकाज में यदि आप एक-दूसरे की मदद करें, तो इससे प्यार बढ़ता है आपसी सहयोग से कठिन काम आसान भी हो जाते हैं।

 प्रशंसा शब्द भले ही छोटा हो, परंतु आप जिसकी तारीफ करते हैं, उससे एक ओर उसकी कार्यकुशलता बढ़ती है। वहीं संबंधों में मधुरता भी आती है। इसलिए काम की प्रशंसा करने में कभी कंजूसी न करें। सराहना करना इस रिश्ते को और भी प्रगाढ़ता प्रदान करता है।

Thursday, November 21, 2013

मेरे सपनों में एक ऐसा हसीं..

बदलते समय की मांग के अनुसार पुरुषों को स्त्रियों की बदलती चाहतों को समझने की जरूरत है। अगर आप एक परफेक्ट लाइफ पार्टनर की तलाश में हैं तो पहले खुद परफेक्ट बनिए। जी हां, आज की लड़कियां जरा डिमांडिंग हो गई हैं। पार्टनर को चूज करने के लिए उनके अपने मानक हैं। मिल्स एंड बून्स टाइप का रोमांस उन्हें आज भी पसंद है, लेकिन अपनी शख्सीयत के साथ समझौते की कीमत पर नहीं। सखी डाल रही है आज की वेल-इन्फॉ‌र्म्ड लड़कियों के अनुसार लेटेस्ट हस्बैंड मटीरियल पर नजर।
बात सपनों के शहजादों की हो तो आजकल की कुडि़यां जरा भी कॉम्प्रोमाइज नहीं करतीं। वे जमाने लद गए जब लड़कियां ट्रे लेकर लड़के वालों के सामने आती थीं और उनके अजीबोगरीब सवालों को झेलती थीं। पास हो गई तो शादी वरना रिजेक्टेड का टैग लग जाता था। आज की लड़कियां लड़कों के मानकों पर खरी उतरने के बजाय अपने मानकों पर लड़कों को परखती हैं। अब बॉल लड़कियों के कोर्ट में होती है। हमारे समाज में आए इस बदलाव की वजह है लड़कियों को मिल रहा इंटरनेशनल एक्सपोजर। शादी करके जीवन भर समझौता करने के बजाय आज की लड़की अपनी पसंद से शादी करके जीवन भर खुश और सेटल्ड रहने में यकीन रखती है।
हैदराबाद के एक बीपीओ फर्म की मैनेजर रितिका शादी करना चाहती हैं, लेकिन अपना लाइफ पार्टनर चुनने के लिए उन्होंने कुछ मानक भी बना रखे हैं। रितिका को मिल्स एंड बून्स किस्म के टॉल, डॉर्क एंड कनवेंशनली हैंडसम लड़कों में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें चाहिए एक ऐसा लड़का जो उनके जीवन में पॉजिटिव वाइब्स लेकर आए। वह कहती हैं, 'मुझे एक डाउन टु अर्थ लड़के की तलाश है। जो मेरा पति नहीं, बल्कि दोस्त बनकर साथ निभाए। उसका सेंस ऑफ ह्यूमर बेहतरीन और सोच सिंपल होनी चाहिए।'
आज की लड़कियों के गले टिपिकल डॉमिनेटिंग हस्बैंड का कॉन्सेप्ट नहीं उतरता। उन्हें चाहिए ऐसा इंसान जो घर के हर निर्णय में उनकी राय को अहमियत दे। इंदौर के एक एनजीओ में काम कर रही सुहान अपने पार्टनर में मेल शॉविनिज्म एटीट्यूड एकदम नहीं चाहतीं। सुहान कहती हैं, 'मैंने पुरुषों के डॉमिनेटिंग एटीट्यूड को बहुत करीब से देखा है। मैंने अपनी मां को बहुत सहते हुए देखा है। मैं अपने लिए वैसा जीवन नहीं चाहती थी। इसलिए मैंने पढ़ाई की और करियर बनाने के लिए मेहनत की। मैं एक ऐसा पार्टनर चाहती हूं जो जीवन की हर बुराई के लिए मुझे गुनहगार ठहराने के बजाय मेरे साथ मेरे सपोर्ट में खड़ा हो। जो मेरी सफलता के लिए उतना ही एक्साइटेड हो जितना कि मैं हूं।'
दिल्ली की एक पब्लिक रिलेशंस कंपनी में काम कर रही कार्तिका अपने पार्टनर में स्त्रियों के प्रति सम्मानजनक रवैया प्रेफर करेंगी। कार्तिका कहती हैं, 'ज्यादातर पुरुष आज भी लड़कियों की तरक्की पसंद नहीं करते। मैं अपने लिए एक सैडिस्ट हस्बैंड नहीं चाहती। उसमें इतनी कैलिबर होनी चाहिए कि वह तरक्की कर सके और इतनी सकारात्मकता हो कि मेरी तरक्की पचा सके।'
