पं. महेश शर्मा
जिंदगी की टेढ़ी.मेढ़ी राहों पर संभलकर चलना ही अपने आप में बहुत बड़ी कला है। जिसने इस कला को सीख लियाए उसके लिए दांपत्य जीवन की राहें बहुत आसान हो जाती हैं और जो नहीं सीख पाया उसकी राह के कांटे बढ़ते जाते हैं।
मुश्किल तो तब आती हैए जब इन कठिनाइयों के बीच बच्चे पिसते हैंए जिनका न कोई कसूर होता है और न इतने जानकार होते हैं कि हालात से निपट सकें। फिर आखिर क्या है रास्ताघ् साइकियाट्रिस्ट डाण् विकास सैनी कहते हैंए पति.पत्नी के बीच नोक झोंक या झगड़े होना आम बात है। कई बार यह नोकझोंक और झगड़ा सीमा को पार कर जाता है तो स्थिति बदतर हो जाती है। ऐसे में लोग यह नहीं समझ पाते कि उनके इस झगड़े का उनके बच्चों पर क्या असर पडे़गा।
दरअसल बच्चों के लिए उसके माता.पिता ही उसके सबकुछ होते हैं। वही रोल मॉडल भी होते हैं। ऐसे में यदि माता.पिता के बीच झगड़ा होता हैए तो बच्चा असमंजस में पड़ जाता है कि कौन सही है और कौन गलत। दूसरी बात यह है कि जो माता पिता उन्हें हमेशा शालीन बने रहनेए लड़ाई झगड़ा न करने की सलाह देते हैंए वे खुद बच्चों की तरह लड़ते हैं तो बच्चा दुविधा में ही फंसेगा। इससे बच्चे का विश्वास टूटता है। उसे लगता है कि ये हमें क्या समझाएंगेए इन्हें तो खुद ही लड़ने से फुरसत नहीं है। हमेशा झगड़े के माहौल में रहने से उनमें असुरक्शा की भावना आती है। जबकि विकास के लिए शांत और आपसी सामंजस्य का माहौल सबसे अनुकूल होता है।
यदि उनमें आपस में मारपीट होती है तो इससे बच्चे के अंदर विरक्ति उत्पन्न हो जाती है। वे जीवन में निराशावादी होने लगते हैं। पढ़ाई.लिखाईए खेलकूद में उनका मन नहीं लगता। बच्चा भी लड़ाई झगड़ा देखकर वही सबकुछ सीखता है। लेकिन इस लड़ाई झगड़े का लड़की के ऊपर तो दूरगामी प्रभाव तक पड़ता है। वह इससे यही सबक लेती है कि उसे आत्म निर्भर बनना है और पति की धौंस बिलकुल नहीं सहनी है। या फिर वह शादी ही नहीं करेगी। ऐसे में आगे चलकर उसका वैवाहिक जीवन बहुत सफल नहीं बन पाताए क्योंकि वह सामंजस्य बैठाने की आदी नहीं होती। उसने झुकना सीखा नहींए सबको काबू में करने की मानसिकता पाल ली और अपनी जिंदगी में किसी का दखल उसे बर्दाश्त नहीं। अपनी कमाई अलग रखने की प्रवृत्तिए संयुक्त परिवार में न रहने की मानसिकता। यह सब कुछ लड़की को हिंसकए झगड़ालू बनाती हैं। इसलिए विचारों में आपसी मतभेदों को भुलाकर बच्चों का भी ख्याल रखें ।
.एक दूसरे की समस्या को समझें।
.बच्चों के सामने किसी की आलोचना न करें।
.व्यस्ततम क्शणों में कुछ समय निकालें और रचनात्मक कार्यों में लगाएं।
जिंदगी की टेढ़ी.मेढ़ी राहों पर संभलकर चलना ही अपने आप में बहुत बड़ी कला है। जिसने इस कला को सीख लियाए उसके लिए दांपत्य जीवन की राहें बहुत आसान हो जाती हैं और जो नहीं सीख पाया उसकी राह के कांटे बढ़ते जाते हैं।
मुश्किल तो तब आती हैए जब इन कठिनाइयों के बीच बच्चे पिसते हैंए जिनका न कोई कसूर होता है और न इतने जानकार होते हैं कि हालात से निपट सकें। फिर आखिर क्या है रास्ताघ् साइकियाट्रिस्ट डाण् विकास सैनी कहते हैंए पति.पत्नी के बीच नोक झोंक या झगड़े होना आम बात है। कई बार यह नोकझोंक और झगड़ा सीमा को पार कर जाता है तो स्थिति बदतर हो जाती है। ऐसे में लोग यह नहीं समझ पाते कि उनके इस झगड़े का उनके बच्चों पर क्या असर पडे़गा।
दरअसल बच्चों के लिए उसके माता.पिता ही उसके सबकुछ होते हैं। वही रोल मॉडल भी होते हैं। ऐसे में यदि माता.पिता के बीच झगड़ा होता हैए तो बच्चा असमंजस में पड़ जाता है कि कौन सही है और कौन गलत। दूसरी बात यह है कि जो माता पिता उन्हें हमेशा शालीन बने रहनेए लड़ाई झगड़ा न करने की सलाह देते हैंए वे खुद बच्चों की तरह लड़ते हैं तो बच्चा दुविधा में ही फंसेगा। इससे बच्चे का विश्वास टूटता है। उसे लगता है कि ये हमें क्या समझाएंगेए इन्हें तो खुद ही लड़ने से फुरसत नहीं है। हमेशा झगड़े के माहौल में रहने से उनमें असुरक्शा की भावना आती है। जबकि विकास के लिए शांत और आपसी सामंजस्य का माहौल सबसे अनुकूल होता है।
यदि उनमें आपस में मारपीट होती है तो इससे बच्चे के अंदर विरक्ति उत्पन्न हो जाती है। वे जीवन में निराशावादी होने लगते हैं। पढ़ाई.लिखाईए खेलकूद में उनका मन नहीं लगता। बच्चा भी लड़ाई झगड़ा देखकर वही सबकुछ सीखता है। लेकिन इस लड़ाई झगड़े का लड़की के ऊपर तो दूरगामी प्रभाव तक पड़ता है। वह इससे यही सबक लेती है कि उसे आत्म निर्भर बनना है और पति की धौंस बिलकुल नहीं सहनी है। या फिर वह शादी ही नहीं करेगी। ऐसे में आगे चलकर उसका वैवाहिक जीवन बहुत सफल नहीं बन पाताए क्योंकि वह सामंजस्य बैठाने की आदी नहीं होती। उसने झुकना सीखा नहींए सबको काबू में करने की मानसिकता पाल ली और अपनी जिंदगी में किसी का दखल उसे बर्दाश्त नहीं। अपनी कमाई अलग रखने की प्रवृत्तिए संयुक्त परिवार में न रहने की मानसिकता। यह सब कुछ लड़की को हिंसकए झगड़ालू बनाती हैं। इसलिए विचारों में आपसी मतभेदों को भुलाकर बच्चों का भी ख्याल रखें ।
.एक दूसरे की समस्या को समझें।
.बच्चों के सामने किसी की आलोचना न करें।
.व्यस्ततम क्शणों में कुछ समय निकालें और रचनात्मक कार्यों में लगाएं।
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