Friday, March 25, 2011

वैवाहिक रिश्ते नहीं रहे अटूट (Merraige Relationships are not Inexhaustible)

महेश शर्मा

वो जमाना गया जब हिंदू धर्म में पत्नी अपने पति को परमेश्वर मानकर जिंदगी भर का साथ निभाती थी। हिंदू विवाह कानून लागू होने के बाद से इस रिश्ते को निभाने के मामले में दोनों के समान अधिकार हैं। यानी पति और पत्नी दोनों को समान करार दिया गया है।

सामान्य भारतीय नागरिकों के लिए पहले किसी समान नागरिक नियमावली के न होने से भारत के दो प्रमुख समुदाय हिंदू और मुसलमान अपने-अपने पारंपरिक कानूनों से अनुशासित होते रहे हैं। अर्थात हिंदू कानून और मुसलमान मुस्लिम कानून से। अदालतें संवैधानिक अधिनियमों के अनुसार या निष्पक्षता, न्याय और विवेक के आधार पर हिंदू कानून लागू करती है।

विवाह का पारंपरिक दृष्टिकोण इस विचारधारा पर आधारित था कि लोग आध्यात्मिक लाभ के लिए शादी करते हैं। मनु, नारद, याज्ञवल्क्य, वशिष्ठ तथा कौटिल्य के समय से अब तक विचारधारा में बहुत परिवर्तन आया है। नये कानूनी नियमों के अंतर्गत परंपरागत हिंदू विचारधारा में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। अब विवाह पति पत्नी के लिए जन्म जन्मांतर बंधन नहीं

भारतीय समाज के बहुत बड़े भाग में यद्यपि शादी को आध्यात्मिक पवित्रता पर आधारित मानने का अभी भी रिवाज है, लेकिन यह अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि इस विचारधारा में हिंदू स्त्रियों को पुरूष के बराबर का स्थान बिल्कुल भी प्राप्त नहीं है।

वैदिक नियमों के अनुसार एक पुरूष की कई पत्नियां हो सकती हैं, लेकिन एक औरत के अनेक पति कदापि नहीं हो सकते। विवाह के बाद यद्यपि पति और पत्नी एक हो जाते हैं, लेकिन शादी निष्पन्न होने पर अर्थात सप्तपदी की समाप्ति गोत्र स्वीकार करना होता है। इस प्रकार औरत का गोत्र भी बदल जाता है और उसे अपनी व्यक्तिगत पहचान से पूर्णतः हाथ धोना पड़ता है। पुरूष के साथ ऐसा कुछ नहीं होता।

एक हिंदू के लिए विवाह आमोद-प्रमोद का विषय नहीं, बल्कि एक कर्तव्य है। इसका उद्देश्य वंश वृद्धि और धार्मिक व आध्यात्मिक कर्तव्यों की पूर्ति करना है। तय है कि पहले स्त्रियां सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक अधिकारों से वंचित होती थीं। पत्नी के लिए पति उसका स्वामी, भगवान, पति परमेश्वर होता था। पत्नी के बिना कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं हो सकता था।

लेकिन अब ऐसा नहीं है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और विवाह कानून संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा हिंदू विवाह की अवधारणा में क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया है। अब विवाह और तलाक के संबंध में स्त्री और पुरूष दोनों ही कानून की दृष्टि में बराबर है। इस अधिनियम द्वारा विवाह की प्राचीन अवधारणा को समाप्त कर दिया गया है।

अब विवाह के समय लड़का लड़की के जीवित पत्नी या पति नहीं होना चाहिए। विवाह के समय दोनों में से कोई मानसिक असंतुलन का शिकार न हो। संतानोत्पत्ति के अनुपयुक्त न हों। उसे पागलपन अथवा मिर्गी के बार बार नहीं दौरे पड़ते हों। विवाह के समय दूल्हे ने 21 वर्ष और दुल्हन ने 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो।

दोनों पक्षों में से कोई निर्विद्ध रिश्ते की सीमा में न आते हों। दोनों पक्ष एक दूसरे के सपिंड नहीं हों, क्योंकि कई क्षेत्रों में रिवाज और प्रथाएं इसकी अनुमति नहीं देते हैं। जहां सप्तपदी का अनुष्ठान विवाह के समय होता है वहां सातवां फेरे लेते ही विवाह को परिपूर्ण हो जाता है और दोनों पक्षों के लिए कानून प्रभावी हो जाता है।

नये अधिनियमों के अनुसार दोनों पक्षों को एक ही जाति का होना अनिवार्य नहीं है। अब जाति भेद तथा जाति के आधार पर पक्षपात समाप्त हो गया है। इसके साथ ही ऐसा पुनर्विवाह, जहां एक पुरूष की पहली पत्नी जीवित है, रद्द कर दिया गया है। कोई भी हिंदू पुरूष एक पत्नी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है।

तुम यूं न रूठा करो...