स्त्रियों की चाहत समझने के लिए मेल गिबसन को एक लड़की का रूप धरने की जरूरत पड़ी थी। अगर आप भी आज की लड़की की बदलती हसरतों को समझना चाहते हैं तो जरा उनके स्तर पर आइए। बात बन जाएगी।
सर्वे के अनुसार..
रिश्तों का संसार  डॉट कॉम
डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट रिश्तों का संसार डॉट कॉम पर बने प्रोफाइल्स के आधार पर देखें तो आजकल की लड़कियों की शादी के मामले में पसंद कुछ समय पहले से एकदम अलग हो चुकी है। इस मैट्रिमोनियल पोर्टल के डेटा पर नजर डालें। लड़कियों की पसंद कुछ ऐसी है-
1. प्रोफेशनल्स हैं पहली पसंद- प्रोफेशनल लड़कों को मिल रहे हेवी पैकेजेज उन्हें शादी के लिए मोस्ट एलिजिबल कैटिगरी में डालते हैं। आंकड़ों की मानें तो प्रोफेशनली क्वालिफाइड लड़कों को एक आम शख्स के मुकाबले 40 प्रतिशत ज्यादा रिस्पांस मिलते हैं। लड़कियों के एजुकेशन लेवल में आ रही दिनोदिन तरक्की और बदलती वरीयताएं इस ट्रेंड की मुख्य वजह है। लड़कियां खुद बेस्ट क्वालिफिकेशंस हासिल कर रही हैं, इसलिए वे अपने पार्टनर्स के एजुकेशन लेवल पर समझौता नहीं करतीं। साथ ही लड़कियां अब पहले के मुकाबले ज्यादा करियर कॉन्शस हो गई हैं। उन्हें अपने करियर में समझौता न करना पड़े, इसलिए भी वे प्रोफेशनली क्वालिफाइड लड़कों को तरजीह देती हैं। यह माना जाता है कि अगर लड़का खुद एक मुकाम पर पहुंचा है तो उसे दूसरे के करियर का महत्व पता होगा।
2. बड़े शहरों के प्रति आकर्षण- मेट्रो सिटीज के लिए लड़कियों का स्ट्रॉन्ग बायस होता है। किसी छोटे शहर में रहने वाले लड़के के मुकाबले मेट्रो या मिनी मेट्रो में रहने वाले लड़के को 30 प्रतिशत ज्यादा रिस्पांस मिलते हैं। वजह साफ है- लड़कियां बेहतर जीवन के लिए बड़े शहरों का रुख करना चाहती हैं। बड़े शहरों में न केवल लड़कियों को बेहतर लाइफस्टाइल के मौके मिलते हैं, बल्कि उनके करियर के लिए भी बेहतर अवसर होते हैं।
3. प्रेजेंटेबल होना है जरूरी- लड़का चाहे जितना भी टैलेंटेड हो, अगर वह प्रेजेंटेबल नहीं है तो उसकी मार्केट जरा डाउन ही रहती है। लड़कियों का रुझान यही दर्शाता है। हालांकि यह मानक कुछ-कुछ नौकरी के इंटरव्यू की ही तरह है, लेकिन आज की लड़कियां पर्सनालिटी फैक्टर को बहुत इंपॉर्टेस देती हैं।
एक्स्ट्रा क्वालिटीज जरूरी..
1. रोमांस में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। मौका कोई भी हो, लड़की की पर्सनैलिटी और पसंद के अनुसार गिफ्ट दीजिए तो इंप्रेस करने में आसानी होगी। हां, पब्लिक डिस्प्ले ऑफ अफेक्शन के मामले में पहले से पसंद-नापसंद जान लीजिए, तभी अटेंप्ट कीजिएगा।
2. पुराने किस्म के विचारों से तौबा कीजिए और जरा आधुनिक सोच अपनाइए। खासकर पुरुष और स्त्री की बराबरी के मामलों में। अपनी पार्टनर की क्षमताओं और अधिकारों को कमतर आंकने की गुस्ताखी करने से बचें।
3. घर के कामों में हाथ बंटाने की आदत डालें। अपनी पार्टनर की मदद के लिए अपने शरीर को कष्ट देना अच्छे रिश्ते का आधार बन सकता है।
4. इंटेलिजेंस बेहद जरूरी है। आज की लड़कियां अपने पार्टनर में एजुकेशन के साथ-साथ अवेयरनेस का लेवल भी चेक करती हैं। इसलिए अपडेट रहें।
5. धर्म हो या राजनीति, कट्टरपंथी विचारधारा आज की लड़कियों के गले नहीं उतरती। धार्मिक होने से ज्यादा आध्यात्मिक विचारधारा पर जोर दिया जा रहा है। Read More

