Wednesday, April 6, 2011

परिवार में शांति चाहिए तो यह करें (Peace in the family should make it)

महेश शर्मा

 चाहते तो सभी हैं, लेकिन दांपत्य जीवन आज कितनों का सुखद होता है? कोई भी परिवार, कोई भी गृहस्थी तब ही शांत, आनंदमय और दिव्यता में रहेगी जब उस परिवार का आधार आपसी प्रेम होगा।
 
प्रेम वह झरोखा है जिससे परमात्मा झलकता है। आत्मा का परम आत्मा से मिलन होता है। इसलिए अपने परिवार को प्रेम पर खड़ा करिए। ऐसा माना गया है कि प्रेम परमात्मा की व्यवस्था है, जबकि विवाह मानवीय व्यवस्था है। जीवन को सहज और सुगम्य बनाने के लिए।

इसलिए आप अपने प्रयासों से विवाह भले ही कर लें पर उसे परमात्या द्वारा निर्मित परिवार को सौंपने पर ही सही मायने में प्रेम का जन्म होगा। जिन परिवारों से प्रेम लुप्त हो गया है उन परिवारों के मनुष्य विकृत, अधार्मिक और हिंसक हुए हैं, वे परिवार अधर्म तथा अशांति का अड्डा बन गए। जब परिवार से प्रेम गायब हो जाए तो गृहस्थी में संघर्ष, कलह, द्वेष, ईष्र्या और उपद्रव का प्रवेश हो जाता है।

इसलिए परिवार के केन्द्र में परमात्मा होना चाहिए। परंतु आज केन्द्र में निज स्वार्थ, अहंकार, मैं बड़ा तू छोटा यह भाव है। इसका परिणाम यह होता है कि परिवार के सदस्य प्रेम के भूखे रह जाते हैं। तड़पता हुआ व्यक्ति दांपत्य से प्रेम खत्म हो जाता है। वह फिर एक मिथ्या प्रेम की तलाश में घर से बाहर निकल जाता है। दुनिया में वैश्याएं असफल दांपत्य के कारणा ही पैदा हुई हैं। परस्त्री और परपुरूष गमन जैसी दुर्धटनाएं प्रेम के अभाव का परिणाम होती हैं। फिर ऐसे दांपत्य से जब संतानों का जन्म होता है तो वे अधूरे बच्चे समाज में विकृति ही फैलाते हैं।

कहने का मतलब यह है कि अगर आपको बेहतर समाज और परिवार के साथ खुद शांति से जीवन व्यतीत करना है तो दांपत्य का आधार आपसी प्रेम को ही बनाएं। इसका और कोई विकल्प नहीं है। 

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