Sunday, February 6, 2011

प्यार के नवीन सूत्र NEW Love formula

Dhirendra Mishra

हिंदू परंपरा में भले ही विवाह संबंध शाश्वत हों, लेकिन समय और जरूरतों के हिसाब से इनमें बदलाव आते रहते हैं। ये बदलाव आने भी जरूरी हैं तभी तो इनकी सफलता सुनिश्चित होगी। इस मामले में लकीर का फकीर न बनें।
रिश्तों को निभाने के लिए तय किए गए ऐसे अनेक नियम हंै जो हकीकत के धरातल पर आते ही न जाने कब कहां धाराशाई हो जाते हैं। ऐसा इसलिए कि पति-पत्नी की आशाएं और अपेक्षाएं अलग होती हैं। रिश्तों को समझने और निभाने की समझदारी भी दोनों की अलग-अलग होती है। हालांकि आजकल रिश्तों को निभाने की जिम्मेदारी दोनों पर बराबर ही है और दोनों बराबरी के स्तर पर इन्हें निभाते भी हैं फिर भी तकरार कई बार चरमसीमा पर पहुंच जाती है। तो आखिर कैसे तय करें अपने रास्ते को!

ऐसा नहीं है कि इस समस्या का हल नहीं है। जरूरत है इन्हें समझने और समझाने की। ये मंत्र तय करें कि आज के हिसाब से प्यार के बंधन को कैसे बनाएं स्थायी और हमेशा का हमसफर।
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निजता

विवाह का बंधन दो इंसानों के बीच बंधता है। जब यह मजबूत होता है तभी दोनों परिवारों के सदस्य इसमें आ जुड़ते हैं। कभी-कभी पेरेंट्स अपने बच्चों को ज्यादा सामाजिक बनाने के फेर में नाइंसाफी करने से भी पीछे नहीं हटते। यहां तक कि वे युवा दंपत्तियों के साथ हनीमून पर जाने से भी परहेज नहीं करते। जबकि शादी के बाद हनीमून की परंपरा बनाई ही इसलिए गई है कि जिससे दोनों एक-दूसरे को ठीक से समझ सकें। उन्हें समय चाहिए, जो कुछ दिन अकेले रहकर ही मिल सकता है। घर वालों की दखलंदाजी से यह स्पेस उन्हें नहीं मिल पाता।
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स्पेस दें

वैवाहिक संबंधों में व्यक्तिगत स्पेस की जगह हमारा स्पेस हो जाता है। यदि आप दोनों अपने-अपने स्पेस को लेकर लड़ते रहेंगे और यह कहेंगे कि तुम मेरे स्पेस को खत्म मत करो तो हमारे लिए कहा जगह रह जाएगी! साथ में रहने और निभाने के लिए अपने मैं को समाप्त करना होगा। लेकिन आज के व्यस्तता भरे दौर में लगातार कोशिश करनी चाहिए कि साथ समय गुजारें। कुछ रोजमर्रा के काम साथ-साथ करने चाहिए। जैसे वाॅक पर जाना या किचन समेटने में हाथ बंटाना। जब साथ हों तो कम से कम एक घंटे के लिए मोबाइल फोन बंद कर लेना।
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तालमेल

पति-पत्नी के अलावा बाकी रिश्तों को थोड़ा सा बाहर की ओर रखें। चाहे आप अपने लोगों को कितना भी प्यार करते हों। अपने वैेवाहिक संबंधों को अन्य संबंधों के पीछे मत रखें। बहुत से दंपत्ति अपने बच्चों को युवा होने तक उनकी चिंता करना भी बच्चों को असहज कर देता है। ऐसे में आपके पास कहां कितना स्पेस बचता है। अपने रिश्तों को मजबत करने के लिए!
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पूर्वाग्रह

अकसर हम विवाह संस्था को अपने अभिभावकों को जोड़ कर देखते हैं। लड़की यह सोचती है कि उसके पिता से अच्छा पति नहीं हो सकता क्योंकि वह घरेलू सामान की शाॅपिंग से लेकर उसके होमवर्क तक में मदद करते थे। यदि उसका पति इस प्रकार का नहीं होगा तो वह हताश हो जाएगी। ठीक इसी प्रकार यदि किसी लड़के की पत्नी उसकी मां की तरह बेहतरीन खाना नहीं बनाएगी तो वह निराश या परेशान हो सकता है, लेकिन इस तरह की घटनाओं में दूसरे पहलुओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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दोस्तों की सीमा

वैवाहिक संबंधों में दोस्तों को घुसने का मौका मत दीजिए। लड़के अकसर दोस्तों के साथ देर रात तक बाहर रहते हैं तथा लड़कियां शाॅपिंग के पीछे दीवानी रहती हैं। अब आपके दोस्त हैं, तो हर मसले पर आपको अपनी बेशकीमती राय भी देंगे ही। लेकिन यह मत भूलिए कि वे दोस्त भी आपकी तरह ही अनुभवहीन हैं। इसलिए यह जरूरी नहीं कि उनके राय आपके लिए लाभकारी ही हों।
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परस्पर सहयोग

यदि संबंधों में कहीं कोई समस्या है और आप उसे दूर नहीं कर पा रहे हैं तो हिचकिचाइए नहीं। किसी अनुभवी की सहायता इस मामले में ले सकते हैं। कई बार सही कदम उठाने से कई मुदृदे आसानी से हल हो जाते हैं। अकसर हम अपने आप गलत सही तय नहीं कर पाते। विवाह और उसका स्थान जितना आत्मीय, सुरक्षित और प्रिय है उतना ही संकीर्ण भी है, उसमें केवल आप दोनों ही प्रवेश कर सकते हैं। इसके लिए कड़ी मेहनत करने से न डरें। बीच की जगह में किसी को घुसने की इजाजत नहीं दें। ताकि प्यार का यह रिश्ता हमेशा इसी तरह चले।

2 comments:

  1. लेखन अपने आप में ऐतिहासिक रचनात्मक कायर् है। आशा है कि आप इसे लगातार आगे बढाने को समपिर्त रहें। शानदार पेशकश।

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक)एवं
    राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    0141-2222225 (सायं 7 सम 8 बजे)
    098285-02666

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  2. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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