पं. महेश शर्मा

रूठे हुए को मनाने की बीच सबसे बड़ी अड़चन होता है अहंकार। अगर यह अहंकार नहीं होता तो हजारों परिवार टूटने से बच जाते। रिश्तों के बीच खटास नहीं आती अपने अहंकार को पोषित करने के लिए व्यक्ति अपनों के साथ रिश्तों को ताक पर रख देता है। इस एक अवगुण को दूर करें तो रिश्ते टूटने से बच सकते हैं।

यकीन मानिए, यदि आगे बढ़कर आपने साॅरी कह दिया तो आप छोटे नहीं होंगे, बल्कि इससे आपका बड़प्पन ही झलकेगा। फिर चाहे बात दोस्ती के रिश्तों की हो या पति-पत्नी के बीच संबंधों की।

हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता था। हमारे बगल में होने के कारण उसके घर की बातें हमें अनायास ही सुनाई पड़ती थींफ पिता व पुत्र के बीच जैसा सम्मानजनक रिश्ता होना चाहिए, वैसा उस घर में नहीं था।

बेटा अपने पिता से सीधे मुंह बात तक नहीं करता था। अपने पिता का कुछ भी कुछ भी पूछना या सलाह देना उसे गवाना नहीं था। उनके कुछ पूछते ही वह उबल पड़ता था कि अब मैं बड़ा हो गया हूं। अपना भला बुरा समझता हूं। बात-बात पर मुझे टोका मत कीजिए। 

कुछ समय बाद उसकी शादी हुई और जब वह पिता बना, तब उसे अहसास हुआ कि माता पिता अपने बच्चों का हमेशा ही भला चाहते हैं। पर जब उसे होश आया तो बहुत देर हो चुकी थी। उसके पिता इस दुनिया से दूर जा चुके थे।

अब उसे यही दर्द सालता रहता है कि मैंने अपने अहंकार के चलते अपने पिता से बदसलूकी की। मैंने अदब से, नम्रता से पिता को समझने की कोशिश व अपनी बात समझाने की कोशिश क्यों नहीं की?

अक्सर किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों पक्ष कहते है। कि गलती से दूसरे पक्ष की है ओर चूंकि गलती उनकी है तो उनको झुकना चाहिए। यह तनातनी और गुस्सा सेहत पर भी बुरा असर डालता है। आपने देखा होगा कैसे बच्चे आपस में लड़ते हैं और बाद में सब भूलकर फिर खेलने लग जाते हैं। उनका अनुसरण करने की जरूरत हमें भी है।

आपके अपने अनमोल हैं। प्यार का भी कोई मूल्य नहीं होता। इसे तो बस प्यार और सम्मान देकर ही पाया जा सकता है। पति पत्नी के बीच अहं का टकराव, मामूली सी बात पर तनातनी आम बात हो गई है। इस पर कोई झुकने को भी तैयार नहीं होता और कई कई दिनों तक बातचीत बंद हो जाती है।

याद रखें, इससे आपको बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है। यदि आप आगे बढ़कर अपने से रूठे हुए को मनांएगे तो उन्हें भी अपनी गलती का अहसास होगाा। इससे प्यार में इजाफा ही होगा। इस बात का भी ध्यान रखें कि पड़ोसियों से जब भी मिलें, मुस्कराकर मिलें।

अगर आपके और उनके स्वभाव नहीं मिलते सम्मानजनक दूरी बनाएं। रिश्ता कोई भी हो, आपसे कोई रूठा हुआ है तो उसे मनाने के लिए आप ही पहल करें। यदि आप उससे मिल नहीं सकते तो कम से कम फोन तो कर ही सकते हैं।

हर किसी को उसकी अच्छायों और बुराइयों दोनों के साथ स्वीकार करें। हर समस्या को धीरज के साथ बैठकर पूरी तहजीब के साथ, बिना किसी गुस्से के गरिमामय वातावरण बनाएं रखते हुए सुलझाएं।

Monday, March 21, 2011

शादी हमारी जरूरत (Marriage Our Need)

महेश शर्मा

इस जगत में स्त्री और पुरूष एक-दूसरे के लिए बने है। मानव समाज का अस्तित्व दोनों से है। अपने आप में किसी का वजूद पूर्ण नहीं हो सकता। इसलिए शादी भी जरूरी है ताकि एक अवस्था के बाद आपको ऐसा लगे कि जिंदगी अधूरी नहीं पूरी है। 

पच्चीस वर्षीय रागिनी के घर में पिछले तीन सप्ताह से शादी का हल्ला गुल्ला है। न...न... ये हल्ला गुल्ला शादी के रस्मों-रिवाज, मेहमानों चिल्लापों और खुशियों की धमाचैकड़ी से नहीं उपजा है। असल में तो पिछले दिनों रागिनी के माता पिता उसकी शादी के लिए एक रिश्ते लाने की गुस्ताखी कर बैठे। गुस्ताखी इसलिए क्योंकि रागिनी को शादी के बंधन मंे बंधने से इंकार है। उसे लगता है कि इसकी कोई जरूरत नहीं। क्या आप भी ऐसा ही कुछ सोचते हैं।

रागिने ने इस पर न सिर्फ घर में बवाल मचाया बल्कि अपने पापा से यह भी कह दिया कि यदि आज के बाद मेरे लिए कोई रिश्ते लेकर आये तो मैं घर छोड़कर चली जाऊंगी। उसकी इन बातों ने उसके पिता को बुरी तरह झकझोर दिया। वे डर गए कि कहीं उनकी बेटी शादी के दबाव के चलते कोई गलत कदम न उठा ले। अंततः उन्होंने तय किया कि अब उसके लिए कोई नया रिश्ता नहीं देखेंगे।

वही पिछले दिनों जब रागिनी अपनी एक सहेली की बहन की शादी में गई तो वहां पाया कि नया जोड़ा और कई अन्य शादीशुदा जोड़े पूरी तन्मयता से विवाह की रस्में एंज्वाॅय कर रहे थे। यहीं नहीं कुछ रस्में तो बड़ी ही दिल छू लेने वाली थीं और कई अविवाहित युवक युवतियां भी मनोयोग से उन्हें देख रहे थे।

