Tuesday, April 24, 2012

सुखद दांपत्य

पं. महेश शर्मा 

वैवाहिक जीवन की जटिलता को समझना मुश्किल है। बहुत से ऐसे कारण पैदा हो जाते हैं जो मनमुटाव का कारण बनते हैं। लेकिन सुखी दांपत्य जीवन के उपाय जरूर किए जा सकते हैं।

हर युवती जीवन साथी का चयन करते समय इस बात का खास ध्यान रखती है कि वह आकर्षक और सुंदर तो हो ही, सुशिक्षित और सभ्य भी हो। इसी तरह हर युवक की भी ऐसी ही इच्छा होती है। घर को सुघड़ गृहणी की तरह संभालने का गुण और नौकरी पेशा युवती मिल जाए तो ऐसा संबंध सोने में सुहागा माना जाता है। पर ऐसा क्या हो जाता है कि अकसर कुछ सालों बाद यही गुण खीझ पैदा करने वाले लगने लगते ह। कुढ़न की भावना पनपने लगती है जो समय के साथ उग्र ज्वालामुखी का रूप ले लेती है। अंतत: संबंधों में दरारें आने लगती हैं। कोई युवती पति का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखती है कि वह आकर्षक और प्रभावशाली तो हो ही करिअर में सफल, प्रेम से परिपूर्ण भी हो। कुछ ही दिन बाद सोच बदल जाती है और मामूली बातों पर टकराव पनपने लगता है।

खासकर कामकाजी दंपति के बीच धन और सम्पत्ति पर नियंत्रण का प्रयास खतरनाक टकराव में बदल जाता है। तर्क-वितर्क और कुतर्क का परिणाम यह होता है कि सात जन्मों के वादा बंधन में बंधे पति-पत्नी के बीच दीवार खड़ी हो जाती है। आज हर तरफ यौन उन्मुक्तता का माहौल है। यह वर्जित विषय नहीं रह गया है। पर यह जीवन को अत्यंत त्रासद भी बना देता है। ऐसे मामलों में संघर्ष के दिनों में तो दोनों एक-दूसरे की लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बनते हैं पर अचानक एक का करिअर उड़ान भरने लगता है और दूसरा नीचे खड़ा मायूस रह जाता है। यही मायूसी ईष्र्या का कारण बनती है और कई बार अलगाव भी पैदा कर देती है।

वफादारी, प्रेम, खुशी, विश्वास और समर्पण की भावना के विपरीत अगर शक, अविश्वास, कड़वाहट, कुढ़न, जीवनसाथी की उपेक्षा, रूखा व्यवहार हावी हो जाए तो तो रिश्तों को ढोने की जगह अलग हो जाने का विकल्प चुनने में कोई एक ज्यादा देर नहीं लगाता। अधिसंख्य दांपत्य केवल इसलिए तबाह हो जाता है क्योंकि जीवनसाथी एक-दूसरे पर पागलपन की हद तक नियंत्रण चाहते है। अहं का युद्ध छिड़ जाए, ईष्र्या बनी रहे, एक-दूसरे की जड़ें काटने की कोशिश होती रहे तो दांपत्य जीवन निश्चित ही नर्क बन जाता है। कभी कभी मिश्रित वरीयताओं के कारण दांपत्य जीवन का आकर्षण भी धुंधला जाता है। एक-दूसरे के प्रति घटिया भाषा का इस्तेमाल, अपमान, अविश्वास और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति खतरनाक परिस्थिति है और कई बार इससे उबरना बहुत मुश्किल होता है। गैर जरूरी हस्तक्षेप भी मनमुटाव बढ़ाता है और जीवन में जटिलताएं आनी शुरू हो जाती हैं।

इसमें है समझदारी

¯ छोटी-मोटी बातों को लेकर परस्पर अविश्वास की स्थिति पैदा न होने दें। खटास  देर तक और दूर तक बनी रहती है तो अलगाव तक मामला जा पहुंचता है। 
¯ एकदूसरे के महत्व को अच्छी तरह से समझें और जरूरतों को भी पूरा करें।
¯ घरेलू जिम्मेदारियों को तनाव का कारण न बनने दें।
¯ हमेशा समझबूझ से काम लें और समझौतावादी रुख अपनाएं।
¯  जरूरतें कैसे पूरी हों मिलकर सोचें और समस्या का समाधान भी मिलकर ही करने की आदत डालें।
¯ खर्च कभी भी आमदनी से अधिक न करें और बचत जरूर करें।

लगाव को अलगाव तक न जाने दें

पं. महेश शर्मा 

पति-पत्नी सुख हो या दु:ख, दोनों ही स्थितियों में अटूट साथी और सहभागी होते हैं। उनमें सागर से भी गहरा प्यार होता है। यही रिश्ता परिवार का आधार होता है। आपस में अनबन या रूठना स्वाभाविक भी है और जरूरी भी क्योंकि तकरार में ही मनुहार के इजहार का मजा है। छांव का सुख धूप झेलने के बाद ही मिलता है।
कहने से ज्यादा लाभ सहने में है। दो लोगों के बीच या परिवार में कहासुनी और झड़प होना कोई अनहोनी बात नहीं है किंतु यह अनबन दूध में खटाई की तरह न हो। प्यार की मिठास को सदाबहार बनाए रखने के लिए तालमेल हो जाना वैसे ही आवश्यक है जैसे सांसों के लिए ऑक्सीजन। किसी भी बात को मन में गांठ बनाकर रखने से मतभेद मनभेद में बदल जाता है और रिश्तों में दरार पड़ जाती है। घर कलह का अखाड़ा बन जाता है और इसका दुष्प्रभाव मासूम बच्चों पर तो पड़ता ही है दूसरे परिजनों के तनाव का कारण भी बन जाता है। तनाव ज्यादा बढ़ता है तो गृहस्थी की नाव डगमगाने लगती है।

