पं. महेश शर्मा
जो लोग बार बार पूछते है कि प्यार क्या है तो उन्हें जरा पीछे मुड़कर देख लेना चाहिए। वैसे भी इस मामले में आम लोगों के अनुभव से भी बहुत कुछ समझा जा सकता है।
कहते हैं न कि प्यार अंधा होता है। मगर षादी आंखें खेल देती हैं। अंग्रेजी निबंधकार बेकन ने कहा था, जिन्होंने षादियां की और बच्चे जने, अपनी किस्मत को उन्होंने किसी अन्य के पास बंधक रख दिया। वह आगे कहते हैं कि स्वयं को एक रात में सात साल अधिक अनुभवी बनाना चाहते हैं तो आपको फौरन षादी कर लेनी चाहिए।
एक दूसरे विचारक का मत है कि जब भी मुझे किसी के विवाह का निमंत्रण मिलता है तो लगता है कि किसी घनिश्ठ मित्र की आत्महत्या का समाचार आया है। सच तो यह है कि षादी कैसी भी हो, है सारी मुसीबतों की जड़।
लव मैरिज और अरेंज्ड मैरिज में यही अंतर है। एक आत्महत्या है तो दूसरी हत्या। बेंसन ने तो यहां तक कहा है कि विवाह के इच्छुक पुरुश को मेरी अंतिम राय है, अरे मूर्ख! अभी भी समय है भाग जाओ। कबीर व रहीम जैसे कामयाब लव गुरुओं ने प्रेम को बहुत गंभीरता से षुरू करने की सलाह दी है। वे आषिक और महबूत दोनों को बार बार चेतावनी देते हैं कि वे प्रेमजाल में न ही फंसे तो बेहतर है, क्योंकि बहुत कठिन है डगर पनघट की। ऐसी चेतावनी हर स्पीड ब्रेकर से पहले लिखी होती है। स्पीड ब्रेकर वहीं लगाए जाते है। जहां दुर्घटना की प्रबल आषंका होती है।
सही मायने में प्रेम का अर्थ ये नहीं है, पर हमारे नायक नायिका प्रेम होते ही षादी के सपने देखने लगते हैं। आज के लवगुरू वहीं टेक्निक सिखाते हैं कि प्रेम के मजे लूटो पर षादी के फंदे में मत फंसो।
तभी तो षादी में बहुत पहले चेतावनी दी जाती है। आजकल सात आठ महीनों तक मंगनी रखी जाती है। भागने की पूरी छूट रहती है। समझदार आदमी चाहे तो षादीषुदा लोगों का सर्वे करके पूछ सकता है कि एक कप चाय की तलब का मारा इंसान चाय का ढांचा खोल ले तो उसकी कैसी दुर्दषा हो जाएगी।
इन बातों से अलग हकीमत में प्यार में केवल दुर्घटनाएं ही नहीं होती हैं। प्यार व षादी इंसान को बहुत कुछ देती भी है। इसलिए बेहतर तो यही है कि आप प्यार करें। जिसे लोग प्यार के नाम पर बंधन, आजादी का क्षीण होना, गुलामी, कम समय में ज्यादा अनुभव पाना कहते हैं, मेरे हिसाब से वही तो जिंदगी है। ये सोचने के अपने अपने मायने हैं। अरे भाई प्यार करेंगे और षादियां होंगी तो बच्चे भी होंगे। इसमें कौन सी नई बात है।
इसलिए संबंध जिम्मेदारी को मुसीबत न समझें। यही तो आपको जीना सिखाता है। एक-दूसरों के लिए। बोध कराता है आपको बहुत कुछ करना है। लव गुरु, कबीर और रहीम बातें बहुत की है पर आपने कभी सोचा है कि लोग षादी न करें तो कैसी जिंदगी होगी।
प्यार ही ऐसी चीज है जो लोगों को आपस में बांधकर रखता है। अनुषासन में रहना सिखाता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में जिम्मेदारियों से भागना नहीं सिखाता। इसलिए षादी करें सबके साथ मिलकर। सभी को साथ लेकर, लेकिल कुछ बातों का ध्यान रखें।
- आप तय कर लें कि अब अकेले की जिंदगी नहीं सामूहिक जिंदगी जीना है।
- मौज मस्ती करेंगे पर पहले की तरह नहीं। सबके साथ मिलकर।
- पारिवारिक जिम्मेदारी पहले उसके बाद कोई और काम।
- पत्नी कोई बंधन नहीं साथी है इसलिए उसे हर मौज मस्ती में अपने साथ रखें।
- ऐसी मौज मस्ती ही क्या जिसमें आपकी पार्टनर आपके साथ न रह सके।
- अगर ऐसा है तो आप भी सही रास्ते पर नहीं है। इसके लिए षादी या प्यार को दोश न दें।
- ये जिम्मेदारी है इसे सलीके से जीना तो पड़ेगा ही। इसमें मनमौजी होने से काम नहीं चलता, क्योंकि यह आपको आदर्ष जीवन देता है।
