Tuesday, October 8, 2013

अच्छा बोले तो लगेगा अच्छा

हम जो कुछ भी बोलते हैं, उसका असर केवल दूसरों पर ही नहीं, हमारे ऊपर भी पड़ता है। इसीलिए अपनी बोलचाल में हमें नकारात्मक वाक्यों से बचना चाहिए।

अकसर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है..आज का दिन ही खराब है..। कहीं आपको भी ऐसी बातें करने की आदत तो नहीं? नहीं है तो अच्छी बात है, लेकिन अगर सचमुच ऐसा है तो आपको अभी से इसे बदलने के मिशन में जुट जाना चाहिए क्योंकि लगातार लंबे समय तक ऐसे नकारात्मक जुमले बोलते रहने से खुद हमारे भीतर नकारात्मकता घर कर लेती है और हमें इसका अंदाजा भी नहीं होता।

पहले तोलें फिर बोलें
आपने अपने आसपास बुजुर्गो को कहते सुना होगा-'अरे! शुभ-शुभ बोलो।' इस छोटे से वाक्य के पीछे उनकी यही मंशा रही होगी कि अगर हम अच्छा बोलेंगे तो केवल हमें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी अच्छा लगेगा और घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहेगा।

आपने भी यह महसूस किया होगा कि अकसर शिकायतें और नकारात्मक बातें करने वाले लोगों से उनके परिचित, दोस्त और रिश्तेदार कतराने लगते हैं क्योंकि वही रोज-रोज की बोरिंग और घिसी-पिटी बातें माहौल को सुस्त और बोझिल बनाने लगती हैं। बैंक में कार्यरत संगीता शर्मा अपनी एक ऐसी ही कलीग का जिक्र करती हैं कि किस तरह सुबह बैंक पहुंचते ही उनकी बोरिंग राम कहानी शुरू हो जाती है, 'मैं तो कामवालियों से तंग आ गई हूं, जब देखो तब बिना बताए छुट्टी कर लेती हैं, महंगाई कितनी बढ़ गई है, गोभी 40 रुपये किलो मिल रही है.. ऐसे में इंसान क्या खाए? उफ् ! ये कमबख्त मौसम..कितनी जानलेवा गर्मी है..कंप्यूटर का यह माउस भी काम नहीं करता..।' यहां आशय सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों को दुनिया के सभी सजीव-निर्जीव वस्तुओं से कोई न कोई शिकायत होती है, पर उन्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि कोई उनकी ऐसी बोरिंग बातें सुनना भी चाहता है या नहीं?'

इस मूड का क्या करें
कुछ लोगों का मूड छोटी-छोटी बातों से बहुत जल्दी खराब होने लगता है। रास्ते में ट्रैफिक जाम हो या घर पर अपना मोबाइल भूल गए हों इतनी छोटी सी बातें भी उनका मूड खराब करने के लिए काफी होती हैं।

इस संबंध में मैनेजमेंट गुरु प्रमोद बत्रा कहते हैं, 'अव्यवस्थित रहने की आदत भी मूड खराब होने का बहुत बड़ा कारण है। अगर हम ट्रैफिक जाम से बचने के लिए समय से थोड़ा पहले घर से निकलें, अपनी सारी चीजें हमेशा सही जगह पर रखें और सोने-जागने का समय निश्चित रखें तो ऐसी छोटी-छोटी परेशानियां काफी हद तक कम हो जाएंगी। जहां तक दूसरों की वजह से मूड खराब होने की बात है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया हमारे अनुसार नहीं चल सकती, बल्कि हमें खुद को हालात के अनुकूल ढालना होगा। आप पहले से यह मानकर चलें कि मूड खराब करने वाले लोग आपको हर कदम पर मिलेंगे। ऐसे लोगों से निबटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनकी बातों को दिल पर न लें। सुबह सोकर उठने के बाद रोजाना खुद से कहें कि आज का दिन बहुत अच्छा बीतेगा। यह तरीका आजमा कर देखें, इससे आप निश्चित रूप से बहुत अच्छा महसूस करेंगे।

मनोविज्ञान की नजर में
इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. सुरभि सोनी कहती है, 'लगातार ऐसी बातें करने या सुनने से हमारे सोचने-समझने की पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि यह आदत केवल आप तक ही सीमित नहीं रहती। जब बच्चे अपने माता-पिता के मुंह से ऐसी बातें सुनते हैं तो अनजाने में वे वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए अपने बच्चों की खातिर भी यह आदत बदलना बहुत जरूरी है। अगर सचमुच आपके सामने कोई समस्या हो तो बार-बार उसके बारे में बातें करने से उसका हल ढूंढ़ना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि हर समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर होता है।'


