Saturday, September 3, 2011

जाने भी दो यारों

डीके मिश्र
बदले की भावना एकदम आम बात है, लेकिन बदला लेना बेहद नकारात्मक विशय है। यह भाव इस हद तक नकारात्मक है कि इससे पीडि़त व्यक्ति को डिप्रेशन तक हो सकता है। जिंदगी में ऐसे बातों को भूल जाना ही अच्छा रहता है। ऐसा नहीं करने पर यह कभी भी ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है।

जहां बात प्रेम की हो और यह दांपत्य प्रेम से संबंधित हो तो बदले की भावना किसी भी सूरत में नहीं रखनी चाहिए। बचपन में नैतिक शिक्शा के पाठों में यह बात हम सभी को खूब सिखाई गई है। जहां तक बात व्यावहारिक जिंदगी की है शायद ही कोई इस भाव से बच सके।

एक शोध की मानें तो इंसान को दूसरों के बुरे बर्ताव के लिए उन्हें सजा देकर खुशी मिलती है। इस खुशी की संभावना के बारे में सोचते ही हम बदला लेने के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं। अमेरिकन इसे एल्टूसिक पनिशमेंट कहते हैं। रिसर्च के अनुसार यदि एक इंसान के साथ धोखा होता है तो जाहिर है उसे बुरा लगता है। लेकिन अगर उसके साथ धोखा करने वाले को सजा न मिले तो उसे और भी ज्यादा बुरा लगता है।

साइकोलाॅजिस्ट डा. सीमा शर्मा कहती हैं, बदले की भावना स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन इसकी हैंडलिंग सही तरीके से किया जाना ज्यादा जरूरी है। मसलन अगर आपके आॅफिस में कोई आपके खिलाफ साजिश कर रहा है तो आप उसकी हैंडलिंग दो तरह से करते हैं। या तो आप उस व्यक्ति कि खिलाफ खुद साजिश करने में अपना समय बर्बाद कर सकते हैं या फिर काॅन्फिडेंस ओर सतर्कता के साथ आगे बढ़ते हुए अपने काम को और बेहतर बना सकते हैं।

बदले की भावना प्यार में धोखे के मामले में भी काफी ज्यादा देखी जाती है। ऐसे कई केस जीवन में सामने आते हैं जहां लव अफेयर्स में धोखा और उसके बाद बदले की भावना सामने आती है। ऐसे मामलों में सबकुछ छोड़कर आगे बढ़ना अच्छा हैं। ऐसा नहीं है कि धोखा देने वाले ने अकेले सब कुछ कर लिया हो। इसमें कहीं न कहीं धोखा खाने वाले की भी गलती होती है।

किसी न किसी वाक्ये में उसे जरूर पता चला होगा कि सामने वाला उसके लिए वफादार नहीं है। जानने के बाद भी यदि उसने नजरअंदाज किया तो इसमें उसकी भी उतनी ही गलती है, जितनी दूसरे की। इसके अलावा जिंदगी में हर चीज जिसे आप चाहें, आपको मिल नहीं सकती। यहां दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने की भी जरूरत है। उसे समझने की जरूरत है।

कैसे बचाए खुद को इस भाव से
- बदले का भाव क्यों आता है इसे जानने की कोशिश करें।
-कभी भी ऐसा महसूस हो तो खुद को सबसे पहले शांत करें।
- समस्या क्या है उसे जाने और उसके समाधान पर जोर दें।
- ये भी देखें कि पूरे वाक्ये में खुद की गलती कहां है।
- फिर उसी के अनुरूप अपना रोल तय करें।

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