क्या चीज है ये अंक भी। एक-एक अंक अपने अंक में कैसी कैसी विशेषताएं, कैसे कैसे रहस्य लिए दुनिया को नचातो रहते हैं। हमारी संस्क2ति में, हमारे जीवन में, हमारे जगत में इस अंक विशेष का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सूर्य के रथ में साथ घोड़ों का जिक्र आता है। प्रकाश में सात रंग होते हैं। सुर में सात स्वर, सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि, यानी षड़ज, ऋषभ, गंधार, माध्यम, पंचम निषाद होते हैं।
सात लोकों, भू, भुवः स्वः, महः, जन, तप और सत्य का वर्णन मिलता है। पाताल भी सात ही गिनाये गए हैं जैसे अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। सात द्विपों के साथ-साथ सात समुद्रों का अस्तित्व है। सात ही पदार्थ, गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, म2दंग, दर्पण और मणि, शुभ माने जाते हैं। सात क्रियाएं, शौच, मुखशुदृधी, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन तथा निद्रा आवश्यक होती हैं। इन सात जनों ईश्वर, माता, पिता, गुरु, सूर्य, अग्नि तथा अतिथि का सम्मान करने के साथ-साथ इन सात विकारों का ईष्र्या, क्रोध, मोह, द्वेष, लोभी, घ2णा तथा कुविचारों का त्याग करना चाहिए। हमारे वेदों में स्नान भी सात ही प्रकार के बताए गए हैं। यथा मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्नि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान और मानसिक स्नान।
शायद इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने वैदिक रीति से होने वाले विवाहों में सात फेरों तथा सात वचनों का प्रावधान रखा था। वैदिक नियमों के अनुसार अपने परिजनों की साक्षी में वर वधु पवित्र अग्नि के सात फेरे लेकर सात बचनों को निभाने का प्रण करते हैं। दोनों मिल कर यह कामना करते हैं कि हमें सदा सातों ऋषियों का आशीर्वाद मिलता रहे। हमारा प्रेम सात समुंदरों जैसा गहरा हो। निश दिन उसमें सातों सुरों का संगीत गुंजायमान हो। जीवन में सदा सातों रंगों का प्रकाश विद्यमान रहे। हमारी ख्याति सातों लोकों में फैल जाए।
सात लोकों, भू, भुवः स्वः, महः, जन, तप और सत्य का वर्णन मिलता है। पाताल भी सात ही गिनाये गए हैं जैसे अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। सात द्विपों के साथ-साथ सात समुद्रों का अस्तित्व है। सात ही पदार्थ, गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, म2दंग, दर्पण और मणि, शुभ माने जाते हैं। सात क्रियाएं, शौच, मुखशुदृधी, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन तथा निद्रा आवश्यक होती हैं। इन सात जनों ईश्वर, माता, पिता, गुरु, सूर्य, अग्नि तथा अतिथि का सम्मान करने के साथ-साथ इन सात विकारों का ईष्र्या, क्रोध, मोह, द्वेष, लोभी, घ2णा तथा कुविचारों का त्याग करना चाहिए। हमारे वेदों में स्नान भी सात ही प्रकार के बताए गए हैं। यथा मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्नि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान और मानसिक स्नान।
शायद इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने वैदिक रीति से होने वाले विवाहों में सात फेरों तथा सात वचनों का प्रावधान रखा था। वैदिक नियमों के अनुसार अपने परिजनों की साक्षी में वर वधु पवित्र अग्नि के सात फेरे लेकर सात बचनों को निभाने का प्रण करते हैं। दोनों मिल कर यह कामना करते हैं कि हमें सदा सातों ऋषियों का आशीर्वाद मिलता रहे। हमारा प्रेम सात समुंदरों जैसा गहरा हो। निश दिन उसमें सातों सुरों का संगीत गुंजायमान हो। जीवन में सदा सातों रंगों का प्रकाश विद्यमान रहे। हमारी ख्याति सातों लोकों में फैल जाए।
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