Monday, April 23, 2012

अरेंज मैरिज (Arrange Marriage)


शादी जैसे मुद्दे पर सभ्यता और संस्कति के बीच संघर्ष एक बार फिर चरम पर है, लेकिन अब चैकाने वाली बात ये है कि संभ्रांत परिवार के शिक्षित व करिअर में सफल अधिकांश युवक एक बार फिर से परंपरागत विवाह को पसंद करने लगे हैं।


हिंदू संस्कति में विवाह को सर्वश्रेष्ठ संस्कार बताया गया है, क्योंकि इस संस्कार के द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की सिदिृध प्राप्त करता है। विवाहोपरांत ही मनुष्य देवऋण, ऋषिऋण, पित2ऋण से मुक्त होता है।

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समाज में दो प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं। पहला परंपरागत विवाह यानी तयशुदा विवाह और दूसरा प्रेम विवाह। परंपरागत विवाह माता पिता की इच्छानुसार संपन्न होता है। जबकि प्रेम विवाह में लड़के लड़कियों की इच्छा और रुचि महत्वपूर्ण होती है।

भारतीय समाज में परंपरागत विवाह सदियों से प्रचलन में है और आज भी इसे ही समाज में अधिमान्यता प्राप्त है। अधिकांश लोगों का आज भी इसी में विश्वास है। लव मैरिज और लिव इन रिलेशन की बात भले ही जारी है पर एक हकीकत इस मामले में देखने को मिल रहा है कि समझदार और योग्य युवक अब फिर से तयशुदा विवाह यानी परंपरागत विवाह को ही प्राथमिकता देने लगे हैं। संभवतः लव मैरिज की परेशानियों की वजह से सफल युवाओं में इस तरह की प्रव2त्ति नये सिरे से देखने को मिल रहा है। ये बात अलग है कि वे करिअर ओरिएंटेड लड़कियों को ही प्राथमिकता देते है पर शादी घरवालों की रजामंदी से ही करना चाहते हैं।

यही वजह है कि परंपरागत विवाह आज भी प्रासंगिक हैं। विवाह का समाज में अस्तित्व का आधार यही है। अभिभावक से लेकर युवक तक ये सोचते हैं कि यही सही परंपरा है। आज मेरे पिता शादी करते हैं। कल हम अपने बंच्चे की शादी इससे भी धूमधाम से करेंगे। यही तो जिंदगी है। यही इतिहास है और ऐसा ही होता है।

अरेंज मैरिज जीवन भर के लिए होता है। इसमें तलाक दर आज भी बहुत कम हैै। भारत में यह आज भी 1.1 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका में 45.8 प्रतिशत तलाक दर है। परंपरागत विवाह में तलाक दर कम होने कारण यह माना जा रहा है कि शादी से पहले ही लड़का और लड़की दोनों के परिवार वाले अपने साधनों और जान पहचान के बल पर इस बात की तहकीकात कर लेते हैं कि रिश्ता सही है या नहीं। कम से कम इस मामले में भारतीय समाज में अब भावनाओं से कोई समझौता नहीं करता।

परंपरागत विवाह के गुण

- मूल्य और अपेक्षा को सम्मान मिलना

- लड़कियां कम उम्र की और कम लंबा होना

- लुक की बात है तो एक-दूसरे की बातचीत पर निर्भर है।

- धर्म और जाति, भाषा का एक होना

- खानपान में समानता को ही प्राथमिकता और इस मामले में किसी को बाध्य नहीं किया जाता है। नान वेज और वेज में शादी होते भी है तो सहमति होने के बाद ही।

- पहले लड़कों की योग्यता को वरीयता दी जाती थी अब लड़ंकियों को भी योग्य होना बेहतर माना जाने लगा है।

- व्यवसाय भी आपसी सहमति पर आधारित होते हैं।

- इसी तरह वित्तीय और कुंडली मिलान भी कराया जाता है और अनुकूल होने पर ही शादी की बातें पक्की होती है।

इसके अलावा इसमें विवाह वैदिक रीति रिवाजों के अनुकूल होते हैं। सगे संबंधियों, दोस्तों व अपने शुभचिंतकों को आामंत्रित किया जाता है। इसे सामाजिक अधिमान्यता भी मिलती है और विवाह संपन्न होने के बाद पति-पत्नी को समाज द्वारा बराबर का सम्मान भी दिया जाता है।

आज के युवा ये समझ गए हैं कि तयशुदा विवाह युवाओं को बिना किसी चिंता और भागदौड़ के एंज्वाय करने का बेहतर अवसर प्रदान करता है। ऐसा इसलिए कि परंपरागत विवाह:

अहसास बनाम प्रतिबदृधता

विवाह का यह तरीका भारतीय युवाओं को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि जिस लड़की को आप जानते तक नहीं उसके साथ जिंदगी भर आपको जीना है। इसलिए जीने का तरीका सीखें और इस बात का प्रयास करें कि प्यार कैसे करें। ये प्रयास जिंदगी भर तक बने रहने चाहिए। जबकि पश्चिमी देशों में शादी करने से पहले ही ये तय कर लिया जाता है कि हम प्यार करते हैं या नहीं। यहीं पर वे लोग मात खाते हैं, क्योंकि पति पत्नी के बीच प्यार का मामला कोई सौदा नहीं है। यह अपने प्रयास, त्याग और सम्मान के बल पर जिंदगी भर के लिए जिंदा रखा जा सकता है। और ये बात हमें भारतीय विवाह व्यवस्था में ही संभव है।

यह बलात विवाह नहीं है

लव मैरिज के पक्षधर अधिकांशतया ये तर्क देते हैं कि परंपरागत विवाह बाउंडेड मैरिज हैै। ऐसा है नहीं पर कहने के लिए आप कुछ भी कह सकते हैं। हकीकत ये है कि शादी से पहले कई चरणों में परिवार वाले मिलते हैं। बातचीत का सिलसिला चलता है। पारिवारिक मूल्यों को लेकर बातचीत होती है। लड़के और लडकियों को मिलने का का मौका दिया जाता है। इस क्रम में वे एक-दूसरे को बहुत हद तक जान लेते हैं। आजकल तो उन्हें इंगेजमेंट के बाद डेटिंग की भी इजाजत दी जाने लगी है।

शादी परिवारिक रिश्ते होते हैं

भारत में शादी को लड़के और लड़कियों के बीच का संबंध भर नहीं, बल्कि इसे पारिवारिक संबंध भी माना जाता है। ऐसा इसलिए कि हमारे यहां परिवार व्यवस्था काफी मजबूत है और हम सब एक-दूसरे के साथ मिलकर जीते है। और सुख-दुख को एक-दूसरे से बांटते हैं। इसलिए शादी तय होने पर इसे दो परिवारों के बीच भी नया रिश्ता माना जाता है। यही कारण है कि शादी का खर्च अभिभावक ही उठाते हैं। वे इसे अपनी जिम्मेदारी मानते हैं।

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