इसके कुछ ही दिनों बाद रागिनी का अपनी बचपन की सहेली रेशमी के घर जाना हुआ। उसने वहां देखा कि किस तरह रेशमी का पति देवेश उसकी छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखता है। वह अपने से ज्यादा रेशमी की फिक्र करता है। इन सभी बातों के कारण अंततः रागिनी के मन में भी शादी करने की भावना जागने लगी।

रागिनी ही नहीं बल्कि ज्यादातर लड़कियां जो 20 साल के पड़ाव से गुजर रही होती है, शादी से दूर भागती हैं। दरअसल कहने का मतलब यह है कि जमाना बदल चुका है, सोच विचार में खुालापन आया है, लिव इन रिलेशनशिप तक को अर्ध कानूनी मान्यता मिल चुकी है। इन सबके बावजूद शादी आज भी हमारी जरूरत है।

अच्छी बात यह है कि इस दौर में शादी के मायने हमारे लिए नहीं बदले हैं। हम यह भलीभांति जानते हैं कि हमें हर मोड़ पर किसी विशेष व्यक्ति की जरूरत होती है जो हमारी बातों को हमारी आंखों से समझ जाए। कोई ऐसा हो जो हमें हमसे बेहतर जानता हो, हमारे लिए जीता हो। शादी हमारी भावनाओं को भी एक खास मुकाम देती है।

अक्सर देखा जाता है कि 50 या 57 साल की उम्र के बाद जो पुरूष या महिला अकेले होते हैं, उन्हें अकेलापन कचोटता है। वे अपनी तन्हाइयों में घिरे होते हैं। नतीजतन आम लोगों की तुलना में ये ज्यादा कठोर हो जाते हैं।

समाशास्त्रियों का मानना है का ताउम्र अकेले रहना कोई आसान काम नहीं है। अकेले में न हमारी भावनात्मक जरूरतें पूरी हो पाती हैं, न ही हम अपने दिल की बात किसी से शेयर कर पाते हैं। फिर समाज ऐसी महिलाओं क्या पुरूषों तक को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता।

वजह चाहो जो भी हो महिला हो पुरूष दोनों के लिए ही जीवनसाथी की बेहद जरूरत होती है। जिंदगी जीने के लिए हमारे पास एक साथ का होना बहुत जरूरी है। सिर्फ इसलिए नहीं कि हमें समाज का हिस्सा बनना है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह हमारी मानसिक जरूरत है। वरना हम जिंदगी के हर मोड़ पर खुद को अकेला पाते हैं और इसकी पूर्ति कोई अन्य शख्स नहीं कर सकता।

सो, जिंदगी चाहे कितनी ही तेजी से आगे क्यों न बढ़ रही हो, समय हमारे लिए जीवनसाथी की कमी को कभी पूरा नहीं कर सकता। अतः शादी आज भी हमारे लिए उतनी ही अहम है जितनी कि पुराने जमाने में हुआ करती थी। 

Thursday, March 17, 2011

होली आई मेरे पिया

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।

राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का हृदय खुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।

इतिहास

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं।

आधुनिकता का रंग

होली रंगों का त्योहार है, हँसी-खुशी का त्योहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते है। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, भांग-ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फिल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप हैं। लेकिन इससे होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी की शान में कमी नहीं आती। अनेक लोग ऐसे हैं जो पारंपरिक संगीत की समझ रखते हैं और पर्यावरण के प्रति सचेत हैं। इस प्रकार के लोग और संस्थाएँ चंदन, गुलाबजल, टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए हैं, साथ ही इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहे हैं। रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं। होली की लोकप्रियता का विकसित होता हुआ अंतर्राष्ट्रीय रूप भी आकार लेने लगा है।

देश विदेश की होली

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भले ही विविध प्रकार से रंगों का उत्सव मनाया जाता है परंतु सबका उद्देश्य एवं भावना एक ही है। ब्रज मंडल में इस अवसर पर रास और रंग का मिश्रण देखते ही बनता है।
बरसानेश् की लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंद गाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना के पश्चात जम कर बरसती लाठियों के साए में होली खेली जाती है। इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग श्बरसानाश् आते हैं।

विशिष्ट उत्सव

भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली, काफी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी १५ दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा, चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी, में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो, में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला, में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई, मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है जबकि मणिपुर के याओसांग, में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी, में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया, जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली, में इस पर धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के श्रृंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है जिसमें अनेक समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।

Saturday, March 12, 2011

प्यार क्यों करें? (Why We Love?)



जीतू लोधी
प्यार करना हम सभी के लिए उतना ही जरूरी है जितना की जीवन में अन्य काम जैसे काम करना, खाना खाना, पैसे कमाना, सोना इत्यादि प्यार से ही हमारे सम्बन्धों में मिठास का एहसास होता है प्यार करने से पता चलता के आपके लिए भी कोई सोचता है हर हर वक्त अपनी परेशानी को अपनी परेशानी समझता है। और आपको इतना प्यार करता है के वो आपके लिए सबकुछ करने के लिए तैयार हो जाता है।