जो लोग बार बार पूछते है कि प्यार क्या है तो उन्हें जरा पीछे मुड़कर देख लेना चाहिए। वैसे भी इस मामले में आम लोगों के अनुभव से भी बहुत कुछ समझा जा सकता है।
कहते हैं न कि प्यार अंधा होता है। मगर षादी आंखें खेल देती हैं। अंग्रेजी निबंधकार बेकन ने कहा था, जिन्होंने षादियां की और बच्चे जने, अपनी किस्मत को उन्होंने किसी अन्य के पास बंधक रख दिया। वह आगे कहते हैं कि स्वयं को एक रात में सात साल अधिक अनुभवी बनाना चाहते हैं तो आपको फौरन षादी कर लेनी चाहिए।
एक दूसरे विचारक का मत है कि जब भी मुझे किसी के विवाह का निमंत्रण मिलता है तो लगता है कि किसी घनिश्ठ मित्र की आत्महत्या का समाचार आया है। सच तो यह है कि षादी कैसी भी हो, है सारी मुसीबतों की जड़।
लव मैरिज और अरेंज्ड मैरिज में यही अंतर है। एक आत्महत्या है तो दूसरी हत्या। बेंसन ने तो यहां तक कहा है कि विवाह के इच्छुक पुरुश को मेरी अंतिम राय है, अरे मूर्ख! अभी भी समय है भाग जाओ। कबीर व रहीम जैसे कामयाब लव गुरुओं ने प्रेम को बहुत गंभीरता से षुरू करने की सलाह दी है। वे आषिक और महबूत दोनों को बार बार चेतावनी देते हैं कि वे प्रेमजाल में न ही फंसे तो बेहतर है, क्योंकि बहुत कठिन है डगर पनघट की। ऐसी चेतावनी हर स्पीड ब्रेकर से पहले लिखी होती है। स्पीड ब्रेकर वहीं लगाए जाते है। जहां दुर्घटना की प्रबल आषंका होती है।
सही मायने में प्रेम का अर्थ ये नहीं है, पर हमारे नायक नायिका प्रेम होते ही षादी के सपने देखने लगते हैं। आज के लवगुरू वहीं टेक्निक सिखाते हैं कि प्रेम के मजे लूटो पर षादी के फंदे में मत फंसो।
तभी तो षादी में बहुत पहले चेतावनी दी जाती है। आजकल सात आठ महीनों तक मंगनी रखी जाती है। भागने की पूरी छूट रहती है। समझदार आदमी चाहे तो षादीषुदा लोगों का सर्वे करके पूछ सकता है कि एक कप चाय की तलब का मारा इंसान चाय का ढांचा खोल ले तो उसकी कैसी दुर्दषा हो जाएगी।
इन बातों से अलग हकीमत में प्यार में केवल दुर्घटनाएं ही नहीं होती हैं। प्यार व षादी इंसान को बहुत कुछ देती भी है। इसलिए बेहतर तो यही है कि आप प्यार करें। जिसे लोग प्यार के नाम पर बंधन, आजादी का क्षीण होना, गुलामी, कम समय में ज्यादा अनुभव पाना कहते हैं, मेरे हिसाब से वही तो जिंदगी है। ये सोचने के अपने अपने मायने हैं। अरे भाई प्यार करेंगे और षादियां होंगी तो बच्चे भी होंगे। इसमें कौन सी नई बात है।
इसलिए संबंध जिम्मेदारी को मुसीबत न समझें। यही तो आपको जीना सिखाता है। एक-दूसरों के लिए। बोध कराता है आपको बहुत कुछ करना है। लव गुरु, कबीर और रहीम बातें बहुत की है पर आपने कभी सोचा है कि लोग षादी न करें तो कैसी जिंदगी होगी।
प्यार ही ऐसी चीज है जो लोगों को आपस में बांधकर रखता है। अनुषासन में रहना सिखाता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में जिम्मेदारियों से भागना नहीं सिखाता। इसलिए षादी करें सबके साथ मिलकर। सभी को साथ लेकर, लेकिल कुछ बातों का ध्यान रखें।
- आप तय कर लें कि अब अकेले की जिंदगी नहीं सामूहिक जिंदगी जीना है।
- मौज मस्ती करेंगे पर पहले की तरह नहीं। सबके साथ मिलकर।
- पारिवारिक जिम्मेदारी पहले उसके बाद कोई और काम।
- पत्नी कोई बंधन नहीं साथी है इसलिए उसे हर मौज मस्ती में अपने साथ रखें।
- ऐसी मौज मस्ती ही क्या जिसमें आपकी पार्टनर आपके साथ न रह सके।
- अगर ऐसा है तो आप भी सही रास्ते पर नहीं है। इसके लिए षादी या प्यार को दोश न दें।
- ये जिम्मेदारी है इसे सलीके से जीना तो पड़ेगा ही। इसमें मनमौजी होने से काम नहीं चलता, क्योंकि यह आपको आदर्ष जीवन देता है।