Tuesday, November 12, 2013

निजी बनते प्रोफेशनल रिश्ते

प्रोफेशनलिज्म का पहला नियम है कि ऑफिस के रिश्तों को घर तक नहीं ले जाना चाहिए। लेकिन ऑफिस में घंटों साथ बिताने पर रिश्ते निजी स्तर तक आ ही जाते हैं। ऐसे ही रिश्तों को ऑफिस स्पाउस कहते हैं। इन रिश्तों के आपके करियर पर सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं। हम बता रहे हैं कैसे।

आपको क्या पसंद है और क्या नापसंद, आपकी आदतें, आपकी कमजोरियां और आपके गहरे राजों को बखूबी समझने वाला अगर कोई व्यक्ति आपके साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारे तो नजदीकियां आना स्वाभाविक है। कुछ ऐसे ही होते हैं 'ऑफिस स्पाउस'। ऑफिस के ड्यूटी ऑवर्स के दौरान किसी खास से कुछ ऐसी केमिस्ट्री बन जाती है कि काम करने में और भी ज्यादा मन लगता है।

लांग वर्किग ऑवर्स आजकल लगभग हर प्रोफेशन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। और साथ ही बढ़ते जा रहे हैं प्रोफेशनल रिश्तों के दायरे। ऑफिस की चहारदीवारी में पनपते हैं निजी रिश्ते। एक सर्वे के अनुसार एक ही ऑफिस में काम करने वाले स्त्री-पुरुष कई बार इतने करीब हो जाते हैं कि उनमें पति-पत्नी जैसा संबंध विकसित होने लगता है। ऐसे रिश्तों में पार्टनर्स को 'ऑफिस स्पाउस' कहते हैं। हिंदी फिल्मों में इस कॉन्सेप्ट को बखूबी प्रयोग किया गया है। अब्बास-मस्तान की फिल्म 'रेस' में कट्रीना कैफ और सैफ अली खान व अनिल कपूर और समीरा रेड्डी के बीच भी ऐसा ही रिश्ता दिखाया गया है।

क्या होते हैं ऑफिस स्पाउस?

अगर आप भी अपने ऑफिस में विपरीत सेक्स के किसी व्यक्ति पर बेहद भरोसा करते हों, उनसे अपने सबसे खास राज शेयर करते हों, उनके साथ हंसी-मजाक करते हों या उनके बिना आपका ऑफिस का जीवन ठहर सा जाए तो समझिए कि आपके पास भी एक 'ऑफिस स्पाउस' है। ऑफिस के 12-14 घंटों के वर्क प्रेशर के बीच अगर कोई आपके लिए एक शॉक-एब्जॉर्बर का काम करता है। भावनात्मक सहयोग देने के साथ वह आपकी केयर करता है और विपरीत सेक्स का है तो उसके प्रति आकर्षण पनपना स्वाभाविक है। सर्वे की मानें तो ऑफिस स्पाउसेज की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक तो लगभग 32 प्रतिशत कामकाजी लोग ऑफिस स्पाउस की बात मानते हैं। वे मानते हैं कि ऑफिस में उनका अॅपोजिट सेक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण है। वे मानते हैं कि ऑफिस में उनका एक खास रिश्ता है जो उनके निजी जीवन के इतर उनके जीवन में बेहद अहम जगह रखता है। ऐसे रिश्तों में डेटिंग, हल्का-फुल्का फ्लर्ट और कुछ हद तक सेक्स भी जगह बना लेता है। लेकिन मनोवैज्ञानिक इस कॉन्सेप्ट से उतना इलेफाक नहीं रखते जितनी तेजी से 'ऑफिस स्पाउस' टर्म का प्रयोग प्रचलन में आ रहा है।

मनोवैज्ञानिक समीर पारेख कहते हैं, 'ऑफिस स्पाउस शब्द का प्रयोग अपने आपमें गलत है। स्पाउस शब्द का संबंध कमिटमेंट से होता है।' गौरतलब है कि यहां हम वर्कप्लेस अफेयर की बात नहीं कर रहे। वर्कप्लेस अफेयर और ऑफिस स्पाउस में बेसिक फर्क होता है कि वर्कप्लेस अफेयर आकर्षण के आधार पर होते हैं, जबकि ऑफिस स्पाउस रिलेशंस दो लोगों के बीच की केमिस्ट्री से बनते हैं।

