Tuesday, May 8, 2012

संग संग हम दम

पं. महेश शर्मा

शादी को लेकर आजके युवा काफी कंषस हो गए हैं। वह अब सुंदर और केयर करने के साथ जिंदगी के हर मोड़ पर साझीदार बन सकने वाली पत्नी की चाहत रखते हैं। वह समझदार और आर्थिक मामलों में सहयोगी होने की क्षमता रखने वाली हो। ठीक उसी तरह लड़कियों की पसंद में भी बदलाव आया है। लड़कियों को ऐसे लड़के पसंद हैं, जो योग्य हो, सुंदर हो और जमाने के साथ चलने वाला।

यानी षादी केवल रिष्तों को जोड़ने का खेल नहीं, बल्कि सही मायनों में कंधे से कंधे मिलाकर जिंदगी जीने का माध्यम हो गया है। हमसफर षब्द को सही मायने में आज के युवा सही अर्थ दे पा रहे हैं। खासतौर से करिअर के मुदृदे पर समझौता करना उन्हें स्वीकार नहीं है; फिर बात षादी में बंधने की हो या फिर किसी और की इससे कोई फर्क नहीं पडता।

महानगर से लेकर कस्बाई क्षे़त्रों की लड़कियां भी यह मानने लगी हैं कि षादी से पहले करिअर को महत्व देना जरूरी है। अभिभावकों चाहे उन पर कितना दबाव बना लें, लेकिन वे इसे नहीं मानते। ऐसे में अभिभावकों के लिए बेहतर यही होता है कि समय के साथ चलें और युवाओं की सोच के साथ तालमेल बैठाएं।

गीता में भी कहा गया है कि बीता हुआ कल और आने वाले कल में क्या घटित होगा यह तय करना आपके वष में नहीं है। न ही क्या होने वाला है वो आपके सोचने से तय होने वाला है। यह तो कोई और तय करता है। इसकी चिंता आपको करने की जरूरत नहीं है। अगर आप इसकी चिंता करते हैं तो व्यर्थ ही है।

 आपके हिस्से में जो है वह सिर्फ आज है। आज को भरपूर जीने की कोषिष करने में ही समझदारी है। ज्यादातर लोग अपने संबंधों को जोड़ने और बनाने में इसी वजह से विफल साबित होते हैं। वे समय की अविरल धारा को समझ नहीं पाते। और जब आप उसे ढंग से समझेंगे ही नहीं तो सफलता मिलना भी संभव नहीं हो पाता। यह बात अभिभावकों को समझने की जरूरत है। इस मामले में अधिकांष अभिभावक इन्हीं बातों के षिकार हैं।

ऐसे अभिभावक जो समंजस्य बिठकार अरेंज मैरिज कर लेते हैं, वो बहुत हद तक सही भी करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि युवाओं को सबकुछ अपनी मर्जी से करने दें। उनकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए जहां तक संभव हो परंपरा में व्याप्त अच्छाईयों को भी जारी रखा जा सकता है। और यह काम युवाओं को मानसिक रूप से साथ लेकर बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

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