पं. महेश शर्मा
आपसी संबंधों के वर्तमान दौर में हर मोड़ पर बिखराव है। वैवाहिक बंधन में बंधे दंपत्तियों के लिए तो यह किसी चुनौती से कम नहीं है। सबसे विकट स्थिति ये है कि इन परिस्थितियों से कैसे बाहर निकला जाए। जिंदगी को सुखमय कैसे बनाया। आज यह एक यक्ष प्रश्न है ?
वैवाहिक जीवन को भारतीय समाज में जन्म जन्मांतर का संबंध माना जाता है, लेकिन पश्चिमी सभ्यता, भौतिकवाद व अन्य कारणों से ये नाजुक डोर चटकने लगा है। सोच में आये बदलाव व नये मानवीय मूल्यो को इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाने लगा है। कारण चाहें कुछ भी हों परयुवाओं को ये सोचने की जरूरत है कि उनके आपसी संबंध बिगड़ते क्यों हैं ? इस पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो इसे टूटने से पहले ही बचाया जा सकता है।
अगर ये भी मान लें कि आज के समय महिलाओं के लिए भी करिअर उतना ही महत्वपूर्ण जितना कि पुरुषों के लिए तो आपस में सामंजस्य बिठाने की जिम्मेदारी तो दोनों की है। इसलिए करिअर, सोच व अविश्वास को पति पत्नी के संबंधों में कितना हावी होने दें ये हम निर्धारित कर सकते हैं। इन्हीं बिंदुओं पर आपसी तालमेल नहीं होने का परिणाम है कि बातें तलाक तक पहुंचने लगी हैं। इस बात को सभी जानते हैं पर उससे बच नहीं पाते। कहने का मतलब है आज का शिक्षित युवक व्यावहारिक दुनिया के मामले में शून्य हैं। यही कारण है कि दांपत्य जीवन में तालमेल बैठा लेने जैसी छोटी छोटी समस्या उनके लिए यक्ष से कम नहीं होता।
लेकिन ऐसा कर क्या जिंदगी को आसानी से जीया जा सकता है ? अगर नहीं तो क्यों नहीं, जो निर्णय लोग संबंधों को तोड़ने के लिए लेते हैं वही निर्णय संबंधों को सम्मान के साथ जीने के लिए क्यों नहीं लेते। कहने का मतलब यह है कि संबंधों के खराब दौर में भी आप अपनी पत्नी से ये कह सकते हैं कि देखो अगर तुम अपने आपको नहीं संभालोगी तो मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा। मैं इस तरह नहीं जी सकता।
हो सकता है कि आपकी मनोदशा को भांपते हुए आपकी पत्नी धीरे-धीरे ही सही उसी राह पर चल पड़े। ऐसा करने से यह संदेश जाता है कि फैसला खुद ही कर लो सही क्या है ? दूसरी तरफ इस बात का इतना असर होता है कि हर इंसान सोचने पर मजबूर होता है और इसके परिणाम सार्थक निकलते हैं। यानी आप चाहें तो एक-दूसरे पर सही फैसला लेने की जिम्मेदारी सौंपकर भी संबंधों को मधुर मधुर सकते हंै।
इससे भी बात नहीं बने तो पहले विनम्रता से डेड लाइन या समय रेखा का अहसास अवश्य दिलाएं। खुद में ये प्रयास करें कि अगर कोई कमी है तो उसे कैसे सुधारा जाए।
इसका सीधा और सरल जवाब है कि वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्या पति-पत्नी से संबंधित होता है। इसके समाधान के लिए भी आप दोनों को प्रयास करने की जरूरत है। इस प्रयास में बराबरी की हिस्सेदारी होनी चाहिए। एक जीता एक हारा वाला रुख नहीं।
दोनों आपस में मिल बैठकर समय का हल खोजें। बहस करने से कोई लाभ नहीं मिलता। आपका उदृदेश्य होना चाहिए समस्या का निदान न कि बदला लेना या एक-दूसरे को नीचा दिखाना।
आपसी संबंधों के वर्तमान दौर में हर मोड़ पर बिखराव है। वैवाहिक बंधन में बंधे दंपत्तियों के लिए तो यह किसी चुनौती से कम नहीं है। सबसे विकट स्थिति ये है कि इन परिस्थितियों से कैसे बाहर निकला जाए। जिंदगी को सुखमय कैसे बनाया। आज यह एक यक्ष प्रश्न है ?