अनबन हो भी जाए तो स्थायी रूप से अनमने न रहें बल्कि फिर प्यार के उसी मुकाम पर पहुंच जाएं। अलगाव को लगाव में बदल जाता है। संबंध पारे की तरह बिखरने तथा दिल से उतरने से बच जाता है। सात जन्मों और सात फेरों वाला रिश्ता सपने में भी टूटने न पाए इसलिए समझ, संयम, समझौता का दायरा कभी न लांघें। आपको अगर झुकाना आता है तो झुकना भी आना ही चाहिए। अहम से बात बिगड़ती है तो हम से बन भी जाती है।  आईने की तरह साफगोई अपनाने से सारे भ्रम, गिले और शिकवे दूर हो जाते हैं। दिल और जुबान में एकरूपता होनी चाहिए ताकि आचरण का दोहरापन संबंधों को खंडित न कर पाए। रिश्ते और ईमानदारी में चोली-दामन का नाता होता है और पति-पत्नी से बढ़कर कोई नजदीकी रिश्ता नहीं होता। हर दंपति को चाहिए कि अपने संबंध की महत्ता समझें क्योंकि अंधावेश कंव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है। बहुत संभलकर बोलें। गोली के घाव भर जाते हैं पर  बोली के घाव कभी नहीं भरते। सुख का मंत्र समझें और सहनशीलता अभेद कवच है यह बात कभी न भूलें।

क्यूं न करें अरेंज मैरिज

पं. महेश शर्मा


समाज में दो प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं। पहला परंपरागत विवाह यानी तयशुदा विवाह और दूसरा प्रेम विवाह। परंपरागत विवाह माता पिता की इच्छानुसार संपन्न होता है। जबकि प्रेम विवाह में लड़के लड़कियों की इच्छा और रुचि महत्वपूर्ण होती है।

भारतीय समाज में परंपरागत विवाह सदियों से प्रचलन में है और आज भी इसे ही समाज में अधिमान्यता प्राप्त है। अधिकांश लोगों का आज भी इसी में विश्वास है। लव मैरिज और लिव इन रिलेशन की बात भले ही जारी है पर एक हकीकत इस मामले में देखने को मिल रहा है कि समझदार और योग्य युवक अब फिर से तयशुदा विवाह यानी परंपरागत विवाह को ही प्राथमिकता देने लगे हैं। संभवतः लव मैरिज की परेशानियों की वजह से सफल युवाओं में इस तरह की प्रव2त्ति नये सिरे से देखने को मिल रहा है। ये बात अलग है कि वे करिअर ओरिएंटेड लड़कियों को ही प्राथमिकता देते है पर शादी घरवालों की रजामंदी से ही करना चाहते हैं।

यही वजह है कि परंपरागत विवाह आज भी प्रासंगिक हैं। विवाह का समाज में अस्तित्व का आधार यही है। अभिभावक से लेकर युवक तक ये सोचते हैं कि यही सही परंपरा है। आज मेरे पिता शादी करते हैं। कल हम अपने बंच्चे की शादी इससे भी धूमधाम से करेंगे। यही तो जिंदगी है। यही इतिहास है और ऐसा ही होता है।

अरेंज मैरिज जीवन भर के लिए होता है। इसमें तलाक दर आज भी बहुत कम हैै। भारत में यह आज भी 1.1 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका में 45.8 प्रतिशत तलाक दर है। परंपरागत विवाह में तलाक दर कम होने कारण यह माना जा रहा है कि शादी से पहले ही लड़का और लड़की दोनों के परिवार वाले अपने साधनों और जान पहचान के बल पर इस बात की तहकीकात कर लेते हैं कि रिश्ता सही है या नहीं। कम से कम इस मामले में भारतीय समाज में अब भावनाओं से कोई समझौता नहीं करता।

अरेंज्ड मैरिज के गुण

- मूल्य और अपेक्षा को सम्मान मिलना

- लड़कियां कम उम्र की और कम लंबा होना

- लुक की बात है तो एक-दूसरे की बातचीत पर निर्भर है।

- धर्म और जाति, भाषा का एक होना

- खानपान में समानता को ही प्राथमिकता और इस मामले में किसी को बाध्य नहीं किया जाता है। नान वेज और वेज में शादी होते भी है तो सहमति होने के बाद ही।

- पहले लड़कों की योग्यता को वरीयता दी जाती थी अब लड़ंकियों को भी योग्य होना बेहतर माना जाने लगा है।

- व्यवसाय भी आपसी सहमति पर आधारित होते हैं।

बेहतर दाम्पत्य के नुस्खे


पं. महेश शर्मा


बहुत से रिश्तों में खटास सिर्फ इसलिए आ जाती है पति पत्नी मिल बैठकर कुछ मिनट आपस में बात नहीं करते। दोस्तों या रिश्तेदारों की बुराई हो या दफृतर का मुदृदा हल्का फुल्का आपस में बांटने से दिमाग का प्रेशर भी तो कम होता है।


वैसे तो बेहतरीन लाइफ पार्टनर बनने का कोई सटीक नुस्खा अब तक नहीं ढूंढ़ा जा सका है पर रिश्तों में गर्माहट बना रखने और उनको नीरस होने से बचाने के कुछ मामूल से तरीके जरूर हैं, जिनको अपने जीवन में शामिल कर आप भी बन सकते हैं नंबर वन जीवनसाथी।

प्रेमपूर्ण उत्साहजनक तरीके से जीवन भर किसी का साथ निभा पाना कोई हंसी खेल नहीं है। ठीक उसी तरह दांपत्य को हमेशा उकताहट और नीरसता ही नहीं तबाह करती, बल्कि कई दफा लोग रिश्तों में गर्माहट रखने में ही पिछड़ जाते हैं। अगर आप चाहते है बेहतरीन जीवनसाथी साबित होना तो कुछ बातों पर गौर जरूर फरमाएं।