जीवन में के शुरूआती दौर में ही आपको ये सुनने के बेटा पढ़ा पढ़ाई करो? बेटी कुछ काम धाम भी कर लिया कर। ये टाइम से सोया करो वगरह-वगरह ये बातें ही ही नहीं कही जाती इनके सबके पिछे एक शब्द होता है क्यों। मतलब अगर आप पढ़ाई समय से करें तो वो आपके जीवन को एक दिशा प्रदान करेंगी और शिक्षा हर क्षेत्र के लिए जरूरी है। इसी तरह अब अगर कोई आप से ये पुछे के प्यार क्यों करें तो आप शायद ही बता पायें पर प्यार जीवन में उतना ही जरूरी है जितनी शिक्षा या अन्य कोई काम जो आपके जीवन के लिए जरूरी हो,  साथ साथ याद रखें की जिस तरह पढ़ाई को न करने से बुरे या पढ़ाई को सही ढंग से न करने के बुरे परिणाम हो सकते हैं उसी तरह प्यार को करने के भी नियम है और महनत से करने की जरूरत ।


प्यार जीवन में इसलिए करना चाहिए ताकि आपको सम्बन्धों का एहसास हो और आप अपने विश्वास को पा सकें अपने जीवन को संवार सकें और एक नई एवं दृढ़ दिशा पा सकें प्यार करना आजकल कई दृष्टिकोण से फायदे मंद है जैसे आजकल प्यार करने से पहले प्यार करने वालो को अवश्य ही पता चल जाता है के अगर प्यार को बनाये रखना है तो बेटा अब अच्छा काम धाम और एक अच्छी इमेज की जरूरत है और वो लग जाते हैं अपने प्यार को पाने के साथ साथ पैसा कमाने और अच्छा प्रोफेशन ढूंढने में और वैसे भी आजकल का प्यार तो वैसे ही काफी महंगा होता है और जरूरी भी है।


मेरा मानना है कि प्यार को कम्पलसरी कर देना चाहिए क्यों कि पाॅलिटिक्स दृष्टिकोण से या आज की जनरेशन के हिसाब से सभी का मानना है कि जात-पात की समस्या दूर होनी चाहिए। पाॅलिटिक्स और आज की जनरेशन तो गला निकाल निकाल कर कह रहे हैं जात-पात की समस्या देश के लिए अभिशाप है पर कोई उपाय तो करता नहीं इसका सिर्फ एक ही उपाय के लोग आपस में प्यार करें और वो एक दूसरे के बने चाहे वो किसी भी जात से हों तभी ये समस्या दूर की जा सकती है वरना गला फाड़ फाड़कर चिल्लाने से नारे बाजी से और समाजशास्त्र के विषय में ये लिख देने से कोई लाभ नहीं होगा के जात-पात समाज के लिए अभिशाप है इस दृष्टिकोण से प्यार करना अत्यन्त आवश्यक है।


प्यार जीवन में आपके लिए अनुशासन भी लाता है अगर आपको अनुशासन में रहना नहीं आता तो भी आप प्यार करना जरूरी समझिये अगर आप प्यार करते हैं और आपको प्यार सच्चा है तो वो आपको अनुशासन भी सिखायेगा जैसे वो सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचेगा आपको आपकी कमियों के बारे में बतायेंगा और आपको मार्गदर्शन भी करेगा। सामान्यतः अगर आप प्यार करते हैं तो आपके साथी ने अवश्य ही आपसे कहा होगा के खाना समय से खाया करो, नहा तो लिया करो, और ये क्या हाल बना रखा है जीवन में अगर आपका प्यार आपके साथ प्रत्यक्ष रूप से न मिल पाये पर अगर आपको कुछ सिखा जाये तो यकीन मानियेगा आपने अपना प्यार पा लिया है। क्योंकि अगर आप अपने प्यार से कुछ सिख पाते हैं तो आप अपने प्यार को हमेशा याद रख सकते हैं और अपने आस-पास उसकेो हमेशा एहसास करेंगे।

Thursday, March 10, 2011

पति-पत्नी का रिश्ता अटूट

हिंदू धर्म में स्पष्ट है आप ईश्वर को साक्षी मानकर कहएि कि आप
गृहस्थाश्रम का शास्त्रानुसार पालन करेंगे। 


हमारे धर्म में विवाह को एक संस्कार माना गया है, जबकि इस्लाम में उसे एक समझौता। समझौता तलाक से भी खत्म हो जाता है और किसी एक साथी की मौत से भी। हिंदू विवाह में पति की मौत से भी पत्नी का संबंध अपने पति नहीं टूटता, क्योंकि हिंदू धर्म में तलाक की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन आजकल हिंदू धर्मालंबियों ने अपनी सुविधा के हिसाब से सबकुछ को बदल दिया है। वे आज लव मैरिज करने लगें हैं। यहां तक कि लिव इन रिलेशनशिप को भी जायज ठहराते हैं। यह अपनी सुविधा के हिसाब से धर्म की व्याख्या है।

हिंदू धर्म को खतरा हमेशा अपनों से रहा है। यह धर्म उदार है और इसके अनुयायी इसी का लाभ उठाते हुए इसकी अपनी अपनी व्याख्या करते रहते हैं। आज के युवा नीति नियमों के साथ हमेशा खिलवाड़ करते हैं, और झंडा धर्म का इतना ऊंचा लेकर चल रहे हैं कि दूसरों को भी सही गलत का उपदेश दे रहे हैं। 

ये तो रही हिंदू विवाह को लेकर धर्म की बात अगर आप कानून की बात करें तो आम लोगों की सहूलियत, सुरक्षा और बेहतर जीवन में सहायता देने के लिए इसे बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है, लेकिन भारत में सैकड़ों कानून ऐसे बने हैं जो आम लोगों के जीवन का जंजाल बन चुके हैं। हिंदू विवाह कानून के भी कई प्रावधान ऐसे ही हैं।