वैवाहिक जीवन को भारतीय समाज में जन्म जन्मांतर का संबंध माना जाता है, लेकिन पश्चिमी सभ्यता, भौतिकवाद व अन्य कारणों से ये नाजुक डोर चटकने लगा है। सोच में आये बदलाव व नये मानवीय मूल्यो को इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाने लगा है। कारण चाहें कुछ भी हों परयुवाओं को ये सोचने की जरूरत है कि उनके आपसी संबंध बिगड़ते क्यों हैं ? इस पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो इसे टूटने से पहले ही बचाया जा सकता है।
अगर ये भी मान लें कि आज के समय महिलाओं के लिए भी करिअर उतना ही महत्वपूर्ण जितना कि पुरुषों के लिए तो आपस में सामंजस्य बिठाने की जिम्मेदारी तो दोनों की है। इसलिए करिअर, सोच व अविश्वास को पति पत्नी के संबंधों में कितना हावी होने दें ये हम निर्धारित कर सकते हैं। इन्हीं बिंदुओं पर आपसी तालमेल नहीं होने का परिणाम है कि बातें तलाक तक पहुंचने लगी हैं। इस बात को सभी जानते हैं पर उससे बच नहीं पाते। कहने का मतलब है आज का शिक्षित युवक व्यावहारिक दुनिया के मामले में शून्य हैं। यही कारण है कि दांपत्य जीवन में तालमेल बैठा लेने जैसी छोटी छोटी समस्या उनके लिए यक्ष से कम नहीं होता।
लेकिन ऐसा कर क्या जिंदगी को आसानी से जीया जा सकता है ? अगर नहीं तो क्यों नहीं, जो निर्णय लोग संबंधों को तोड़ने के लिए लेते हैं वही निर्णय संबंधों को सम्मान के साथ जीने के लिए क्यों नहीं लेते। कहने का मतलब यह है कि संबंधों के खराब दौर में भी आप अपनी पत्नी से ये कह सकते हैं कि देखो अगर तुम अपने आपको नहीं संभालोगी तो मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा। मैं इस तरह नहीं जी सकता।
हो सकता है कि आपकी मनोदशा को भांपते हुए आपकी पत्नी धीरे-धीरे ही सही उसी राह पर चल पड़े। ऐसा करने से यह संदेश जाता है कि फैसला खुद ही कर लो सही क्या है ? दूसरी तरफ इस बात का इतना असर होता है कि हर इंसान सोचने पर मजबूर होता है और इसके परिणाम सार्थक निकलते हैं। यानी आप चाहें तो एक-दूसरे पर सही फैसला लेने की जिम्मेदारी सौंपकर भी संबंधों को मधुर मधुर सकते हंै।
इससे भी बात नहीं बने तो पहले विनम्रता से डेड लाइन या समय रेखा का अहसास अवश्य दिलाएं। खुद में ये प्रयास करें कि अगर कोई कमी है तो उसे कैसे सुधारा जाए।
इसका सीधा और सरल जवाब है कि वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्या पति-पत्नी से संबंधित होता है। इसके समाधान के लिए भी आप दोनों को प्रयास करने की जरूरत है। इस प्रयास में बराबरी की हिस्सेदारी होनी चाहिए। एक जीता एक हारा वाला रुख नहीं।
दोनों आपस में मिल बैठकर समय का हल खोजें। बहस करने से कोई लाभ नहीं मिलता। आपका उदृदेश्य होना चाहिए समस्या का निदान न कि बदला लेना या एक-दूसरे को नीचा दिखाना।
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