विश्वास करें

किसी भी रिश्ते को बेहतर तरीके से निभाने का मूल मंत्र है, एक-दूसरे पर सौ फीसदी विश्वास करना। किसी तरह का भय या शक दिल में जहां आपने रखा समझिए खुद को आप प्रेम से दूर करते जा रहे हैं। विश्वास टूटने के भय से पहले ही पत्नी पर  शंकालू निगाह रखना, आपको कमजोर करता है। प्रेम तो छूटता ही है, जो चीजें आपके पास होनी थीं, वे भी दूर होती जाती हैं।

स्वीकारें

जिसे आप प्यार करते हैं, उसे संपूर्णता के साथ स्वीकारें। उसकी अच्छाईयों को अपना लेना और कमियों का चुन चुनकर सुबह शाम गिनाते फिरना, आपके प्यार के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। जो है, जैसा है, उसको भर दीजिए प्यार से। संपूर्णता में प्यार करें। कमियों को कमियों की तरह लेना ही छोड़ दें। क्योंकि कोई भी परफेक्ट नहीं हो सकता। कुछ कमियां तो आपमें भी होंगी। बात चाहे प्यार की हो या काम की, जितना हो सके और जब तक हो सके आपस में एक-दूसरे की तारीफ करें। यह कभी नहीं मानकर बैठ जाएं कि प्रोत्साहन की जरूरत नहीं, क्योंकि हर किसी को बूस्टअप करना नहीं आता। और कोई कितना भी कहे पर हर किसी को तारीफ भाती है। यह बहुत जरूरी है तो बस शुरू हो जाइए। याद रखिए सम्मान देने से ही मिलता है। आप अपने जीवन साथी का सम्मान करेंगे तभी दूसरे भी उसे सम्मानित नजरों से देखेंगे। यदि आपने ही उसके बारे में अनाप शनाप बोलना शुरू कर दिया तो दूसरों को कैसे रोकेंगे। अपनी नाराजगी या नापसंद जरूर बताएं पर यह ख्याल रखें, कि सम्मान को ठेस न पहुंचे।

सलाह लें

कितनी भी अपनी मर्जी चलाने की आदत हो आपकी, बिना रुके या सोचे हर छोटी बड़ी बात पर सलाह लें। विचार शेयर करें। आपको यह पता भी हो कि अमुक मामले में रिएक्शन अलग हो सकता है तो भी आपकी यह जिम्मेदारी बननी है कि आप उनसे पूछें जरूर। फिर अपने तर्क देकर आप वहीं करें जो आपकी मर्जी है पर थोपें नहीं कुछ।

आप कुछ भी क्यों न करते हों, कुछ समय एक-दूसरे को जरूर दें। साथ में बैठक कर टीवी देखें, एक साथ डिनर करें या एक ही बिस्तर पर सो लेने से भावनात्मक नजदीकियां नहीं पनपती। कई रिश्तों में खटास सिर्फ इसलिए आ जाती है कि मिल बैठकर कुछ मिनट बतियाते नहीं। दोस्तों या रिश्तेदारों की बुराई हो या दफृतर की समस्या हल्का फुल्का बांटने से दिमाग का प्रेशर कम होता है और पति पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाता है।

कमजोर पड़ते रिशतों के बंधन

पं. महेश शर्मा


जिस तरह से युवा सामाजिक ताने बाने को समझने में असक्षम साबित हो रहे हैं, उससे तय है कि आने वाले वर्षों में इसका दौर फिर से लौट आएगा।


सामजिक नियंत्रण का प्रयोग विभिन्न अर्थों में होता रहा है। एक सामान्य धारणा है कि लोगों को समूह द्वारा स्वीक2त नियमों के अनुसार आचरण करने के लिए बाध्य करना ही सामाजिक नियंत्रण है, किन्तु यह एक संकुचित धारणा है। प्रारंभ में सामाजिक नियंत्रण का अर्थ केवल दूसरे समूहों से अपने समूह की रक्षा करना और मुखिया के आदेशों का पालन करना मात्र था। बाद में धार्मिक और नैतिक नियमों के अनुसार व्यवहार करने को सामाजिक नियंत्रण माना गया। वर्तमान समय में सामाजिक नियंत्रण का तात्पर्य संपूर्ण व्यवस्था के नियमन से लिया जाता है, जिसका उदृदेश्य सामाजिक आदर्शों को प्राप्त करना है।

यही कारण है कि प्रत्येक समाज में नियंत्रण की व्यवस्था होती है। इसका कारण यह है कि समाज और सामाजिक संबंधों की प्रक2ति, सामाजिक दशाओं एवं व्यक्तिगत व्यवहारों में भिन्नता पाई जाती है। सदस्यों के उदृदेश्यों, हितों एवं विचारों के भिन्न भिन्न होने के कारण एक ही प्रकार के नियंत्रण से सभी के व्यवहारों को नियमित नहीं किया जा सकता। ग्रामीण एवं नगरीय, बंद एवं मुक्त, परंपरात्मक, जनतांत्रिक एवं एकतंत्र समाज में सामाजिक नियंत्रण के स्वरूपों में भिन्नता होना स्वाभाविक है। कभी पुरस्कार के द्वारा तो कभी दंड के द्वारा, कभी औपचारिक व संगठित शक्तियों द्वारा तो कभी अनौपचारिक व असंगठित शक्तियों द्वारा नियंत्रण रखा जाता है।

औपचारिक सामाजिक नियंत्रण राज्य, सरकार या किन्हीं कानूनी संस्थाओं द्वारा गैर कानूनी व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए लागू किया जाता है। इन नियमों का सदस्यों पर बाध्यतामूलक प्रभाव होता है। ऐसा इसलिए कि इन नियमों के पीछे सरकार की ताकत होती है। यही कारण है कि व्यक्ति कानून का उल्लंघन करने से पहले कई बार सोचता है।