ऑफिस स्पाउस का निजी जीवन पर असर

हिंदी फिल्मों के वे सीन बेहद आम हुआ करते थे जब बॉस की अपनी सेक्रेटरी के साथ नजदीकियां इतनी बढ़ जाती थीं कि ऑफिस का रिश्ता बेडरूम तक चला आता था। जाहिर है, ऐसे रिश्तों से पारिवारिक माहौल पर बुरा असर भी पड़ता था। करियर बिल्डर डॉट कॉम द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार 20 प्रतिशत गृहस्थियों में ऑफिस स्पाउस के होने से उलझनें पैदा हो जाती हैं। ऑफिस स्पाउस के साथ नजदीकियां कई बार इतनी बढ़ जाती हैं कि आपके रियल लाइफ पार्टनर के साथ आपकी ट्यूनिंग फीकी पड़ सकती है। ऐसी स्थितियों का घर तोड़ने में बड़ा हाथ होता है। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो रिश्तों में दायरे बनाने की जरूरत यहीं पड़ती है। समीर कहते हैं, 'साथ में ज्यादा समय बिताने से दो लोगों में नजदीकियां आना स्वाभाविक है, लेकिन उन करीबियों को ऑफिस के चहारदीवारी तक सीमित रखना व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है। अपने रिश्ते को काम तक सीमित रखना बेहद जरूरी है। यानी संतुलित जीवन के लिए दायरे बनाना बेहद जरूरी है।'

करियर के लिए भी खतरनाक

ऑफिस स्पाउस होने से आपको मानसिक सुकून और क्रिएटिव स्पेस तो मिलती है लेकिन इससे आपके करियर पर बुरा असर भी पड़ सकता है।
1. संभव है कि आपके दूसरे कलीग्स आपके और आपके ऑफिस स्पाउस के रिश्ते के मामले में उतने सहज न हों और आपके काम में नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें।
2. रिश्ते की निजता काम पर अकसर दिख ही जाती है जिसका आपके परफॉर्मेस पर बुरा असर भी पड़ सकता है।
3. अगर आप अपने स्पाउस को काम के मामले में वरीयता देंगे तो आपके कलीग्स इस बात का विरोध कर सकते हैं और आपके खिलाफ हो सकते हैं।
4. अगर आपके और आपके स्पाउस के बीच जूनियर-सीनियर की हायरार्की है तो आपकी छवि पर इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे मामलों में अकसर लोग कहते हैं कि बॉस के साथ निजी संबंध बनाकर तरक्की के रास्ते ढूंढे जा रहे हैं।
5. देखा गया है कि इन रिश्तों का खमियाजा पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों को ज्यादा उठाना पड़ता है। कई बार डिपार्टमेंट से ट्रांसफर कर दिया जाता है और ज्यादा बुरी स्थितियों में कंपनी से बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है।
6. आप और आपके ऑफिस स्पाउस कलीग्स के गॉसिप का केंद्र बन सकते हैं, जिससे आपके लिए काम करने का माहौल खराब हो सकता है।
7. ऐसे रिश्तों की गॉसिप अकसर परफॉर्मेस पर हावी हो जाती है और लोग आपके काम को कम आंकने लगते हैं।
8. वर्कप्लेस अफेयर और ऑफिस स्पाउस में फर्क होता है लेकिन लोग ऐसे रिश्तों को एक ही निगाह से देखते हैं।

Friday, October 25, 2013

किस घर आती हैं लक्ष्मी



जहां स्वच्छता, पति-पत्नी में प्रेम-भाव, बुजुर्र्गो के प्रति सम्मान और सौहार्द की भावना होती है, वहीं लक्ष्मी निवास करती हैं। अत: लक्ष्मीवान बनने के लिए जरूरी है कि सद्गुणों व संस्कारों को विकसित किया जाए। 3 नवंबर को दीपावली है, इस अवसर पर डॉ. अतुल टंडन का आलेख..

