Tuesday, September 4, 2012

शिक्षा ही सब कुछ नहीं


पं. महेश शर्मा

संबंधों के गणित में पति-पत्नी का सुखद जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों के दृष्टिकोण एक-दूसरे को समझने की वृत्ति पारदर्शिता आधारितर है या नहीे।

ममता शर्मा 27 साल की हैं। वह शोधरत है। उसके घर के लोगों का निजी कारोबार है और सुखी संपन्न हैं। घर की उसकी शादी की चर्चा होती रहती है। वह थोड़ी समझदार है, पर इतनी समझदार भी नहीं की वह जिंदगी के हर तंतु को समझ सके।

वह सजल नयनों से आकाश की ओर टकटकी लगाकर बैठी हुई है। आंखों से गालों को भिगोते आंसू टपक रहे हैं। उसके मानसपट पर जीवन के अंतिम पांच सात वर्ष अपना कब्जा जमाए बैठे हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के को अपने जीवनसाथी के रूप में वरण करने की उसकी असीम इच्छा है। चूंकि वह खुद शिक्षित है इसलिए ऐसा सोचना स्वभाविक भी है।

अभिभावक और घर के दूसरे बुजुर्ग उसे समझाते हैं कि घर अच्छा हो, आर्थिक रूप से अच्छी स्थिति वाला हो और अच्छी नौकरी या व्यवसाय हो तो उच्च शिक्षा के चोचले को पकड़कर रखना कोई समझदारी की बात नहीं। यह झूठा नखरा कहलाता है इस पर ममता जवाब में दलीलें करती कि यह सब नहीं होगा तो भी मुझे चलेगा, लेकिन उच्च शिक्षा ली होगी तो मुझे समझ तो पाएगा। कुदरत ने भी उसका पक्ष लिया। उसकी शादी एक डाक्टर से हुई। परंतु शैली का उच्च शिक्षा प्राप्त पति का सम्मोहन तो पहले महीने में ही टूट गया। मरीज की नब्ज परखने वाला यह डाक्टर उसकी संवेदनाओं को समझने में बिलकुल अनाड़ी है। उच्च शिक्षा वाले जीवनसाथी की उसकी सनक रह रहकर उसे समझा रही थी कि वक्त बीतने पर सबकुछ ठीक हो जाएगा।

परंतु उसका दुर्भाग्य बलवान होता गया। बरसों बीतने लगे, मन पर घाव लगते गए और अंत में आज आक्रामकता ने बगावत का रूप ले लिया। वह उसे सदा के लिए छोड़कर आ गई है। बिल्कुल सूने आकाश की ओर टकटकी लगाकर अपने बरसों की जुगाली कर रही है। उसका मन प्रश्न करता ही जाता है कि इतना पढ़ा लिखा व्यक्ति भी उसे समझ न पाये, इतनी तो वह जटिल नहीं ही है न !

यहीं पर आकर समझ में आता है कि रिश्तों के गणित में शिक्षा का कोई खास महत्व नहीं है। हालांकि ये बात सभी के उूपर लागू नहीं होता। हां, इतना जरूर है कि वह किस तरह होता है, इसका आधार उसकी शिक्षा पर जरूर रहता है। शादी या अन्य विजातीय रिश्तों में जितनी गांठ अपनढ़ लोगों के बीच पड़ती है, उतनी ही या शायद उससे अधिक गांठ पढ़े लिखे लोगों के बीच में भी पड़ती है। अलबत्ता उसकी अभिव्यक्ति और उसके परिणाम शैक्षिणिक स्तर के हिसाब से भिन्न जरूर होते हंै। कम शैक्षिणिक स्तर वाले शायद सबके सामने लडेंगे, मारपीट कर बैठते हैं, जबकि शिक्षा प्राप्त  बेडरूम की चार दीवारों के बीच यही काम करते हैं। कहने का मतलब ये है कि एसएससी पास पत्नी और डाक्टर पत्नी के कलह में या सामान्य ग्रैजुएट पति और एमबीए पति में अधिक फर्क नहीं होता। फर्क तो वहां होता है जहां समझ होती है।

जिस रिश्ते में दो व्यक्ति एक-दूसरे को सही मायनों में समझते हैं। उस रिश्ते की उष्मा अलग होती है और वहां पढ़ाई का कोई हिस्सा नहीं होता।  रिश्तों के गतिण में व्यक्ति का उस रिश्ते के प्रति दृष्टिकोण, एक-दूसरे को समझने की भावना, विश्वास, माफ करने की वृति, पारदर्शिता, संवेदनाएं आदि महत्वपूर्ण घटक हैं।

दुर्भाग्य की बात यह है कि इनमें से कोई भी बात हमारी शिक्षा व्यक्ति को नहीं सिखाती। ये गुण पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था व परवरिश से विकसित होते हैं। कहने का मतलब ये है कि दांपत्य जीवन की सफलता का आधार ये है कि एक व्यक्ति के रूप में पति पत्नी एक-दूसरे को कितना समझते हैं।

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