दूसरी तरफ अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण का वह प्रकार है जिसमें जनरीतियों, प्रथाओ, परंपराओं, रुढि़यों, आदर्शों, विश्वासों, धर्म एवं नैतिकता आदि के माध्यम से व्यक्तियों एवं समूहों के व्यवहारों को नियंत्रित किया जाता है। इन सामाजिक नियमों का पालन समूह कल्याण को ध्यान में रखकर नैतिक कर्तव्य के रूप में किया जाता है।

यही कारण है कि समाज जैसे जटिल व्यवस्था में व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए अनेक कानून बनाये गए हैं, फिर भी इस वैज्ञानिक युग में आज भी धर्म, प्रथा, परंपरा आदि का अपना विशिष्ट महत्व है। विवाह जैसे मुदृदों पर तो इसका महत्व आज भी काफी ज्यादा है।

हालांकि पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव व लोकतांत्रिक समाज में युवाओं में वैवाहिक संबंधों को लेकर उच्छं2खलता काफी बढ़ी है। आज का युवा किसी भी कायदे कानून को मानने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि अब सामजिक नियंत्रण न के बराबर है। इसके बावजूद आज जो परिणाम सामने आ रहे है उससे तत्काल तो लगता है कि वैवाहिक संबंधों को लेकर सामजिक नियंत्रण कमजोर होता जा रहा है, लेकिन इसके दुष्परिणामों को देखकर ऐसा लगता है कि कुछ ही समय बाद एक बार फिर से इस तरह के नियंत्रणों की आवश्यकता लोग खुद महसूस करेंगे।

सम्मान की चाह

प्राचीन कथाओं.पुराणों की बात करें तो भारत देश में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। उसे शक्ति का अवतार माना जाता है। मंदिरों में संगमरमर की प्रतिमाओं के समक्ष सारे लोग झुकते हैं। वास्तविकता बिलकुल अलग है। स्त्री आज भी निःशक्त है। अपने अधिकारों के प्रति सजग है भी तोए  उन अधिकारों का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र नहीं।

आज समाज की कुछ प्रतिशत महिलाओं के बारे में जरूर ये कहा जा सकता है कि वे वैचारिक तथा आर्थिक रूप से सुदृढ़ हैंए लेकिन आबादी का एक बड़ा प्रतिशत जो मध्यमवर्गीय है या उससे भी निचले स्तर पर जीता हैए वहाँ की स्त्रियाँ आज भी काठ की पुतलियाँ भर हैं। पुरुषों का दंभ स्त्री को वो सम्मान नहीं दे पाया है जिसकी वो हकदार हैं।

हमारे समाज में यह तो आम बात है कि यदि पत्नी पति से ज्यादा क्वालीफाइड है या दुनिया देखने का उसका नजरिया अधिक व्यापक हैए तो पति स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगता है। तब पत्नी के गुणों को बड़े दिल से स्वीकारने की बजाय वह उसे दबाकर रखने का हरसंभव प्रयास करता है। आखिर ऐसा क्योंघ्  नारी को पृथ्वी की तरह सहनशक्ति वाली और क्षमाशील कहा गया हैए वो स्वयं बंधन में सुखी रहती है।
पिता का सुरक्षा देनाए  पति का अधिकार जतानाए बच्चों का निश्चल स्नेहबंध उसे अच्छा लगता है। वह इतने सारे रिश्तों में घिरी निर्बल हो जाती है। पर हर रिश्ते को पूरी शिद्दत के साथ निभाती स्त्री कई बार कई स्थितियों में अपने आपको अकेला या असहाय ही महसूस करती है।

सिक्के का दूसरा पहलू सुकून देता है। जहाँ पुरुषों के एक छत्र साम्राज्य के बीच अपने वजूद को स्थापित करती नारी या इतिहास के पन्नों में अपनी जगह दर्ज करती जा रही नारियों की एक लंबी फेहरिस्त हैए जो निरंतर बढ़ रही है। अपने दायित्व एवं कर्तव्यों को निर्वाह करती स्त्री आत्मनिर्भर भी हो रही है। लेकिन आज भी उसे अपना श्स्पेसश् नहीं मिल पा रहा है।

आवश्यकता है कि हम स्त्री समाज के लिए सकारात्मकए सहयोगात्मक दृष्टिकोण रखते हुए नए सिरे से उनके लिए सोचें। स्त्री के रूप में हर रिश्ते को सम्मान दें क्योंकि वो उसका हक है।

कैसा जीवनसाथी

लड़कियों की नजर में वह लड़का उनका जीवनसाथी बनने योग्य हैए जो अपनी पत्नी की उपलब्धियों पर खुश हो तथा गर्व का अनुभव करे न कि ईर्ष्या करे या उसकी प्रतिभा को रौंदने का काम करे।

हर लड़की ऐसा जीवनसाथी चाहती है जिस पर उसे गर्व हो यानी वह उसकी चाहत की कसौटी पर खरा उतरता हो। लड़कियाँ लड़के के रंग.रूप या कद.काठी की बजाए उसकी पढ़ाई. लिखाईए  कमाई और वैयक्तिक गुणों को अधिक महत्व देती हैं। यदि पति हैंडसम हो और गुणों की खान भी तो सोने पर सुहागा।