दरअसल जब ये कानून बने थे तब उनकी प्रासंगिकता समाज और लोगों के रहन सहन और आचार विचार के हिसाब से रही होगी, लेकिन समय के साथ सबकुछ बदल चुका है, पर कानून वहीं के वहीं है। तमाम ऐसे कानूनों में एक कानून हैं हिंदू विवाह कानून। इस कानून के हिसाब चाहे पति पत्नी कई साल से एक-दूसरे का मुंह तक न देख रहे हों पर उन्हें तलाक नहीं मिल सकता। दोनों को शादी की हथकड़ी में बंधे रहना पड़ता है। केवल आपसी समझ के आधार पर ही तलाक मिल पाता है।

लेकिन अब यह सवाल  उठाया है सुपी्रम कोर्ट ने। अदालत का मानना है कि जब तक हिंदू मैरिज एक्ट में परिवर्तन नहीं किया जाता, हालात नहीं बदलेंगे। भारत मे कानून में परिवर्तन के इंतजार 55 हजार से भी ज्यादा जोड़ बैठे हैं, ताकि उन्हें तलाक मिल सके और वे नये सिरे से अपना जीवन शुरू कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट में यह ज्वलंत मुद्दा कुछ दिनों पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुशीला कुमार शिंदे की बेटी स्मृति की शादी और तलाक के केस से जुड़ा है। शिंदे की बेटी स्मृति अपने पति से पांच साल से अलग रह रही हैं, लेकिन हिंदू विवाह कानून की धारा 13एक बी के प्रावधानों के कारण उन्हें तलाक नहीं मिल रहा। अब स्मृति ने इस धारा के प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

इस धारा के अनुसार आपसी सहमति से तलाक लेने से पहले पति पत्नी में छह महीने का अलगाव जरूरी है। अदालत ने कहा है कि स्मृति और उसके पति को मसले के सर्वमान्य हल की दिशा में कोशिश करनी चाहिए। स्मृति के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह वैवाहिक रिश्ता जुड़ नहीं सकता, क्योंकि पति पांच साल से तलाक को खारिज कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी जोड़े न जा सकने वाले ऐसे रिश्तों को खत्म माना है, लेकिन कोर्ट का कहना है कि उसके पास इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं है कि वह दंपत्ति से टूट चुके इस रिश्ते को ताउम्र निभाने के लिए कहे।

वहीं विधि आयोग ने सरकार से हिंदू मैरिज एक्ट में बदलाव कर इस खामी को दूर करने की सिफारिश की है। इसके बाद ही कानून मं़ी एम. वीरप्प मोइली ने संसद में विधेयक पेश करने की बात कही थी, जिसको लेकर हिंदू विवाह कानून में बदलाव की चर्चा जोरों पर है और सरकार इस बात को लेकर सक्रिय है।
और यह होता है गृहस्थी का सबसे मधु भाग

गृहस्थी परमात्मा का प्रसाद है। पर इसका सबसे मीठा, स्वादिष्ट और महत्वपूर्ण भाग है संतान। जो बच्चे परिवारों में ठीक से पल कर समाज में उतरेंगे वे धरती पर बोझ नहीं, समाज और राष्ट्र के लिए गौरव बनेंगे। किसी ने ठीक कहा है और हमारे ऋषिमुनि भी यही कहते थे कि बच्चों के साथ कभी-कभी बच्चा होना पड़ता है तब उसे बड़प्पन क्या होता है समझ में आता है।

अध्यात्म की दृष्टि से बच्चों के लालन-पालन में उन्हें दो चीजें सावधानी से देना चाहिए। और वह है खान-पान। वे क्या खा रहे हैं और क्या पी रहे हैं इससे उनका व्यक्तित्व बनता है। कबीर लिख गए हैं-
जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय। जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी होय।।

जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे, वैसी वाणी होगी अर्थात् शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं, इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है, उसका जीवन वैसा ही बन जाता है।

भोजन से मन बनता है। दरअसल मन अपने निर्माण के बाद जो भोजन करता है उसका नाम विचार है। वह विचार खाता है। जिन बच्चों का मन सात्विक भोजन से बनेगा, फिर वह मन भी सात्विक विचार खाएगा। ऐसे ही पानी से वाणी का संबंध है। जल शरीर में ऑक्सीजन लेकर जाता है। अपनेआप में यह प्राणायाम की क्रिया बन जाती है।

बच्चों को सिखाया जाए जल हमेशा बैठकर पिया जाए। जो बच्चे सही शब्द सुनते हैं और सही विचार गुनते हैं उनका व्यक्तित्व पूर्ण होता है।दूरदर्शिता, याददाश्त और चरित्र खानपान पर निर्भर है। इसलिए बच्चों के साथ यदि सचमुच उनका बचपन जोड़े रखना है तो उनके स्वाद पर नजर रखें और बच्चों को एक चीज पसंद है कि उनसे उन्हीं के लेवल पर आकर जीवन जिया जाए और बड़े इसी में चूक जाते हैं।

Wednesday, March 2, 2011

"प्रकृति और ज्योतिष ?विचार शास्त्रों के!" Nature and astrology? idea of the Scriptures!