आजकल लोग भगवती लक्ष्मी को केवल धनागम के लिए पूज रहे हैं, जबकि धन-संपत्ति उनकी विभूति मात्र है। हम लक्ष्मी को धन का पर्याय समझने की भूल कर बैठे हैं। सच तो यह है कि धन केवल इन देवी की एक कला (अंश) मात्र है। इसलिए धनवान होना और लक्ष्मीवान होना, ये दो अलग-अलग बातें हैं। सही मायनों में लक्ष्मी का पर्यायवाची शब्द केवल श्री है। वेद में वर्णित श्रीसूक्त की ऋचाओं के द्वारा लक्ष्मीजी का आह्वान किया जाता है। भगवती की अनुकंपा से धन-संपत्ति के साथ-साथ प्रतिष्ठा, निरोगता, सद्बुद्धि, सुख, शांति और वैभव की प्राप्ति भी होती है। इसी कारण युगों से मानव श्रीमान बनने की कामना करता रहा है, किंतु सच्चा श्रीमान वही है, जो धन पाने के बाद धर्म के पथ से विमुख न हो। यानी अहंकार के वशीभूत होकर बुरे कर्म न करे। स्वार्थी होने के बजाय परमार्थी बने।

दीपावली की पूजा में हम प्रार्थना करते हैं कि भगवती लक्ष्मी हमारे घर पधारें, लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि लक्ष्मीजी कहां निवास करना चाहती हैं? पुराणों में इस संदर्भ में एक आख्यान मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी से पूछा - दे देवि, क्या करने से तुम अचल होकर घर में रहती हो? इस पर विष्णुप्रिया लक्ष्मी बोलीं- जिस घर में कलह-क्लेश नहीं होता, वहां मैं विद्यमान रहती हूं। जिस घर में गृहस्थी का कुशल प्रबंध होता है और जहां सदा स्वच्छता रहती है, मैं उस घर में वास करती हूं। जिस घर में लोग मृदुभाषी और सौहार्द बनाए रखने वाले हैं, मैं वहां निवास करती हूं। जिस परिवार में बड़े-बूढ़ों की सेवा-सुश्रूषा होती है, मैं उस घर में निवास करती हूं। जिस घर के द्वार से कोई भूखा-असहाय खाली नहीं लौटता, मैं वहां वास करती हूं। जहां स्त्रियों का अनादर या शोषण नहीं होता, मैं वहां रहती हूं।

देवी ने श्रीहरि को यह भी बताया कि किस प्रकार के स्त्री-पुरुष उनके प्रिय पात्र होते हैं। जो स्त्री सुख-दुख हर स्थिति में पति का साथ देती है, वह लक्ष्मीजी को प्रिय है। जो पुरुष सदाचारी, कर्मठ, विनयशील, कर्तव्यनिष्ठ एवं पत्नी के प्रति ईमानदार है, वह लक्ष्मीजी की कृपा का पात्र है। कुल मिलाकर, यह निष्कर्ष निकलता है कि भगवती लक्ष्मी सद्गुणों और अच्छे संस्कारों को अपने निमित्त किए जा रहे पूजा-पाठ अर्थात कर्मकांड से अधिक महत्व देती हैं।

हालांकि शास्त्रों में लक्ष्मी-पूजा के लिए अमावस्या तिथि को निषिद्ध माना गया है, किंतु दीपावली में लक्ष्मी-

अर्चना कार्तिक मास की अमावस्या को ही होती है। क्योंकि मान्यता है कि दस महाविद्याओं में लक्ष्मी-स्वरूपा कमला का आविर्भाव इसी तिथि में हुआ। कार्तिक अमावस्या वस्तुत: कमला जयंती है। इसलिए इस दिन कमला (लक्ष्मी) का पूजन शास्त्रोचित है। अमावस की अंधेरी रात में दीपमालिका जलाकर पूजा करने का तात्पर्य है कि ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान का अंधकार समाप्त हो। इसके अतिरिक्त दीपदान के माध्यम से चातुर्मास में सो रहीं लक्ष्मी (भगवान विष्णु की आह्लादिनी शक्ति) को कार्तिक शुक्ल (देवोत्थान) एकादशी से पूर्व लोकहितार्थ जगाया जाता है। जिस प्रकार एक गृहिणी गृहस्वामी से पहले जागकर अपने कार्य में तत्पर हो जाती है, उसी तरह कार्तिकी अमावस्या के दिन श्रीहरि की अद्र्र्धागिनी उनसे ग्यारह दिन पूर्व जाग जाती हैं।
लक्ष्मीजी का जागरण दीपमालिका को प्र”वलित करने से होता है, अत: कमला जयंती दीपावली के रूप में लोक-विख्यात हो गई। कमल के आसन पर विराजमान, हाथ में कमल पुष्प लिए हुए कमल द्वारा पूजित भगवती कमला साक्षात लक्ष्मी ही हैं। जिस प्रकार कमल कीचड़ में खिलता है, उसी प्रकार कर्मयोगी विपरीत परिस्थितियों से निपटकर लक्ष्य को हासिल कर लेता है।