हर लड़की ऐसा पति चाहती है जो कंजूस न हो और खुले हाथ से खर्च कर सकता होए क्योंकि कंजूस युवक के साथ उन्हें अपने जीवन की खुशियाँ नहीं मिल सकतीं। अच्छा कमाऊ लड़का ही वह पति के रूप में चाहती हैं। पत्नी की कमाई पर ऐश करने वाले या निर्भर रहने वाले लड़के को वह कभी पसंद नहीं करती।
ज्यादातर लड़कियाँ चाहती हैं कि उनका पति उनसे पढ़ा.लिखाए समझदार और योग्य हो। खुले विचारों का हो जिसकी सोच दकियानूसी न होकर विस्तृत होए क्योंकि तभी वह अपनी पत्नी की इच्छाओं और भावनाओं को समझ सकता है तथा उसकी कद्र कर सकता है। जो केवल उनका पति ही बनकर न रहे अपितु एक सच्चा दोस्त भी बने और सुख.दुख में साथ भी निभाए।
हमसफर परिपक्व हो जिसकी अपनी सोच व समझ हो न कि वह दूसरे के इशारे पर नाचता हो। दूसरे के इशारे पर नाचने वाले पति कभी अपनी पत्नी को समझ नहीं पाते। अवगुणी लड़के को कभी भी कोई लड़की अपना जीवनसाथी बनाना नहीं चाहेगीए  फिर चाहे वह किसी तरह का नशा करता हो या किसी बुरी अथवा आपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त हो। ये सब ऐसी लतें या आदते हैंए जो किसी भी पत्नी का जीवन नर्क बना देती हैं। उसे प्यार और साथ दोनों दे। शादी के बाद भी यदि उसे अकेलापन काटना पड़े तो ऐसी शादी से क्या फायदाघ् खासकर जो लड़के विदेश में नौकरी करते हैंए यदि वे अपने साथ अपनी पत्नी को ले जाएँ तब तो ठीक अन्यथा पिया मिलन की आस में जिंदगी कट जाती है।
देश में रहने पर भी यदि पति के पास अपनी पत्नी के लिए समय नहीं है तो पत्नी को पीड़ा होती है। कोई भी पत्नी कम आमदनी में गुजर.बसर कर लेगीए लेकिन उसे पति का साथ चाहिए।


बाक्स

लड़कियों की नजर में एक अच्छा पति वह हैए जो अपनी पत्नी को अपने समकक्ष दर्जा दे न कि उसे अपने पैरों की जूती समझे। स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाले को वह कभी जीवनसाथी बनाना नहीं चाहतीए क्योंकि ऐसे लोग पत्नी पर हाथ उठाना या उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने में अपनी मर्दानगी समझते हैं।

हमेशा चमकता रहे जिंदगी का चांद

 प्ं. महेष षर्मा

प्रेम इंसान के उन भावनात्मक पहलुओं की कोमल अभिव्यक्ति हैए जिसमें कि उसका स्वतंत्र भाव समर्पित रूप से समाया हुआ है। यह किसी तराजू का तौल नहीं अपितु सुंदरए कोमल भावनाओं का स्नेह भरा मोल हैए जिसका परस्पर आदान.प्रदान आपसी संबंधों को मधुर व मजबूत बनाता है।

विवाह मात्र रस्म नहीं  यह दो लोगों के परस्पर मन को जोड़ने वाला तार है इसलिए यदि दांपत्य जीवन की लय.ताल में तालमेल हो तो सरगम सुमधुर बन जाती है। वहीं अगर मन मिलने को राजी न हों तो कर्कशता जिंदगी भर का साथ हो जाती है। दांपत्य जीवन से जुड़ी परंपराएं व त्योहार आपसी प्रेम तथा सामंजस्य को बल देते हैं। तो क्यों न हम गहराई को दांपत्य जीवन की नींव बना लें और गृहस्थी के आंगन में हमेशा चांद को चमकता देखें।

संवाद रू. पति.पत्नी में झगड़ा होने पर पति.पत्नी अक्सर बोलना बंद कर देते हैं। ऐसा करने से मन में अनेक शंकाएं जन्म ले लेती हैं। रिश्तों में दरार आती है सो अलग। इसलिए मनमुटाव या तकरार होने पर संवाद द्वारा समस्या का हल निकालने का प्रयास करें एवं अपनी गलतियों को स्वीकारना भी सीखें। जहां प्यार होता है वहा तकरार होना लाजमी है।

सामंजस्य रू. गुण.अवगुण हर इंसान में पाए जाते हैं। भले ही कोई इंसान कितना भी अच्छा क्यों न हो उसमें भी बुराई हो सकती है। अपने जीवनसाथी की कमियोंए  बुराइयों को लेकर विवाद करना दांपत्य जीवन में दरार पैदा करता है। इसलिए जीवनसाथी की कमियों की बजाए अच्छाइयों पर ध्यान दें और प्यार से समझाकर बुराइयां दूर करने का प्रयत्न करें। विचारों एवं स्वभावों का उचित सामंजस्य ही सुखी वैवाहिक जीवन की धुरी है।

समय रू पति.पत्नी करियर या भौतिकता में इतना खो जाते हैं कि एक.दूसरे को समय ही नहीं दे पाते और यहीं से रिश्तों में शिथिलता आने लग जाती है। इसलिए काम से फुर्सत निकालकर एक.दूसरे के साथ कुछ लम्हे जरूर बिताएं या कहीं घूमने जाएं। इससे जहां एक.दूसरे के दिल की बातें जानने का अवसर मिलेगा वहीं रिश्तों में नयापनए अपनापन एवं प्रगाढ़ता भी आती है।

सुझाव रू. रिश्ता दीया और बाती के समान होता है। पति.पत्नी दोनों एक.दूसरे से अपनी बात मनवाने की अपेक्षा सुझावात्मक रूप में कहें कि यह कार्य यदि ऐसे किया जाए तो कैसा रहेगा। ऐसा करने से जहां आप मनमुटाव व तकरार से बच सकते हैं वहीं आपसी परामर्श द्वारा कार्य करने से अच्छे परिणाम भी मिल सकते हैं।

सहयोग रू. किसी भी व्यक्ति के साथ तालमेल करने में अक्सर इगो बाधक बनता है कि मैं ही ये काम क्यों करूंए लेकिन पति.पत्नी एक दूजे का सुख.दुरूख बांटनडे के लिए होते हैं तो आपस में सहयोग करने में कभी पीछे न रहें। पति पर ऑफिस के कार्यो का बोझ आने पर पर यथासंभव सहयोग करना चाहिए। वहीं घर के कामकाज में यदि पतिए पत्नी की मदद करे तो इससे प्यार बढ़ता है आपसी सहयोग से कठिन काम आसान भी हो जाते हैं।