जब हम कोई भी कार्ज करते हैं-तब उस कार्ज को पूर्ण करने के लिए हमें
अत्यधिक मेहनत करनी पड़ती है,किन्तु जब उसका प्रतिफल हमें प्राप्त हो जाता
है या उस कार्ज को हम पूर्ण कर लेते हैं तब हमें सफलता के आगे कठिनाई कुछ
भी नहीं दिखती है || हमारे भी ज्योतिष्कार ,महर्षियों ने ,आचार्यों ने
कितनी मेहनत की ,तप एवं साधना की-यह हमें भान भी नहीं है-जब हम बात
ज्योतिष की करते हैं -तो निचोड़ तो लेना चाहते हैं -मूल भुत तत्व तक जाना
नहीं चाहते हैं जिस कारण से -हमें सफलता उतनी नहीं मिल पाती है ||
इस आधार पर जिस प्रकृति में हम रहते हैं -आज हम उसको जानने की कोशिश करते हैं-
"जड़ -जंगम ही प्रकृति है | इसके नव द्रव्य हैं -[]-पृथ्वी []-जल
[]-तेज []- वायु []-आकाश []-काल []-दिक् []-आत्मा []-और -मन ||
इन नव द्रव्यों में भी प्रथम चार -परमाणु रूप हैं -ये निराकार होते हुए
भी -इन्द्रियगम्य हैं | ये अपने गुणों से पहचाने जाते हैं और जब इनके ऊपर
दिनकर [सूर्य ] का प्रभाव पड़ता है ,तो शांत -अशांत,सुन्दर से असुंदर
,मधुर से विषम और जीवन से मरण में परिणत हो जाता है ||
भाव -वर्तमान भूत एवं भविष्य की जानने की तमन्ना तो सभी को होती है,
किन्तु अपने इर्द गिर्द जो सच है ,उसको पहचानने की भी हमें कोशिश करनी
चाहिए ||


भवदीय निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन"झा शास्त्री" मेरठ [उ प ]
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ज्योतिष को समझने के लिए "अयन" को भी समझना पड़ता है !"
मित्र प्रवर ,राम राम ,नमस्कार ||


"सूर्य "का आना और जाना -को ही -"अयन कहते हैं |ज्योतिष शास्त्रों के
अनुसार -"अयन "दो होते हैं -जिनका समय -१३ या १४ जनवरी से शुरू होकर ,जो
संक्रमण १५ जुलाई को समाप्त होता है उसे उत्तरायण कहते हैं | इसी प्रकार
१६ जुलाई से १२ जनवरी तक की कालावधि को दक्षिणायन समझी जाती है ||[]
उत्तरायण में शुभ कार्ज किये जाते हैं,एवं दक्षिणायन में कोई भी शुभ
कार्ज नहीं किये जाते हैं |


[]-उत्तरायण सूर्य में जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रायः सदैव प्रसन्नचित
रहता है,स्त्री एवं पुत्रादि से सुख पाने वाला ,दीर्घायु ,श्रेष्ठ ,आचार
विचार वाला ,उदार व् धैर्यशील होता है ||


[]-दक्षिणायन-में जन्म लेने वाला जातक -कृपण ,पंडित ,लोक प्रसिद्ध ,पशु
-पलक ,निष्ठुर ,दुराग्रही एवं अपनी ही बात को मानने वाला है |
कुछ ज्योतिष के ग्रन्थ [संहिता ]में उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा है
,जबकि "सूर्य "विषुव वृत्त से उत्तर में रहता है | मेरु [पर्वत ]पर रहने
वाले देवताओं वो ६ मास तक सतत दिखाई देता है,अतः इस कथन से भी सूर्य को
युगल गतियों का होना भी सिद्ध होता है |\
"अयन "शब्द का पर्योग किस काल के लिए किया गया है ,इसका उल्लेख "वेदों
में अन्यत्र नहीं मिलता है ||
"सूर्य "का आकाशीय नक्षत्रों और ग्रहों पर अमिट प्रभाव पड़ता है| सही
माने तो -सृष्टि का संचालन ही सूर्य से होता है ||


भवदीय निवेदक "झा शास्त्री"  
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सेवा नहीं मिलने पर संपर्क सूत्र का भी उपयोग कर सकते हैं
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"जीत या हार मिलेगा उपहार [क्रिकेट महासंग्राम ]?
प्रिय मित्रप्रवर ,राम राम ,नमस्कार ||
जीवन में उतार और चढाव तो आते ही रहते हैं,फिर भी जीव को जीना पड़ता है |
ज्योतिष की नजर में वर्तमान ,भूत एवं भविष्य की गणना करते समय आचार्य लोग
संकेत की भाषा का पर्योग करते रहते हैं -इसलिए कुंडली जब भी लिखी जाती है
तो हम संस्कृत भाषा में ही लिखते हैं ,समय बदला तकनिकी बदली एवं हमलोग भी
बदल गए इसलिए अब कुंडली हिंदी या अंग्रेजी में बनने लगी,तो निश्चित ही
सभी ज्योतिष के मर्मग्य भी हो गए | आज हम जब अपने घर की सुरक्षा के लिए
नौकर रखते हैं -तो उसकी भी भेष भूषा होती है किन्तु -हमलोग संस्कृत के
विद्वान या संस्कृत्ग्य होने के वाद भी हमारी कोई -नियमावली नहीं होती है
,हम अपनी ही मर्यादा का उलंघन करते हैं एवं गर्व महसूस भी करते हैं ||


---भारत की धनु राशि है एवं कालसर्प दोष होने के कारण अपने देश को जब भी
सफलता मिलती है तो अनायास ही मिलती है,एवं अनायास ही खो जाती है -चाहे
-प्रधानमंत्री हों ,अभिनेता हों ,तकनीकि हो,राष्टपति हों ,क्रिकेट हों
,उन्नति हो ||


