Thursday, August 8, 2013

शादी से मिलता है प्यार को आधार



शादी जिंदगी की जरूरत है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि जो कल तक कुछ लोग जिस युवक की हंसी उड़ाते थे वही शादी के बाद उसे खुशी देखकर झुंझलाने लगते हैं। ऐसे वे लोग होते हैं जो शादी नहीं करते हैं या यूँ कहें कि उन्हें प्यार नसीब ही नही हो पाता।

लेकिन एक बात तो तय है कि शादी के बाद प्यार में पड़ते ही हर व्यक्ति बदल जाता है। उसके स्वभाव बोलचाल में अजीब-सा बदलाव जाता है। आप यह भी कह सकते हैं कि शादी के बंधन में बंधने के बाद उसकी इंसान की सकारात्मक सोच में इतनी ताकत हेाती है, जिसके सहारे लोग जीवन में तरक्की करते भी देखे गए हैं।
इसके विपरीत प्यार का एक दूसरा पहलू भी है। अगर आप दूसरे की भावना को नजरअंदाज करके सिर्फ मनमानी करें, तो वह खुद के ही लिए घातक हो सकता है। प्यार में आप हासिल तो बहुत कुछ करते हैं, पर कुछ कुछ खोते भी हैं। सबसे पहले आप स्वयं की स्वतंत्रता खो देते हैं। क्योंकि तब आपकी जिम्मेदारी किसी और के प्रति बढ़ जाती है। दूसरे रातों की नींद और दिन का चैन भी आपसे छिन जाता है। लेकिन इस छिन जाने में जो प्राप्ति है उस आनंद का अनुभव प्यार में गिरफ्तार व्यक्ति ही कर सकता है। सच कहूँ तो जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते है। और फिर भी सिक्के की कीमत एक होती है, उसी तरह प्यार में लुटकर भी आप आबाद ही होते हैं।

हालांकि प्यार को लेकर अब नजरिया लोगों का बदल गया है। पर यह तय है कि पहले की तरह शादी के बाद का प्यार हो या प्यार के शादी और फिर प्यार, प्यार तो प्यार ही होता है। चाहे आज का प्यार हो या कल का। आज पहली नजर के प्यार को लोग भले ही कुछ भी कहें पर ऐसा तो पहले से होता आया है। हाँ, आज के प्यार के चलते समाज में खुलापन जरूर आया है। यह शायद ढेर सारे माध्यमों की वजह से सिमट रही दुनिया का असर हो, फिर भी मैं इसे सकारात्मक संकेत मानती हूँ। अब कोई यदि किसी से प्यार करता है, तो उसे छिपाता नहीं, जबकि पहले यह सब पर्दे पर ही होता था।

दरअसल पहले के प्यार की परिणति शादी होती थी, लेकिन आज के दौर में जरूरी नहीं रहा कि आप जिससे प्यार करते हैं, आखिर में गृहस्थी भी उसी के साथ बसाएँ। वैसे, कल का प्यार कल के हिसाब से ठीक था तो आज के हिसाब से आज का प्यार भी अनुचित नहीं है। क्योंकि प्यार में कोई शर्त नहीं होती, मगर प्यार में अधिकांश लोगों की चाहत इतनी ज्यादा होती है कि प्यार हासिल करने में काफी मुश्किल होती है।

आजकल तो लड़के और लड़कियाँ दोनों को प्यार में आकर्शण, सादगी, ईमानदारी, सफाई पसंद, गुड सेंस आफ ह्यूमर या फिर जाॅर्ज क्लूनी की तरह दिलचस्त व्यक्ति ही चाहिए। यानी आज के युवा प्यार में सबकुछ पा लेना चाहते हैं। आप यह कह सकते हैं कि अब प्यार में बहुत फर्क गया है।

असल में यह सब व्यक्ति दर व्यक्ति निर्भर करता है। लैला मजनूं और शीरीं-फरहाद की गाथाओं वाले इस देश में अब भी ऐसे ढेरों लोग मिल जाएंगे, जो मिलन होने पर आजीवन कंुवारे रह गए, लेकिन यहीं पर सुबह बाॅयफ्रेंड, तो शाम को गर्लफ्रेंड बदलने वालों की भी कमी नहीं है। मेरे ख्याल से जिंदगी इतनी फास्ट है कि किसी को भी ठहर कर सोचने या पीछे मुड़कर देखने की फुर्सत नहीं कि कल हमारे लिए कौन अपरिहार्य था। लेकिन कुछ भी हो अब मानसिकता बदलने की एक बार फिर से जरूरत गई है, क्योंकि प्यार अब उच्छृंखल हो गया है जो किसी भी रूप में अच्छा नहीं है।