सराहना रू. प्रशंसा शब्द भले ही छोटा हो परंतु आप जिसकी तारीफ करते हैंए  उससे एक ओर उसकी कार्यकुशलता बढ़ती है। वहीं संबंधों में मधुरता भी आती है। इसलिए अच्छा कार्य करने पर प्रशंसा करने में कभी भी कंजूसी न करें। सराहना करना इस रिश्ते को और भी प्रगाढ़ता प्रदान करता है। इनके अलावा शादी की सालगिरहए जन्मदिन पर एक.दूजे को गिफ्ट देना न भूलेंए  आपस में पूर्ण विश्वास करें शक को कोई जगह न दें।

परखें जीवनसाथी की महत्ता

 सुख.दुरूख में साथ।
 वायदे पूरे करें।
 भावनाओं को समझें।
 एक दूजे पर विश्वास बनाए रखें।

Monday, April 23, 2012

अरेंज मैरिज (Arrange Marriage)


शादी जैसे मुद्दे पर सभ्यता और संस्कति के बीच संघर्ष एक बार फिर चरम पर है, लेकिन अब चैकाने वाली बात ये है कि संभ्रांत परिवार के शिक्षित व करिअर में सफल अधिकांश युवक एक बार फिर से परंपरागत विवाह को पसंद करने लगे हैं।


हिंदू संस्कति में विवाह को सर्वश्रेष्ठ संस्कार बताया गया है, क्योंकि इस संस्कार के द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की सिदिृध प्राप्त करता है। विवाहोपरांत ही मनुष्य देवऋण, ऋषिऋण, पित2ऋण से मुक्त होता है।

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समाज में दो प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं। पहला परंपरागत विवाह यानी तयशुदा विवाह और दूसरा प्रेम विवाह। परंपरागत विवाह माता पिता की इच्छानुसार संपन्न होता है। जबकि प्रेम विवाह में लड़के लड़कियों की इच्छा और रुचि महत्वपूर्ण होती है।

भारतीय समाज में परंपरागत विवाह सदियों से प्रचलन में है और आज भी इसे ही समाज में अधिमान्यता प्राप्त है। अधिकांश लोगों का आज भी इसी में विश्वास है। लव मैरिज और लिव इन रिलेशन की बात भले ही जारी है पर एक हकीकत इस मामले में देखने को मिल रहा है कि समझदार और योग्य युवक अब फिर से तयशुदा विवाह यानी परंपरागत विवाह को ही प्राथमिकता देने लगे हैं। संभवतः लव मैरिज की परेशानियों की वजह से सफल युवाओं में इस तरह की प्रव2त्ति नये सिरे से देखने को मिल रहा है। ये बात अलग है कि वे करिअर ओरिएंटेड लड़कियों को ही प्राथमिकता देते है पर शादी घरवालों की रजामंदी से ही करना चाहते हैं।

यही वजह है कि परंपरागत विवाह आज भी प्रासंगिक हैं। विवाह का समाज में अस्तित्व का आधार यही है। अभिभावक से लेकर युवक तक ये सोचते हैं कि यही सही परंपरा है। आज मेरे पिता शादी करते हैं। कल हम अपने बंच्चे की शादी इससे भी धूमधाम से करेंगे। यही तो जिंदगी है। यही इतिहास है और ऐसा ही होता है।

अरेंज मैरिज जीवन भर के लिए होता है। इसमें तलाक दर आज भी बहुत कम हैै। भारत में यह आज भी 1.1 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका में 45.8 प्रतिशत तलाक दर है। परंपरागत विवाह में तलाक दर कम होने कारण यह माना जा रहा है कि शादी से पहले ही लड़का और लड़की दोनों के परिवार वाले अपने साधनों और जान पहचान के बल पर इस बात की तहकीकात कर लेते हैं कि रिश्ता सही है या नहीं। कम से कम इस मामले में भारतीय समाज में अब भावनाओं से कोई समझौता नहीं करता।

परंपरागत विवाह के गुण

- मूल्य और अपेक्षा को सम्मान मिलना

- लड़कियां कम उम्र की और कम लंबा होना

- लुक की बात है तो एक-दूसरे की बातचीत पर निर्भर है।

- धर्म और जाति, भाषा का एक होना

- खानपान में समानता को ही प्राथमिकता और इस मामले में किसी को बाध्य नहीं किया जाता है। नान वेज और वेज में शादी होते भी है तो सहमति होने के बाद ही।

- पहले लड़कों की योग्यता को वरीयता दी जाती थी अब लड़ंकियों को भी योग्य होना बेहतर माना जाने लगा है।

- व्यवसाय भी आपसी सहमति पर आधारित होते हैं।

- इसी तरह वित्तीय और कुंडली मिलान भी कराया जाता है और अनुकूल होने पर ही शादी की बातें पक्की होती है।

इसके अलावा इसमें विवाह वैदिक रीति रिवाजों के अनुकूल होते हैं। सगे संबंधियों, दोस्तों व अपने शुभचिंतकों को आामंत्रित किया जाता है। इसे सामाजिक अधिमान्यता भी मिलती है और विवाह संपन्न होने के बाद पति-पत्नी को समाज द्वारा बराबर का सम्मान भी दिया जाता है।

आज के युवा ये समझ गए हैं कि तयशुदा विवाह युवाओं को बिना किसी चिंता और भागदौड़ के एंज्वाय करने का बेहतर अवसर प्रदान करता है। ऐसा इसलिए कि परंपरागत विवाह:

अहसास बनाम प्रतिबदृधता

विवाह का यह तरीका भारतीय युवाओं को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि जिस लड़की को आप जानते तक नहीं उसके साथ जिंदगी भर आपको जीना है। इसलिए जीने का तरीका सीखें और इस बात का प्रयास करें कि प्यार कैसे करें। ये प्रयास जिंदगी भर तक बने रहने चाहिए। जबकि पश्चिमी देशों में शादी करने से पहले ही ये तय कर लिया जाता है कि हम प्यार करते हैं या नहीं। यहीं पर वे लोग मात खाते हैं, क्योंकि पति पत्नी के बीच प्यार का मामला कोई सौदा नहीं है। यह अपने प्रयास, त्याग और सम्मान के बल पर जिंदगी भर के लिए जिंदा रखा जा सकता है। और ये बात हमें भारतीय विवाह व्यवस्था में ही संभव है।

यह बलात विवाह नहीं है

लव मैरिज के पक्षधर अधिकांशतया ये तर्क देते हैं कि परंपरागत विवाह बाउंडेड मैरिज हैै। ऐसा है नहीं पर कहने के लिए आप कुछ भी कह सकते हैं। हकीकत ये है कि शादी से पहले कई चरणों में परिवार वाले मिलते हैं। बातचीत का सिलसिला चलता है। पारिवारिक मूल्यों को लेकर बातचीत होती है। लड़के और लडकियों को मिलने का का मौका दिया जाता है। इस क्रम में वे एक-दूसरे को बहुत हद तक जान लेते हैं। आजकल तो उन्हें इंगेजमेंट के बाद डेटिंग की भी इजाजत दी जाने लगी है।

शादी परिवारिक रिश्ते होते हैं

भारत में शादी को लड़के और लड़कियों के बीच का संबंध भर नहीं, बल्कि इसे पारिवारिक संबंध भी माना जाता है। ऐसा इसलिए कि हमारे यहां परिवार व्यवस्था काफी मजबूत है और हम सब एक-दूसरे के साथ मिलकर जीते है। और सुख-दुख को एक-दूसरे से बांटते हैं। इसलिए शादी तय होने पर इसे दो परिवारों के बीच भी नया रिश्ता माना जाता है। यही कारण है कि शादी का खर्च अभिभावक ही उठाते हैं। वे इसे अपनी जिम्मेदारी मानते हैं।

सच कहें फिर हमसफर बनाएं

पं. महेश शर्मा

दूध और पानी जब मिलते है, तो एक हो जाते हैं। प्रीत की सुंदर रीति देखिए कि यदि कपट की खटाई उसमें पड़ गई तो सारा रस चला जाता है। विवाह प्रेम का ऐसा ही मिलन है।

इसमें दो अस्तित्व पानी और दूध की तरह मिल जाते हैं। यदि इस मिलन की बुनियाद ही झूठ पर टिकी हो तब प्रेम और विश्वास का यह मिलन दूध की ही तरह फट जाता है, जिसे दुबारा पहले जैसा बनाना संभव ही नहीं है।

चूंकि शादी मानव जीवन का अभिन्न अंग है। रिश्ते को जोड़ने से पहले सबसे पहले ध्यान रखें कि आपस में कोई भी ऐसी बात दबी छुपी हो जो विवाह के बाद आपके साथी की मानसिक परेशानी का कारण बन सकता है तो आप उन्हें सबकुछ बता दें। इसके बाद आपकी जिम्मेदारी समाप्त। अब यह आपके साथी की इच्छा पर निर्भर है कि वह आपको उसी स्थिति में स्वीकार करता है या नहीं।

बहुत सी महिलाएं अपनी निजता और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए ससुराल से अलग रहना पसंद करती हैं। पर आपको अपने इस आइडिया को अच्छे माहौल में डिसकस करना चाहिए। यदि आपने अपने करिअर या सपनों को लेकर अलग शहर, अलग देश या अलग रहना पसंद किया है, तो इस बारे में भी खुलकर बात हो जानी चाहिए। अधिकतर पुरुष अपने करिअर में उन्नति के लिए या प्रमोशन के प्रलोभन में यह अपेक्षा रखते हैं कि उनकी पत्नी और परिवार उनका अनुसरण करें। इससे रिश्तों में दरार आती है।

इसी तरह आपस में स्वास्थ्य को लेकर भी चर्चा कर लें। इस मुदृदे वर भी एक दूसरे से कुछ न छुपाएं। नही ंतो शादी के बाद ये समस्याएं होने पर यह संबंधों को तोड़ने का कारक बनता है। पति पत्नी छला महसूस करने लगते हैं। तभी से उनके जीवन में तनाव व्याप्त हो जाता है। वह घर और बाहर दोनों ही जगह सामान्य जिंदगी नहीं जी पाते। कई बार तो मन इतना आहत करती है कि उससे सब छुपाया गया। वह इस रिश्ते के प्रति सहज नहीं हो पाते। 

आप अपने करिअर और लक्ष्यों पर भी बात कर लें, क्योंकि आपको एक हाउसवाइफ की तरह रखने की अपेक्षा आपके पति की हो सकती है, जबकि हो सकता है कि आप अपने करिअर के प्रति गंभीर हों। बाद में ऐसी बातें अक्सर विवाद का कारण बनती हैं।

जिंदगी को जीने के लिए वित्तीय मसले एक ऐसा मुदृदा है जिस पर अक्सर लोग संकोच के कारण बात नहीं कर पाते। बाद में इस विषय पर की गई अतिरिक्त सुरक्षा अविश्वास का कारण बनती है। चूंकि इन मामलों में आजकल लड़कियां भी रूचि लेने लगी हैं, जो विवाद का कारण बनता है। ये चिंता पति-पत्नी के संबंधों को अस्वभाविक बना देता है।

ध्यान रखें:

- अतीत हमेशा वर्तमान और भविष्य पर भारी पड़ता है।

- सभी जोड़ों के बीच अहसमति के बिंदु होते हैं, लेकिन मुदृदों के  प्रकार और उसकी प्रबलता शादीशुदा जीवन की संगतता को परिभाषित करते हैं।