-श्री महेंद्र सिह धोनी जी की भी कुंडली में -या नाम से -शनि की
साढ़ेसाती चल रही है -जो अनायास लाभ तो हानी भी देती है ,किन्तु सबसे
बड़ी बात यह है -भारत की राशि एवं इनकी राशि मित्रबत होने के कारण-सफलता
की राह दिखाती है ,किन्तु इस सफलता की राह में दिक्कत भी बहुत है यदि
विषम राशि के जातक का सहयोग मिलेगा तो सफलता जरुर मिलेगी ||
मेरे विचार से भारत की झोली में कई उपहार मिलने वाले हैं ,किन्तु ओ
रहस्य की बात है-जो हमें चिंतित नहीं होना चाहिए ,चिंतन के साथ परमात्मा
के ऊपर छोर देना चाहिए || जो मार्ग में अबरोधक कमी है उसके लिए पर्यास
करने चाहिए ||


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आपकी राशि- मासिक फल [१-३-११से १-४-२०११ तक ] Your Horoscope- For the Month [from 1-4-2011 to 1-3-11]


[1]-मेष-आय
का विशेष व्यवस्था होगी ,भाग्य आपका साथ देगा ,पराक्रम एवं भाई बंधुओं से
संघर्ष करना पड़ेगा ,धन को संचिक करना सीखें,दाम्पत्य जीवन में मधुरता रखें
,शत्रुता न करें ,संपत्ति ,वाहन,का अनायास योग बन सकता है ,मन को संतुलित
रखने की कोशिश करें ||
[]-वृष
-मन चंचल हो सकता है ,पराक्रम ,भाई -बंधुओं में विवाद संभव है,संपत्ति का
योग आगमन के साथ -साथ गमन का भी है ,शिक्षा  ,संतान,एवं पद की प्राप्ति
होगी ,शत्रुता न करें ,कर्मक्षेत्र से पिता से लाभ होगा ,स्वास्थ के प्रति
सचेत रहें ,अंतिम परिणाम आपके हित में होगा ||
[]-मिथुन
-मन को प्रफुल्लित रखें ,धन का आगमन होगा ,उद्यम से लाभ होगा ,अचल संपत्ति
का लाभ संभव है ,स्वास्थ की पीड़ा हो सकती है ,शत्रुओं से मन को शांति
मिलेगी,दाम्पत्य सुख मिलेगा ,पद ,धन ,वाहन की प्राप्ति होगी ||
[]-कर्क
-मन के अनुकूल बात बनेगी ,धन का खर्च -विमारियों के प्रति होगा ,उन्नति के
क्षेत्र में संघर्ष करना पड़ेगा ,माता ,संपत्ति ,वाहन ,पद के प्रति सावधान
रहें ,शत्रुओं से भयभीत होंगें ,चोट से सचेत रहें ,देर से ही सही लाभ जरुर
होगा ||
[]-सिह
-दाम्पत्य सुख मिलेगा ,मन के अनुकूल बात बनेगी ,धन का योग कुछ देर से
बनेगा ,संतान ,नौकरी तथा मित्र बंधुओं -के साथ -मिलकर चलें ,रोग से मुक्ति
मिलेगी ,पिता एवं कर्मक्षेत्र से अनायास लाभ मिलेगा ||
[]-कन्या
-मन के अनुकूल बात बनेगी ,कड़वाहट का मार्ग छोर दें ,धन का लाभ होगा ,विवाद
में धन का खर्च होगा ,माता ,संपत्ति ,सास,वाहन से -आप लाभ उठा ही लेंगें
,विदेश यात्रा के साथ -साथ -दाम्पत्य ,संतान तथा बिलासित सम्बन्धी
आवश्यकताओं की पूर्ति होगीं ||
[]-तुला
-माता ,संपत्ति ,तथा वाहनों से लाभ होंगें ,गलत राह पर न चलें-अहित होगा
,नौकरी ,संतान तथा भ्रमण से लाभ होगा,मित्र बंधुओं से संघर्ष न करें,शत्रु
से अहित होगा ,सावधानी से अपने मार्ग पर चलत रहें जीत आपकी ही होगी ||
[]-वृश्चिक
-धन ,वाहन,संपत्ति ,का अनायास लाभ होगा ,धन का विशेष खर्च न करें ,अपनों
से ही पीड़ा होगी ,नौकरी एवं संतान की ओर से चिंतित रहेंगें ,स्वास्थ कुछ
पड़ेशान कर सकता है,आय की राह कुछ कठिन सी दिखेगी ||
[]-धनु
-मन कुछ अशांत रहेगा ,सबकुछ होने के वाद भी खिन्नता रहेगी ,कूटनीति से धन
का आगमन होगा ,मित्र बंधुओं से लाभ संभव है ,अनायास लाभ का योग बनेगा
,दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होगी ,नौकरी ,यात्रा तथा पद की प्राप्ति कुछ देर
से हो सकतीं हैं ||
[१०]-मकर
-मन हर्षित होगा ,कपोल कल्पना के मार्ग पर चल सकते हैं ,कुछ संघर्ष भी
करना पड़ सकता है,शत्रुता से हानी होगी ,रोग से अनायास मुक्ति मिलेगी
,भाग्योदय होगा ,गलत सत्संग न अपनाएं ,कुछ नई राह मिलेगी ||
[११]-कुम्भ
-मन को अशांत करेंगें अपने ही  परिजन ,धन का आगमन होगा ,संपत्ति ,वाहन
,मकान इत्यादि का लाभ संभव है ,संतान नौकरी ,एवं विदेश यात्रा के योग हैं
,नया उद्योग भी लगा सकते हैं ,स्वास्थ उत्तम रहेगा ,पिता एवं कर्मक्षेत्र
से संघर्ष करना पड़ सकता है ||
[१२]-मीन
-दाम्पत्य सुख ,के साथ -साथ मन अनुकूल रहेगा ,मित्र बंधुओं से लाभ
होगा,संपत्ति ,वाहन इत्यादि का लाभ तो हानी भी हो सकती है ,अपने मार्ग पर
चलते रहें लाभ होगा ,पिता ,कर्मक्षेत्र एवं व्यापर के प्रति सजग रहें
अन्यथा हानी हो सकती है ||
भवदीय निवेदक -ज्योतिष सेवा सदानम "झा शास्त्री "मेरठ [उ प ]
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Tuesday, March 1, 2011