वल दूसरों पर ही नहीं, हमारे ऊपर भी पड़ता है। इसीलिए अपनी बोलचाल में हमें नकारात्मक वाक्यों से बचना चाहिए।

अकसर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है..आज का दिन ही खराब है..। कहीं आपको भी ऐसी बातें करने की आदत तो नहीं? नहीं है तो अच्छी बात है, लेकिन अगर सचमुच ऐसा है तो आपको अभी से इसे बदलने के मिशन में जुट जाना चाहिए क्योंकि लगातार लंबे समय तक ऐसे नकारात्मक जुमले बोलते रहने से खुद हमारे भीतर नकारात्मकता घर कर लेती है और हमें इसका अंदाजा भी नहीं होता।

पहले तोलें फिर बोलें

आपने अपने आसपास बुजुर्गो को कहते सुना होगा-'अरे! शुभ-शुभ बोलो।' इस छोटे से वाक्य के पीछे उनकी यही मंशा रही होगी कि अगर हम अच्छा बोलेंगे तो केवल हमें ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी अच्छा लगेगा और घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बना रहेगा।

आपने भी यह महसूस किया होगा कि अकसर शिकायतें और नकारात्मक बातें करने वाले लोगों से उनके परिचित, दोस्त और रिश्तेदार कतराने लगते हैं क्योंकि वही रोज-रोज की बोरिंग और घिसी-पिटी बातें माहौल को सुस्त और बोझिल बनाने लगती हैं। बैंक में कार्यरत संगीता शर्मा अपनी एक ऐसी ही कलीग का जिक्र करती हैं कि किस तरह सुबह बैंक पहुंचते ही उनकी बोरिंग राम कहानी शुरू हो जाती है, 'मैं तो कामवालियों से तंग आ गई हूं, जब देखो तब बिना बताए छुट्टी कर लेती हैं, महंगाई कितनी बढ़ गई है, गोभी 40 रुपये किलो मिल रही है.. ऐसे में इंसान क्या खाए? उफ् ! ये कमबख्त मौसम..कितनी जानलेवा गर्मी है..कंप्यूटर का यह माउस भी काम नहीं करता..।' यहां आशय सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों को दुनिया के सभी सजीव-निर्जीव वस्तुओं से कोई न कोई शिकायत होती है, पर उन्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि कोई उनकी ऐसी बोरिंग बातें सुनना भी चाहता है या नहीं?'

इस मूड का क्या करें

कुछ लोगों का मूड छोटी-छोटी बातों से बहुत जल्दी खराब होने लगता है। रास्ते में ट्रैफिक जाम हो या घर पर अपना मोबाइल भूल गए हों इतनी छोटी सी बातें भी उनका मूड खराब करने के लिए काफी होती हैं।

इस संबंध में मैनेजमेंट गुरु प्रमोद बत्रा कहते हैं, 'अव्यवस्थित रहने की आदत भी मूड खराब होने का बहुत बड़ा कारण है। अगर हम ट्रैफिक जाम से बचने के लिए समय से थोड़ा पहले घर से निकलें, अपनी सारी चीजें हमेशा सही जगह पर रखें और सोने-जागने का समय निश्चित रखें तो ऐसी छोटी-छोटी परेशानियां काफी हद तक कम हो जाएंगी। जहां तक दूसरों की वजह से मूड खराब होने की बात है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया हमारे अनुसार नहीं चल सकती, बल्कि हमें खुद को हालात के अनुकूल ढालना होगा। आप पहले से यह मानकर चलें कि मूड खराब करने वाले लोग आपको हर कदम पर मिलेंगे। ऐसे लोगों से निबटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनकी बातों को दिल पर न लें। सुबह सोकर उठने के बाद रोजाना खुद से कहें कि आज का दिन बहुत अच्छा बीतेगा। यह तरीका आजमा कर देखें, इससे आप निश्चित रूप से बहुत अच्छा महसूस करेंगे।'

मनोविज्ञान की नजर में

इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. सुरभि सोनी कहती है, 'लगातार ऐसी बातें करने या सुनने से हमारे सोचने-समझने की पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगती है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि यह आदत केवल आप तक ही सीमित नहीं रहती। जब बच्चे अपने माता-पिता के मुंह से ऐसी बातें सुनते हैं तो अनजाने में वे वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए अपने बच्चों की खातिर भी यह आदत बदलना बहुत जरूरी है। अगर सचमुच आपके सामने कोई समस्या हो तो बार-बार उसके बारे में बातें करने से उसका हल ढूंढ़ना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि हर समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर होता है।'
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