रिश्ते रहें जीवंत

किसी करीबी से झगड़ा हो जाए तो केवल एक चीज रिश्ते को बनाती या नष्ट करती है, वह है-दृष्टिकोण। परिवार, मित्रों, पड़ोसी या सहकर्मियों के साथ मधुर संबंध बनाए बगैर जीवन अच्छा नहीं हो सकता। शुरुआत परिवार से होती है। घरेलू रिश्ते अच्छे है तो सामाजिक रिश्ते भी बेहतर होंगे। संबंधों का प्रभाव करियर, सामाजिक-मानसिक एवं आर्थिक स्थितियों पर पड़ता है। 10 टिप्स रिश्तों की बेहतरी के।

1. माता-पिता याद रखें कि कोई दूसरा उनके बच्चों की जिंदगी में उनकी जगह नहीं ले सकता, भले ही वह उनका जीवनसाथी क्यों न हो। युवा-विवाहित बच्चों की जिंदगी में वहीं तक हस्तक्षेप करे, जहां तक उनकी जिंदगी न प्रभावित हो। उनके विचारों को भी अहमियत दें और जरूरत पड़ने पर उनसे सलाह भी लें।

2. सामंजस्य की समस्या वैचारिक मतभेदों के कारण होती है। नए विचारों की अहमियत भी समझें। बुजुर्ग युवाओं को व्यावहारिक सहयोग दे। यह न केवल उन्हे ऊर्जावान बनाए रखेगा, बच्चों को भी उनके प्रति संवेदनशील बनाएगा। युवा भी जरूरी मसलों पर बड़ों को प्राथमिकता दें। उनसे मदद लेने में न हिचकें।

3. बिना समय दिए संबंध अच्छे नहीं हो सकते। परिवार के साथ महीने में एकाध बार घूमने जाएं, दिन में एक वक्त का खाना अवश्य साथ खाएं, खेलें, मूवी देखें, गपशप करें..।

4. शब्द बहुत-कुछ कहते है। जब तक मुंह नहीं खोलेंगे, दूसरा कैसे समझेगा। जो कुछ मन में है, उसे साझा करें। रिश्तों में संवादहीनता की स्थिति न आने दें। इससे गलतफहमियां पैदा होती है और रिश्तों में दरार पड़ती है।

5. तारीफ करें। इसका अर्थ है कि आप दूसरे के गुणों का सम्मान कर रहे है। लेकिन प्रशंसा या चाटुकारिता में फर्क होता है। इस महीन रेखा को लांघने से बचें।

6. पक्षपात न करे। घर में है तो दो बच्चों के बीच तुलना न करे या किसी एक का पक्ष न लें। ऑफिस में भी खयाल रखें कि किसी के प्रति अति-अनुराग कहीं आपको पक्षपात के लिए तो नहीं उकसा रहा है। सच के साथ खड़े हों। गलत को बढ़ावा न दें।

7. करीबी रिश्ते में भी थोड़ी औपचारिकता जरूरी है, अन्यथा रिश्तों में सम्मान-भावना कम होती है। घनिष्ठ मित्र से भी कभी उसकी निजी जिंदगी के बारे में ऐसे प्रश्न न करे, जिनमें वह असहज महसूस करे। लेकिन यदि वह अपनी समस्या बताना चाहे तो जरूर साझा करें। जरूरी हो तो मदद दें, हल भी सुझाएं।

8. परनिंदा से बचे। वास्तव में किसी के शुभचिंतक है तो उसकी गलतियां उसे ही बताएं, दूसरे को नहीं। ऑफिस में भी ध्यान रखें कि वहां बातों के केंद्र में कार्य हो। दूसरों की निजी बातों को चर्चा का विषय न बनाएं।

9. संबंधों में सबसे हानिकारक है अहं। विवाद की स्थिति में 'मैं उसे क्यों मनाऊं', 'मैं पहल क्यों करूं?,' 'मैं ही क्यों झुकूं?' जैसी स्थिति न आने दें। दूसरा पक्ष भी ऐसे ही सोचे तो निबाह कैसे होगा! किसी एक को तो अहं का त्याग करना होगा। यह संबंधों को जीवंत बनाए रखने की कुंजी है, इसे गांठ बांध लें।

10. कहते है दोस्ती का रिश्ता सबसे पवित्र होता है। ऐसा दोस्त जिसके साथ आप हंसें, रोएं, बातें कर सकें, जो आपको समझे, बुरे दिनों में साथ दे, किस्मत से ही मिलता है। अगर ऐसा दोस्त आपके पास है तो उसे न खोएं। उसे भी अपना प्यार, स्नेह, सहयोग, मदद दें। उसकी खुशियों और दुख में उसके साथ खड़े हों।