Monday, September 5, 2011

समझदारी से काम लें


पं. महेश शर्मा

वैवाहिक जीवन की जटिलता को समझना मुश्किल है। दांपत्य जीवन में अक्सर बहुत  से ऐसे कारण पैदा हो जाते हैं जो मनमुटाव का कारण बनते हैं। लेकिन सुखी दांपत्य जीवन के उपाय जरूर किए जा सकते हैं। 

कई बार ऐसा होता है कि  छोटी-मोटी बातों को लेकर परस्पर अविश्वास की स्थिति पैदा हो जाती है। खटास अगर देर तक और दूर तक बनी रहती है तो अलगाव तक मामला जा पहुंचता है।  इस स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि एक-दूसरे के महत्व को अच्छी तरह से समझें और जरूरतों को भी पूरा करते रहें। आपाधापी और आर्थिक समस्या से लेकर कई समस्याएं ऐसी हैं, जो मनमुटाव, संबंधों में कड़वाहट को जन्म देती हैं। अक्सर सेक्स से संबंधित समस्या और अलग-अलग सोच वैवाहिक जीवन में जटिलता और रिश्तों में दरार के सामान्य कारण हैं। 

कई बार संबंधों में दरार बहुत ज्यादा अपेक्षा की वजह से भी आ सकती है। साथी से जितनी अधिक अपेक्षाएं होंगी संबंधों में उतनी ही समस्याएं भी बढ़ती चली जाएंगी। बहुत से दम्पत्ति ऐसे भी हैं जिनमें सोच या रूचि में अंतर की वजह से प्रेम नहीं पनप पाता और नतीजतन परस्पर असंतोष की भावना उग्र होकर संबंधों में खटास बढ़ाती चली जाती है। बात-बात पर गैर जरूरी हस्तक्षेप भी मनमुटाव बढ़ाता है और जीवन में जटिलताएं आनी शुरू हो जाती हैं। 

कई मामलों में तो शादी का पहला साल पूरा होते-होते घरेलू जिम्मेदारियां बढ़ती हैं तो पैसे को लेकर झगड़ा दंपतियों के बीच सामान्य बात हो गयी है। तेरा पैसा, मेरा पैसा की बजाय हमारा पैसा नहीं बन पाने की वजह झगड़े का सबब बनती है। अगर समझबूझ से यही काम लिया जाए और थोड़ा सा समझौतावादी रुख अपनाया जाए तो बढ़ती बात थम जाती है। हर मध्यवर्गीय माता-पिता चाहते हैं कि उनकी बेटी या बेटे की शादी आर्थिक रूप से समृद्ध घरबार में हो। यही शुरुआती सोच जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं को दोनों तरफ जन्म देती है जो भविष्य में समस्याओं का पिटारा बन सकती है। इससे दांपत्य जीवन में कलह पैदा होती है। 

नतीजा यह होता है कि पुरुष स्त्रियों को अधिक खर्चीला मानते हैं तो स्त्रियां पुरुषों को। यह मुददा ठीक है या नहीं यह बहस का विषय हो सकता है पर ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनके पास भरपूर पैसे नहीं होते हैं और वे जरूरतें पूरी न होने के कारण परेशान रहते हैं। संबंधों में दरार का आज यह बहुत बड़ा कारण हैं। स्तरीय व मनचाहा जीवन जीने के लिए पैसे का अहम रोल है, इसमें दो राय नहीं हो सकतीं। पर इसे इतना भी महत्व नहीं दिया जाना चाहिए कि दांपत्य में दरार पैदा हो जाए। पैसा व्यावहारिक और संवेदनशील मुद्दा है। इच्छाएं बहुत होती हैं, लेकिन पैसा सीमित। इसलिए जरूरी है कि खर्च कभी भी आमदनी से अधिक न करें और पति-पत्नी बचत जरूर करें ताकि आड़े वक्त में परिवार की जरूरतें पूरी करने में आसानी हो।

बॉक्स :
अगर मौजूदा काम में आपकी बुनियादी जरूरतें पूरी न हो रही हों तो कहीं और काम तलाशें ताकि किसी पर बोझ न बनें। अपने पैसे को ज्यादा महत्व देकर पार्टनर की पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुंह न मोड़ें। सुखी भविष्य के लिए बचत करना जरूरी है पर इसका मतलब यह कतई नहीं कि आप पाई-पाई का हिसाब मांगें। जिंदगी में छोटी-छोटी खुशियां भी निहायत जरूरी हैं। पैसे को लेकर आक्रामक रवैया ज्यादातर खतरनाक साबित हो सकता है इसलिए इससे बचें।

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