Friday, October 25, 2013

किस घर आती हैं लक्ष्मी



जहां स्वच्छता, पति-पत्नी में प्रेम-भाव, बुजुर्र्गो के प्रति सम्मान और सौहार्द की भावना होती है, वहीं लक्ष्मी निवास करती हैं। अत: लक्ष्मीवान बनने के लिए जरूरी है कि सद्गुणों व संस्कारों को विकसित किया जाए। 3 नवंबर को दीपावली है, इस अवसर पर डॉ. अतुल टंडन का आलेख..

आजकल लोग भगवती लक्ष्मी को केवल धनागम के लिए पूज रहे हैं, जबकि धन-संपत्ति उनकी विभूति मात्र है। हम लक्ष्मी को धन का पर्याय समझने की भूल कर बैठे हैं। सच तो यह है कि धन केवल इन देवी की एक कला (अंश) मात्र है। इसलिए धनवान होना और लक्ष्मीवान होना, ये दो अलग-अलग बातें हैं। सही मायनों में लक्ष्मी का पर्यायवाची शब्द केवल श्री है। वेद में वर्णित श्रीसूक्त की ऋचाओं के द्वारा लक्ष्मीजी का आह्वान किया जाता है। भगवती की अनुकंपा से धन-संपत्ति के साथ-साथ प्रतिष्ठा, निरोगता, सद्बुद्धि, सुख, शांति और वैभव की प्राप्ति भी होती है। इसी कारण युगों से मानव श्रीमान बनने की कामना करता रहा है, किंतु सच्चा श्रीमान वही है, जो धन पाने के बाद धर्म के पथ से विमुख न हो। यानी अहंकार के वशीभूत होकर बुरे कर्म न करे। स्वार्थी होने के बजाय परमार्थी बने।

दीपावली की पूजा में हम प्रार्थना करते हैं कि भगवती लक्ष्मी हमारे घर पधारें, लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि लक्ष्मीजी कहां निवास करना चाहती हैं? पुराणों में इस संदर्भ में एक आख्यान मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी से पूछा - दे देवि, क्या करने से तुम अचल होकर घर में रहती हो? इस पर विष्णुप्रिया लक्ष्मी बोलीं- जिस घर में कलह-क्लेश नहीं होता, वहां मैं विद्यमान रहती हूं। जिस घर में गृहस्थी का कुशल प्रबंध होता है और जहां सदा स्वच्छता रहती है, मैं उस घर में वास करती हूं। जिस घर में लोग मृदुभाषी और सौहार्द बनाए रखने वाले हैं, मैं वहां निवास करती हूं। जिस परिवार में बड़े-बूढ़ों की सेवा-सुश्रूषा होती है, मैं उस घर में निवास करती हूं। जिस घर के द्वार से कोई भूखा-असहाय खाली नहीं लौटता, मैं वहां वास करती हूं। जहां स्त्रियों का अनादर या शोषण नहीं होता, मैं वहां रहती हूं।

देवी ने श्रीहरि को यह भी बताया कि किस प्रकार के स्त्री-पुरुष उनके प्रिय पात्र होते हैं। जो स्त्री सुख-दुख हर स्थिति में पति का साथ देती है, वह लक्ष्मीजी को प्रिय है। जो पुरुष सदाचारी, कर्मठ, विनयशील, कर्तव्यनिष्ठ एवं पत्नी के प्रति ईमानदार है, वह लक्ष्मीजी की कृपा का पात्र है। कुल मिलाकर, यह निष्कर्ष निकलता है कि भगवती लक्ष्मी सद्गुणों और अच्छे संस्कारों को अपने निमित्त किए जा रहे पूजा-पाठ अर्थात कर्मकांड से अधिक महत्व देती हैं।

हालांकि शास्त्रों में लक्ष्मी-पूजा के लिए अमावस्या तिथि को निषिद्ध माना गया है, किंतु दीपावली में लक्ष्मी-