अत: दीपावली की पूजा का मूल उद्देश्य श्रीमान या लक्ष्मीवान बनना है, न कि केवल धनवान। ज्ञान के आलोक में अंतस का अंधकार (अज्ञान) नष्ट हो जाने पर सद्गुणों का तेज ही मनुष्य को लक्ष्मीवान या श्रीमान बना सकता है। श्री अर्थात लक्ष्मी सिर्फ सदाचारी का ही वरण करती हैं। दुराचारी धनवान भले बन जाए, पर वे श्रीमान (लक्ष्मीवान) कहलाने के अधिकारी नहीं बन सकते। श्रीदेव्यथर्वशीर्ष में महालक्ष्मी गायत्री का उल्लेख है- महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात। जिसका भावार्थ यह है - हम महालक्ष्मी को जानते हैं और उन सर्वशक्तिरूपिणी का ही ध्यान करते हैं। वह देवी हमें सत्प्रेरणा देकर सत्कर्र्मो में प्रवृत्त करें। दीपावली-पूजा में ही हमारा यही संकल्प होना चाहिए।

Tuesday, October 8, 2013

अच्छा बोले तो लगेगा अच्छा

हम जो कुछ भी बोलते हैं, उसका असर केवल दूसरों पर ही नहीं, हमारे ऊपर भी पड़ता है। इसीलिए अपनी बोलचाल में हमें नकारात्मक वाक्यों से बचना चाहिए।

अकसर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है..आज का दिन ही खराब है..। कहीं आपको भी ऐसी बातें करने की आदत तो नहीं? नहीं है तो अच्छी बात है, लेकिन अगर सचमुच ऐसा है तो आपको अभी से इसे बदलने के मिशन में जुट जाना चाहिए क्योंकि लगातार लंबे समय तक ऐसे नकारात्मक जुमले बोलते रहने से खुद हमारे भीतर नकारात्मकता घर कर लेती है और हमें इसका अंदाजा भी नहीं होता।

पहले तोलें फिर बोलें
आपने अपने आसपास बुजुर्गो को कहते सुना होगा-'अरे! शुभ-शुभ बोलो।' इस छोटे से वाक्य के पीछे उनकी यही मंशा रही होगी कि अगर हम अच्छा बोलेंगे तो केवल हमें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी अच्छा लगेगा और घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहेगा।

आपने भी यह महसूस किया होगा कि अकसर शिकायतें और नकारात्मक बातें करने वाले लोगों से उनके परिचित, दोस्त और रिश्तेदार कतराने लगते हैं क्योंकि वही रोज-रोज की बोरिंग और घिसी-पिटी बातें माहौल को सुस्त और बोझिल बनाने लगती हैं। बैंक में कार्यरत संगीता शर्मा अपनी एक ऐसी ही कलीग का जिक्र करती हैं कि किस तरह सुबह बैंक पहुंचते ही उनकी बोरिंग राम कहानी शुरू हो जाती है, 'मैं तो कामवालियों से तंग आ गई हूं, जब देखो तब बिना बताए छुट्टी कर लेती हैं, महंगाई कितनी बढ़ गई है, गोभी 40 रुपये किलो मिल रही है.. ऐसे में इंसान क्या खाए? उफ् ! ये कमबख्त मौसम..कितनी जानलेवा गर्मी है..कंप्यूटर का यह माउस भी काम नहीं करता..।' यहां आशय सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों को दुनिया के सभी सजीव-निर्जीव वस्तुओं से कोई न कोई शिकायत होती है, पर उन्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि कोई उनकी ऐसी बोरिंग बातें सुनना भी चाहता है या नहीं?'

इस मूड का क्या करें
कुछ लोगों का मूड छोटी-छोटी बातों से बहुत जल्दी खराब होने लगता है। रास्ते में ट्रैफिक जाम हो या घर पर अपना मोबाइल भूल गए हों इतनी छोटी सी बातें भी उनका मूड खराब करने के लिए काफी होती हैं।