- संतुलन नही ंहै तो जीवन नर्क हो जाता है; और यदि अपने साथी को छोड़ते हैं तो उस अंतराल को पाटना दोनों के लिए अति दुःखद होता है।

- शादी के बाद कई अनजान मुद्दों पर संबंध बिगड़ने की नौबत आन पड़ती है इसलिए इन मुदृदों पर पहले से ही स्पष्ट रहें।

गुण:

लड़के लड़कियां आजकल हमसफर की तलाश के वक्त कोई समझौता नहीं करना चाहते, लेकिन ऐसा भी नहीं हो सकता है कि सोलहों गुणों से संपन्न हो। ऐसे में व्यावहारिक स्तर पर मन को मनाना पड़ता है। खैर ये सब तो डिबेट का विषय है। आजकल दोनों तरफ से शिक्षा, आय, सुंदरता, व्यवसाय, पारिवारिक प2ष्टिभूमि, शहर, व्यवहार, विचार आदि स्तरों पर लोग लड़के और लड़की दोनों एक-दूसरे में इन गुणों को जज करते है कि पहले की तरह परिवार के गुणों को। 

क्यों लेते हैं सात फेरे

क्या चीज है ये अंक भी। एक-एक अंक अपने अंक में कैसी कैसी विशेषताएं, कैसे कैसे रहस्य लिए दुनिया को नचातो रहते हैं। हमारी संस्क2ति में, हमारे जीवन में, हमारे जगत में इस अंक विशेष का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सूर्य के रथ में साथ घोड़ों का जिक्र आता है। प्रकाश में सात रंग होते हैं। सुर में सात स्वर, सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि, यानी षड़ज, ऋषभ, गंधार, माध्यम, पंचम निषाद होते हैं।

सात लोकों, भू, भुवः स्वः, महः, जन, तप और सत्य का वर्णन मिलता है। पाताल भी सात ही गिनाये गए हैं जैसे अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। सात द्विपों के साथ-साथ सात समुद्रों का अस्तित्व है। सात ही पदार्थ, गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, म2दंग, दर्पण और मणि, शुभ माने जाते हैं। सात क्रियाएं, शौच, मुखशुदृधी, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन तथा निद्रा आवश्यक होती हैं। इन सात जनों ईश्वर, माता, पिता, गुरु, सूर्य, अग्नि तथा अतिथि का सम्मान करने के साथ-साथ इन सात विकारों का ईष्र्या, क्रोध, मोह, द्वेष, लोभी, घ2णा तथा कुविचारों का त्याग करना चाहिए। हमारे वेदों में स्नान भी सात ही प्रकार के बताए गए हैं। यथा मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्नि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान और मानसिक स्नान।

शायद इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने वैदिक रीति से होने वाले विवाहों में सात फेरों तथा सात वचनों का प्रावधान रखा था। वैदिक नियमों के अनुसार अपने परिजनों की साक्षी में वर वधु पवित्र अग्नि के सात फेरे लेकर सात बचनों को निभाने का प्रण करते हैं। दोनों मिल कर यह कामना करते हैं कि हमें सदा सातों ऋषियों का आशीर्वाद मिलता रहे। हमारा प्रेम सात समुंदरों जैसा गहरा हो। निश दिन उसमें सातों सुरों का संगीत गुंजायमान हो। जीवन में सदा सातों रंगों का प्रकाश विद्यमान रहे। हमारी ख्याति सातों लोकों में फैल जाए।

सात कसमें (Seven Promises)

विवाह संस्कार भारतीय संस्कृति के मूलाधार हैं। गर्भाधान से लेकर अंत्येष्ठि तक सभी सोलह संस्कारों में विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि उसी के बाद गृहस्थ धर्म ही सोलह संस्कारों को पूर्णता प्रदान करता है। शक्ति और शिव अर्थात स्त्री और पुरुष के अनन्य प्रेम से सृष्टि का यह क्रम जारी रहता है। यही वहज है प्रेम आज भी प्यार का सशक्त माध्यम है।

आज भी विवाह के अवसर पर दूल्हा और दुल्हन अग्नि को अपना साक्षी मानते हुए सात फेरे लेते हैं। प्रारंभ में कन्या आगे और वर पीछे चलता है। भले ही माता-पिता कन्या दान कर दें। किंतु विवाह की पूर्णता सप्तपदी के पश्चात् तभी मानी जाती है जब वर के साथ कदम चलकर कन्या अपनी स्वीकृति दे देती है। शास्त्रों ने अंतिम अधिकार कन्या को ही दिया है। वामा बनने से पूर्व कन्या वर से यज्ञ, दान में उसकी सहमति, आजीवन, भरण पोषण, धन की सुरक्षा, संपत्ति खरीदने में सम्मति, समयानुकूल व्यवस्था तथा सखी सहेलियों में अपमानित न करने के सात वचन वर से भराए जाते हैं। इसी प्रकार कन्या भी पत्नी के रूप में अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए सात वचन भरती हैं।

सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था, दूसरा शक्ति संचय, आहार तथा संयम, तीसरा धन की प्रबंधन व्यवस्था, चैथा आत्मिक सुख, पांचवां पशुुधन संपदा, छठा सभी ऋतुओं में उचित रहन-सहन के लिए तथा अंतिम सातवें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती हैं तथा सहर्ष जीवन पर्यंत पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती है।

इस सबका अहसास तत्काल तो नहीं होता पर व्यावहारिक जीवन में ये भी पहलू उभर कर सामने आतें हैं। उसी दौरान ये सब साबित होता है कि पति पत्नी एक दूसरे को दिए वचन का पालन करते हैं या नहीं। हालांकि इसमें उतार चढ़ाव होता रहा है, जो जीवन का अभिन्न पड़ाव माना जाता है। ऐसे ही पड़ाव आने पर दोनों से समझदारी की अपेक्षा की जाती है। इसी क्रम में हंसी से या फिर ताने मारने के बहाने ये सब बातें उभरकर सामने आती हैं।