अर्चना कार्तिक मास की अमावस्या को ही होती है। क्योंकि मान्यता है कि दस महाविद्याओं में लक्ष्मी-स्वरूपा कमला का आविर्भाव इसी तिथि में हुआ। कार्तिक अमावस्या वस्तुत: कमला जयंती है। इसलिए इस दिन कमला (लक्ष्मी) का पूजन शास्त्रोचित है। अमावस की अंधेरी रात में दीपमालिका जलाकर पूजा करने का तात्पर्य है कि ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान का अंधकार समाप्त हो। इसके अतिरिक्त दीपदान के माध्यम से चातुर्मास में सो रहीं लक्ष्मी (भगवान विष्णु की आह्लादिनी शक्ति) को कार्तिक शुक्ल (देवोत्थान) एकादशी से पूर्व लोकहितार्थ जगाया जाता है। जिस प्रकार एक गृहिणी गृहस्वामी से पहले जागकर अपने कार्य में तत्पर हो जाती है, उसी तरह कार्तिकी अमावस्या के दिन श्रीहरि की अद्र्र्धागिनी उनसे ग्यारह दिन पूर्व जाग जाती हैं।
लक्ष्मीजी का जागरण दीपमालिका को प्र”वलित करने से होता है, अत: कमला जयंती दीपावली के रूप में लोक-विख्यात हो गई। कमल के आसन पर विराजमान, हाथ में कमल पुष्प लिए हुए कमल द्वारा पूजित भगवती कमला साक्षात लक्ष्मी ही हैं। जिस प्रकार कमल कीचड़ में खिलता है, उसी प्रकार कर्मयोगी विपरीत परिस्थितियों से निपटकर लक्ष्य को हासिल कर लेता है।

अत: दीपावली की पूजा का मूल उद्देश्य श्रीमान या लक्ष्मीवान बनना है, न कि केवल धनवान। ज्ञान के आलोक में अंतस का अंधकार (अज्ञान) नष्ट हो जाने पर सद्गुणों का तेज ही मनुष्य को लक्ष्मीवान या श्रीमान बना सकता है। श्री अर्थात लक्ष्मी सिर्फ सदाचारी का ही वरण करती हैं। दुराचारी धनवान भले बन जाए, पर वे श्रीमान (लक्ष्मीवान) कहलाने के अधिकारी नहीं बन सकते। श्रीदेव्यथर्वशीर्ष में महालक्ष्मी गायत्री का उल्लेख है- महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात। जिसका भावार्थ यह है - हम महालक्ष्मी को जानते हैं और उन सर्वशक्तिरूपिणी का ही ध्यान करते हैं। वह देवी हमें सत्प्रेरणा देकर सत्कर्र्मो में प्रवृत्त करें। दीपावली-पूजा में ही हमारा यही संकल्प होना चाहिए।

Tuesday, October 8, 2013

अच्छा बोले तो लगेगा अच्छा

हम जो कुछ भी बोलते हैं, उसका असर केवल दूसरों पर ही नहीं, हमारे ऊपर भी पड़ता है। इसीलिए अपनी बोलचाल में हमें नकारात्मक वाक्यों से बचना चाहिए।

अकसर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है..आज का दिन ही खराब है..। कहीं आपको भी ऐसी बातें करने की आदत तो नहीं? नहीं है तो अच्छी बात है, लेकिन अगर सचमुच ऐसा है तो आपको अभी से इसे बदलने के मिशन में जुट जाना चाहिए क्योंकि लगातार लंबे समय तक ऐसे नकारात्मक जुमले बोलते रहने से खुद हमारे भीतर नकारात्मकता घर कर लेती है और हमें इसका अंदाजा भी नहीं होता।

पहले तोलें फिर बोलें
आपने अपने आसपास बुजुर्गो को कहते सुना होगा-'अरे! शुभ-शुभ बोलो।' इस छोटे से वाक्य के पीछे उनकी यही मंशा रही होगी कि अगर हम अच्छा बोलेंगे तो केवल हमें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी अच्छा लगेगा और घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहेगा।