इस संबंध में मैनेजमेंट गुरु प्रमोद बत्रा कहते हैं, 'अव्यवस्थित रहने की आदत भी मूड खराब होने का बहुत बड़ा कारण है। अगर हम ट्रैफिक जाम से बचने के लिए समय से थोड़ा पहले घर से निकलें, अपनी सारी चीजें हमेशा सही जगह पर रखें और सोने-जागने का समय निश्चित रखें तो ऐसी छोटी-छोटी परेशानियां काफी हद तक कम हो जाएंगी। जहां तक दूसरों की वजह से मूड खराब होने की बात है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया हमारे अनुसार नहीं चल सकती, बल्कि हमें खुद को हालात के अनुकूल ढालना होगा। आप पहले से यह मानकर चलें कि मूड खराब करने वाले लोग आपको हर कदम पर मिलेंगे। ऐसे लोगों से निबटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनकी बातों को दिल पर न लें। सुबह सोकर उठने के बाद रोजाना खुद से कहें कि आज का दिन बहुत अच्छा बीतेगा। यह तरीका आजमा कर देखें, इससे आप निश्चित रूप से बहुत अच्छा महसूस करेंगे।

मनोविज्ञान की नजर में
इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. सुरभि सोनी कहती है, 'लगातार ऐसी बातें करने या सुनने से हमारे सोचने-समझने की पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि यह आदत केवल आप तक ही सीमित नहीं रहती। जब बच्चे अपने माता-पिता के मुंह से ऐसी बातें सुनते हैं तो अनजाने में वे वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए अपने बच्चों की खातिर भी यह आदत बदलना बहुत जरूरी है। अगर सचमुच आपके सामने कोई समस्या हो तो बार-बार उसके बारे में बातें करने से उसका हल ढूंढ़ना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि हर समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर होता है।'


वल दूसरों पर ही नहीं, हमारे ऊपर भी पड़ता है। इसीलिए अपनी बोलचाल में हमें नकारात्मक वाक्यों से बचना चाहिए।

अकसर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है..आज का दिन ही खराब है..। कहीं आपको भी ऐसी बातें करने की आदत तो नहीं? नहीं है तो अच्छी बात है, लेकिन अगर सचमुच ऐसा है तो आपको अभी से इसे बदलने के मिशन में जुट जाना चाहिए क्योंकि लगातार लंबे समय तक ऐसे नकारात्मक जुमले बोलते रहने से खुद हमारे भीतर नकारात्मकता घर कर लेती है और हमें इसका अंदाजा भी नहीं होता।

पहले तोलें फिर बोलें

आपने अपने आसपास बुजुर्गो को कहते सुना होगा-'अरे! शुभ-शुभ बोलो।' इस छोटे से वाक्य के पीछे उनकी यही मंशा रही होगी कि अगर हम अच्छा बोलेंगे तो केवल हमें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी अच्छा लगेगा और घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहेगा।

आपने भी यह महसूस किया होगा कि अकसर शिकायतें और नकारात्मक बातें करने वाले लोगों से उनके परिचित, दोस्त और रिश्तेदार कतराने लगते हैं क्योंकि वही रोज-रोज की बोरिंग और घिसी-पिटी बातें माहौल को सुस्त और बोझिल बनाने लगती हैं। बैंक में कार्यरत संगीता शर्मा अपनी एक ऐसी ही कलीग का जिक्र करती हैं कि किस तरह सुबह बैंक पहुंचते ही उनकी बोरिंग राम कहानी शुरू हो जाती है, 'मैं तो कामवालियों से तंग आ गई हूं, जब देखो तब बिना बताए छुट्टी कर लेती हैं, महंगाई कितनी बढ़ गई है, गोभी 40 रुपये किलो मिल रही है.. ऐसे में इंसान क्या खाए? उफ् ! ये कमबख्त मौसम..कितनी जानलेवा गर्मी है..कंप्यूटर का यह माउस भी काम नहीं करता..।' यहां आशय सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों को दुनिया के सभी सजीव-निर्जीव वस्तुओं से कोई न कोई शिकायत होती है, पर उन्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि कोई उनकी ऐसी बोरिंग बातें सुनना भी चाहता है या नहीं?'

इस मूड का क्या करें

कुछ लोगों का मूड छोटी-छोटी बातों से बहुत जल्दी खराब होने लगता है। रास्ते में ट्रैफिक जाम हो या घर पर अपना मोबाइल भूल गए हों इतनी छोटी सी बातें भी उनका मूड खराब करने के लिए काफी होती हैं।

