Saturday, September 10, 2011

शिक्षा से बेहतर समझदारी

डीके मिश्र
पति पत्नी के प्यार में शिक्षा से ज्यादा समझदारी कारगर होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपसी प्रेम में शिक्षा को कोई महत्व नहीं होता, पर समझदारी दोनों ही स्थिति में जरूरी है। आप बहुत ज्यादा शिक्षित हैं तो भी और नहीं हैं तो भी।

यही कारण है कि कई बार पास पड़ोस में ये भी देखने को मिलता है कि एक शिक्षित-सुसभ्य व आधुनिक पति-पत्नी तो आपस में तालमेल नहीं बिठा पाते पर सामान्य पढ़ा लिखा दंपत्ति आपसी तालमेल की वजह से संसाधनों के अभावों के बीच भी ज्यादा खुशहाल जिंदगी जीते आपको दिखाई देता है। पारिवारिक जीवन में यही अंतर है शिक्षित और समझदार होने में। कहने का मतलब यह है कि रिश्तों के गणित में पति पत्नी का सुखद साहचर्य व्यक्ति का उस रिश्ते के प्रति दृष्टिकोण, एक-दूसरे को समझने की भावना, विश्वास, माफ करने की व2त्ति, पारदर्शिता आदि पर निर्भर करती है।

मनौवैज्ञानिक डा. विकास सैनी कहते हैं, 26 वर्षीय सोनाली खुशहाल परिवार से है। अब उसकी शादी की चर्चा घर में होने लगी है। सोनाली समझदार है, पर इतनी समझदार भी नहीं की वह जिंदगी के हर तंतु को समझ सके। उसकी इच्छा एक उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के को अपने जीवनसाथी के रूप में वरण करने की है। दूसरी तरफ माता पिता और घर के दूसरे बुजुर्ग उसे समझाते हैं कि घर अच्छा हो, आर्थिक रूप से अच्छी स्थिति वाला हो और अच्छी नौकरी या व्यवसाय हो तो उच्च शिक्षा के चोचले को पकड़कर रखना कोई समझदारी की बात नहीं। यह झूठा नखरा कहलाता है।

सोनाली जवाब में दलीलें देती है कि यह सब नहीं होगा तो भी चलेगा, लेकिन उच्च शिक्षा ली होगी तो मुझे समझ तो पाएगा। कुदरत ने भी सोनाली का पक्ष लिया। उसकी शादी एक डाक्टर से हुई। परंतु शैली का उच्च शिक्षा प्राप्त पति का सम्मोहन तो पहले महीने में ही टूट गया। हिसाब किताब में काफी मजबूत उसका पति सीए दुनिया का बैलेंस तैयार करते करते अपनी पत्नी की संवेदनाओां को भी नहीं समझ पाता। वह उसकी संवेदनाओं को समझने में बिलकुल अनाड़ी है। अब उच्च शिक्षावाले जीवनसाथी की उसकी सोच उसे ही समझा रही थी कि वक्त बीतने पर सबकुछ ठीक हो जाएगा।

सोनाली का दुर्भाग्य देखिए कि बरसों बीतने लगे, मन पर घाव लगते गए और अंत में आज आक्रामकता ने बगावत का रूप ले लिया। वह उसे सदा के लिए छोड़कर आ गई है। उसका मन प्रश्न करता ही जाता है कि इतना पढ़ा लिखा व्यक्ति भी उसे समझ न पाये, इतनी तो वह जटिल नहीं ही है न !यहीं पर आकर समझ में आता है कि रिश्तों के गणित में शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रभाव समझदारी का होता है।

ये बात सभी के उूपर लागू नहीं होता। इतना जरूर है कि वह किस तरह होता है, इसका आधार उसकी शिक्षा पर जरूर रहता है। शादी या अन्य विजातीय रिश्तों में जितनी गांठ अपनढ़ लोगों के बीच पड़ती है, उतनी ही या शायद उससे अधिक गांठ पढ़े लिखे लोगों के बीच में भी पड़ती है। अलबत्ता उसकी अभिव्यक्ति और उसके परिणाम शैक्षिणिक स्तर के हिसाब से भिन्न जरूर होते हंै। कम शैक्षिणिक स्तर वाले शायद सबके सामने लडेंगे, मारपीट कर बैठते हैं, जबकि शिक्षा प्राप्त  बेडरूम की चार दीवारों के बीच यही काम करते हैं। कहने का मतलब ये है कि एसएससी पास पत्नी और डाक्टर पत्नी के कलह में या सामान्य ग्रैजुएट पति और एमबीए पति में अधिक फर्क नहीं होता। फर्क तो वहां होता है जहां समझ होती है।

बाॅक्स:
जिस रिश्ते में दो व्यक्ति एक-दूसरे को सही मायनों में समझते हैं। उस रिश्ते की उष्मा अलग होती है और वहां पढ़ाई का कोई हिस्सा नहीं होता।  रिश्तों के गणित में व्यक्ति का उस रिश्ते के प्रति दृष्टिकोण, एक-दूसरे को समझने की भावना, विश्वास, माफ करने की वृति, पारदर्शिता, संवेदनाएं आदि महत्वपूर्ण घटक साबित होती हैं।

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