आपने भी यह महसूस किया होगा कि अकसर शिकायतें और नकारात्मक बातें करने वाले लोगों से उनके परिचित, दोस्त और रिश्तेदार कतराने लगते हैं क्योंकि वही रोज-रोज की बोरिंग और घिसी-पिटी बातें माहौल को सुस्त और बोझिल बनाने लगती हैं। बैंक में कार्यरत संगीता शर्मा अपनी एक ऐसी ही कलीग का जिक्र करती हैं कि किस तरह सुबह बैंक पहुंचते ही उनकी बोरिंग राम कहानी शुरू हो जाती है, 'मैं तो कामवालियों से तंग आ गई हूं, जब देखो तब बिना बताए छुट्टी कर लेती हैं, महंगाई कितनी बढ़ गई है, गोभी 40 रुपये किलो मिल रही है.. ऐसे में इंसान क्या खाए? उफ् ! ये कमबख्त मौसम..कितनी जानलेवा गर्मी है..कंप्यूटर का यह माउस भी काम नहीं करता..।' यहां आशय सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों को दुनिया के सभी सजीव-निर्जीव वस्तुओं से कोई न कोई शिकायत होती है, पर उन्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि कोई उनकी ऐसी बोरिंग बातें सुनना भी चाहता है या नहीं?'

इस मूड का क्या करें
कुछ लोगों का मूड छोटी-छोटी बातों से बहुत जल्दी खराब होने लगता है। रास्ते में ट्रैफिक जाम हो या घर पर अपना मोबाइल भूल गए हों इतनी छोटी सी बातें भी उनका मूड खराब करने के लिए काफी होती हैं।

इस संबंध में मैनेजमेंट गुरु प्रमोद बत्रा कहते हैं, 'अव्यवस्थित रहने की आदत भी मूड खराब होने का बहुत बड़ा कारण है। अगर हम ट्रैफिक जाम से बचने के लिए समय से थोड़ा पहले घर से निकलें, अपनी सारी चीजें हमेशा सही जगह पर रखें और सोने-जागने का समय निश्चित रखें तो ऐसी छोटी-छोटी परेशानियां काफी हद तक कम हो जाएंगी। जहां तक दूसरों की वजह से मूड खराब होने की बात है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया हमारे अनुसार नहीं चल सकती, बल्कि हमें खुद को हालात के अनुकूल ढालना होगा। आप पहले से यह मानकर चलें कि मूड खराब करने वाले लोग आपको हर कदम पर मिलेंगे। ऐसे लोगों से निबटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनकी बातों को दिल पर न लें। सुबह सोकर उठने के बाद रोजाना खुद से कहें कि आज का दिन बहुत अच्छा बीतेगा। यह तरीका आजमा कर देखें, इससे आप निश्चित रूप से बहुत अच्छा महसूस करेंगे।

मनोविज्ञान की नजर में
इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. सुरभि सोनी कहती है, 'लगातार ऐसी बातें करने या सुनने से हमारे सोचने-समझने की पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि यह आदत केवल आप तक ही सीमित नहीं रहती। जब बच्चे अपने माता-पिता के मुंह से ऐसी बातें सुनते हैं तो अनजाने में वे वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए अपने बच्चों की खातिर भी यह आदत बदलना बहुत जरूरी है। अगर सचमुच आपके सामने कोई समस्या हो तो बार-बार उसके बारे में बातें करने से उसका हल ढूंढ़ना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि हर समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर होता है।'


वल दूसरों पर ही नहीं, हमारे ऊपर भी पड़ता है। इसीलिए अपनी बोलचाल में हमें नकारात्मक वाक्यों से बचना चाहिए।

अकसर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है..आज का दिन ही खराब है..। कहीं आपको भी ऐसी बातें करने की आदत तो नहीं? नहीं है तो अच्छी बात है, लेकिन अगर सचमुच ऐसा है तो आपको अभी से इसे बदलने के मिशन में जुट जाना चाहिए क्योंकि लगातार लंबे समय तक ऐसे नकारात्मक जुमले बोलते रहने से खुद हमारे भीतर नकारात्मकता घर कर लेती है और हमें इसका अंदाजा भी नहीं होता।