इस संबंध में मैनेजमेंट गुरु प्रमोद बत्रा कहते हैं, 'अव्यवस्थित रहने की आदत भी मूड खराब होने का बहुत बड़ा कारण है। अगर हम ट्रैफिक जाम से बचने के लिए समय से थोड़ा पहले घर से निकलें, अपनी सारी चीजें हमेशा सही जगह पर रखें और सोने-जागने का समय निश्चित रखें तो ऐसी छोटी-छोटी परेशानियां काफी हद तक कम हो जाएंगी। जहां तक दूसरों की वजह से मूड खराब होने की बात है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया हमारे अनुसार नहीं चल सकती, बल्कि हमें खुद को हालात के अनुकूल ढालना होगा। आप पहले से यह मानकर चलें कि मूड खराब करने वाले लोग आपको हर कदम पर मिलेंगे। ऐसे लोगों से निबटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनकी बातों को दिल पर न लें। सुबह सोकर उठने के बाद रोजाना खुद से कहें कि आज का दिन बहुत अच्छा बीतेगा। यह तरीका आजमा कर देखें, इससे आप निश्चित रूप से बहुत अच्छा महसूस करेंगे।'

मनोविज्ञान की नजर में

इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. सुरभि सोनी कहती है, 'लगातार ऐसी बातें करने या सुनने से हमारे सोचने-समझने की पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि यह आदत केवल आप तक ही सीमित नहीं रहती। जब बच्चे अपने माता-पिता के मुंह से ऐसी बातें सुनते हैं तो अनजाने में वे वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए अपने बच्चों की खातिर भी यह आदत बदलना बहुत जरूरी है। अगर सचमुच आपके सामने कोई समस्या हो तो बार-बार उसके बारे में बातें करने से उसका हल ढूंढ़ना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि हर समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर होता है।'
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Friday, September 27, 2013

महिलाओं को सम्मान देना हमारी परंपरा है


कथाओं-पुराणों की बात करें तो भारत देश में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। उसे शक्ति का अवतार माना जाता है। मंदिरों में संगमरमर की प्रतिमाओं के समक्ष सारे लोग झुकते हैं। परंतु हकीकत व्यवहार में इसके विपरीत है। स्त्रियों को इस दौर में कमजोर ही मानी जा रहा है। अपने अधिकारों के प्रति सजग है भी तो उन अधिकारों का उपयोग करने के लिए वह पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं होती।

वर्तमान में निश्चित कुछ प्रतिशत महिलाओं के बारे में जरूर ये कहा जा सकता है कि वे वैचारिक तथा आर्थिक रूप से सुदृढ़ हैं। लेकिन आबादी का एक बड़ा प्रतिशत जो मध्यमवर्गीय है या उससे भी निचले स्तर पर जीता है, वहाँ की स्त्रियाँ आज भी काठ की पुतलियाँ भर हैं। पुरुषों का दंभ स्त्री को वो सम्मान नहीं दे पाया है जिसकी वो हकदार हैं। हमारे समाज में यह तो आम बात है कि यदि पत्नी पति से ज्यादा क्वालीफाइड है या दुनिया देखने का उसका नजरिया अधिक व्यापक है, तो पति स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगता है। तब पत्नी के गुणों को बड़े दिल से स्वीकारने की बजाय वह उसे दबाकर रखने का हरसंभव प्रयास करता है। आखिर ऐसा क्यों नारी को पृथ्वी की तरह सहनशक्ति वाली और क्षमाशील कहा गया है, वो स्वयं बंधन में सुखी रहती है। पिता का सुरक्षा देना, पति का अधिकार जताना, बच्चों का निश्चल स्नेहबंध उसे अच्छा लगता है। वह इतने सारे रिश्तों में घिरी निर्बल हो जाती है। पर हर रिश्ते को पूरी शिद्दत के साथ निभाती स्त्री कई बार कई स्थितियों में अपने आपको अकेला या असहाय ही महसूस करती है। सिक्के का दूसरा पहलू सुकून देता है। जहाँ पुरुषों के एक छत्र साम्राज्य के बीच अपने वजूद को स्थापित करती नारी या इतिहास के पन्नों में अपनी जगह दर्ज करती जा रही नारियों की एक लंबी फेहरिस्त है, जो निरंतर बढ़ रही है।

अपने दायित्व एवं कर्तव्यों को निर्वाह करती स्त्री आत्मनिर्भर भी हो रही है। लेकिन आज भी उसे अपना स्पेस नहीं मिल पा रहा है। जरूरत इस बात की है कि हम स्त्री समाज के लिए सकारात्मक सहयोगात्मक दृष्टिकोण रखते हुए नए सिरे से उनके लिए सोचें। स्त्री के रूप में हर रिश्ते को सम्मान दें, क्योंकि वो उसका हक है। तभी जाकर भारतीय समाज में लिंग के आधार पर पुरुष और स्त्री में भेदभाव के अंतर को कम किया जा सकता है।