ससुराल गेंदा फूल


  








डीके मिश्र
फिल्म देहली-6 के गाने ससुराल गेंदा फूल.... काफी लोकप्रिय
हुआ। लेकिन इसकी गहराई को बहुत कम लोग जानते हैं। आज
भी इस गाने को गाते ही सभी का मन खुष हो जाता है। षहरी
लोग इसमें प्यार को ढूंढते हैं जबकि इसका रहस्य कुछ और है।
महानगर और बी टाउन सिटी के लोग तो आज भी इस गाने के मर्म
को समझ नहीं पाए हैं। यही कारण है कि षहरवासियों को इसमें
आनंद और प्रेम की खुषी का अहसास तो होता है पर इसकी गहराई
से वह कोसों दूर हैं। दरअसल यहां पर गेंदे के फूल की तुलना
ससुराल से की गई है। संयुक्त परिवार में ससुराल में नव विवाहित
बहू को सास की गालियां, ननद के ताने और देवर के सहानुभूति
जैसे स्थितियों का सामना करना पड़ता है। यह ग्रामीण परिवेष
में रहने वाले या संयुक्त परिवार में रहने वालों के लिए नइ्र्र
बात नहीं है। लेकिन एकल परिवार की अवधारणा की वजह अब इस मर्म से
लोग दूर हो गए हैं।

यही कारण है कि फिल्म के गाने में ससुराल को गेंदा फूल कहा
जाना षहरी युवाओं के लिए कुछ नया और उत्सुकता जगाने वाला
है। यहां पर गीतकार ने रूपक का प्रयोग प्रयोग किया है। गेंदे में
बनावट के लिहाज से ऐसी खासियत है कि इसमें बहुत सारे फूल एक ही
तने से उगते और पलते बढ़ते हैं। ठीक वैसे ही जैसे ससुराल रूपी
तने से सास, ससुर, ननद, देवर जैसे रिष्ते पनपते हैं और साथ साथ फलते
फूलते हैं।

बालीवुड की फिल्म देहली-6 के इस धुन पर संभ्रांत लोग आज
भी झूम उठते हैं। लेकिन इस गाने को लिखने और पहली बार
गाने वाले छत्तीसगढ़ी कलाकार परदे के पीछे रह गए। इस लोकगीत
को 1972 में रायपुर की जोषी बहनों ने गाया था। उनका

कहना है कि रायल्टी न सही, इसमें कम से कम गीतकार का उल्लेख
होना था। रायपुर के लोगों के लिए अपने ही देष के लोकगीत
को बाॅलीवुड द्वारा लेना और कहीं भी उसका जिक्र तक न करना
चैकाने वाला है।

हां, लीरिक्स रायटर के तौर पर प्रसून जोषी का नाम है। गीत को
1972 में गाने का दावा करने वाली जोषी बहनें अब इस कवायद
में हैं कि कम से कम राज्य या बोली का ही उल्लेख हो जाए तो
लोककलाकारों को देषव्यापी मंच मिल सकता है।

इस गीत को सबसे पहले खरोरा में गाया गया था। सास गारी देवे...
गीत स्व. गंगाराम षिवारे ने लिखा था और स्व. भुलवाराम यादव
ने उसे स्वर दिया। इसके बाद यादव ने ही इस फोकसांग को रमादत्त
जोषी व डा. रेखा जोषी और प्रभादत्त को सिखाया। इसके
बाद उन्होंने मिलकर सबसे पहले ये गाना खरोरा गांव में गाया।
जोषी बहनों का कहना है, 70 के दषक के दौरान अधिकतर
गांवों में लाइट नहीं थी, तब मषाल की रोषनी में ये
कलाकार परफार्म किया करते थे। रात का समय चुनने की वजह ये थी
कि उस समय सारे गांव वाले काम से फुरसत पा जाते थे। जोकर पहले
करतब दिखाकर लोगों को जमा करता और फिर सारे कलाकार गाते और
अभिनय करते थे।

इस छत्तीसगढ़ी लोकगीत में बहू की वेदना को उकेरने की
कोषिष है। गीत के बोल का अर्थ है कि षादी होकर आई
नई बहू को सास-ननद और यहां तक कि पड़ोसी भी ताना देते
हैं। ऐसे में हम उम्र देवर ही भाभी का दर्द समझता है और
सबको समझाता है। बहू के माध्यम से गवाए इस गीत में अभिनय भी
वैसा ही हुआ करता था, जिसमें सास-ननद और बहू-देवर सभी
रहते थे। पति के व्यापारी होने के कारण बहू का अकेलापन और
बढ़ जाता था। समूचे गीत में इसी बात का जिक्र है। खैर जो कुछ
हो बाॅलीवुड व षहरी जीवन जीने वाले भारतीय के लिए यह नया जरूर
है जिसमें उन्हें प्यार का अपना स्वांग हमेषा नजर आता रहता है पर

हकीकत संयुक्त परिवार की संस्कति का तानाबाना है।