पहले तोलें फिर बोलें

आपने अपने आसपास बुजुर्गो को कहते सुना होगा-'अरे! शुभ-शुभ बोलो।' इस छोटे से वाक्य के पीछे उनकी यही मंशा रही होगी कि अगर हम अच्छा बोलेंगे तो केवल हमें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी अच्छा लगेगा और घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहेगा।

आपने भी यह महसूस किया होगा कि अकसर शिकायतें और नकारात्मक बातें करने वाले लोगों से उनके परिचित, दोस्त और रिश्तेदार कतराने लगते हैं क्योंकि वही रोज-रोज की बोरिंग और घिसी-पिटी बातें माहौल को सुस्त और बोझिल बनाने लगती हैं। बैंक में कार्यरत संगीता शर्मा अपनी एक ऐसी ही कलीग का जिक्र करती हैं कि किस तरह सुबह बैंक पहुंचते ही उनकी बोरिंग राम कहानी शुरू हो जाती है, 'मैं तो कामवालियों से तंग आ गई हूं, जब देखो तब बिना बताए छुट्टी कर लेती हैं, महंगाई कितनी बढ़ गई है, गोभी 40 रुपये किलो मिल रही है.. ऐसे में इंसान क्या खाए? उफ् ! ये कमबख्त मौसम..कितनी जानलेवा गर्मी है..कंप्यूटर का यह माउस भी काम नहीं करता..।' यहां आशय सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों को दुनिया के सभी सजीव-निर्जीव वस्तुओं से कोई न कोई शिकायत होती है, पर उन्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि कोई उनकी ऐसी बोरिंग बातें सुनना भी चाहता है या नहीं?'

इस मूड का क्या करें

कुछ लोगों का मूड छोटी-छोटी बातों से बहुत जल्दी खराब होने लगता है। रास्ते में ट्रैफिक जाम हो या घर पर अपना मोबाइल भूल गए हों इतनी छोटी सी बातें भी उनका मूड खराब करने के लिए काफी होती हैं।

इस संबंध में मैनेजमेंट गुरु प्रमोद बत्रा कहते हैं, 'अव्यवस्थित रहने की आदत भी मूड खराब होने का बहुत बड़ा कारण है। अगर हम ट्रैफिक जाम से बचने के लिए समय से थोड़ा पहले घर से निकलें, अपनी सारी चीजें हमेशा सही जगह पर रखें और सोने-जागने का समय निश्चित रखें तो ऐसी छोटी-छोटी परेशानियां काफी हद तक कम हो जाएंगी। जहां तक दूसरों की वजह से मूड खराब होने की बात है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया हमारे अनुसार नहीं चल सकती, बल्कि हमें खुद को हालात के अनुकूल ढालना होगा। आप पहले से यह मानकर चलें कि मूड खराब करने वाले लोग आपको हर कदम पर मिलेंगे। ऐसे लोगों से निबटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनकी बातों को दिल पर न लें। सुबह सोकर उठने के बाद रोजाना खुद से कहें कि आज का दिन बहुत अच्छा बीतेगा। यह तरीका आजमा कर देखें, इससे आप निश्चित रूप से बहुत अच्छा महसूस करेंगे।'

मनोविज्ञान की नजर में

इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. सुरभि सोनी कहती है, 'लगातार ऐसी बातें करने या सुनने से हमारे सोचने-समझने की पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि यह आदत केवल आप तक ही सीमित नहीं रहती। जब बच्चे अपने माता-पिता के मुंह से ऐसी बातें सुनते हैं तो अनजाने में वे वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए अपने बच्चों की खातिर भी यह आदत बदलना बहुत जरूरी है। अगर सचमुच आपके सामने कोई समस्या हो तो बार-बार उसके बारे में बातें करने से उसका हल ढूंढ़ना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि हर समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर होता है।'
- See more at: http://www.jagran.com/house-tips/dont-argue-others-10771002.html#sthash.ccjwBiQE.dpuf